Posted On: 4 Jun, 2015 Others में
पञ्चतत्व से प्राणी की उत्पत्ति होती है . पञ्चतत्व से प्राणी का जीवन चलता है . अन्ततः प्राणी पञ्चतत्व में विलीन हो जाता है . पञ्चतत्व अर्थात क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर . इन पंचतत्व का एक अवयव है जल . प्रकृति को गतिमान बनाने केलिए सब से प्रमुख जल ही होता है . और अगर जल न हो तो प्रकृति भी नहीं रहेगी . प्रकृति नहीं रहेगी तो मानव भी नहीं रह सकता . अतः अगर प्रकृति को बचाना है , संसार में मानव के अस्तित्व को बचाना है तो जल को बचाना होगा . मानव ने तथाकथित विकास के नाम पर प्रकृति के साथ अनैतिक व्यवहार किया है . प्राकृतिक सम्पदाओं का अनावश्यक एवं अत्यधिक दोहन किये जाने से प्रकृति विक्षिप्त हो गयी है . विक्षिप्त प्रकृति से स्वस्थ प्रकृति के अनुसार आशाएं रखना मानव की मूर्खता हो सकती है .
प्रकृति के साथ छेड -छाड़ की वजह से सहज और स्वाभाविक जलापूर्ति प्रकृति नहीं कर पा रही है . तब, अब क्या करें ? बस एक ही मार्ग बचता है जल – संरक्षण या जल संचय . कम बारिश तथा अत्यधिक दोहन से जल श्रोत में कमी हो रही है . विकास के नाम पर भी जल श्रोत सुखाया जा रहा है .
एशिया के कई क्षेत्रों में भूजल स्तर अत्यधिक निचे पहुँच चुका है . कई क्षेत्र की उपजाऊ जमीन रेगिस्तान में बदलती जा रही है . हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम अनियमित बारिश और वर्फ के पिघलने से सिस्टम गड़बड़ हो चुकी है .
जल श्रोत नष्ट होते जा रहे हैं लेकिन इसकी चिंता कम लोगों को है . ब्रश करते समय नल खोल कर दांत साफ करते रहते है और पानी बहता रहता है . बर्तन साफ करते हुए नल से अनवरत जल प्रवाह होता रहता है और पानी बर्बाद होता रहता .
जल ही जीवन है -सब कहेंगे लेकिन मानव जल का सबसे ज्यादा दुरूपयोग भी करेगा . जिस जल के बिना जीवित रहना असंभव है उसकी बर्बादी कहाँ तक उचित है? सच है की जो वस्तु आसानी से और मुफ्त या कम व्यय कर प्रचुर मात्रा में जब तक मिलता रहता है तब तक हम उसका भरपूर दुरूपयोग करते रहते है . यह प्रकृति प्रदत हर वस्तु के ऊपर लागू हुआ . मसलन जंगल का दुरूपयोग , खनिज का दोहन , नदी के जल तथा रेत का बर्बादी . आज हरे -भरे जंगल के स्थान पर कंक्रीट का जंगल खड़ा हो गया है , नदी का जल या तो प्रदूषित हो चूका या सूख गया या बर्फ के पिघलने तथा पेड़ पौधों के न होने से अत्यधिक जल प्रवाहित होने से बाढ़ ग्रस्त हो गया , नदियों का पानी समुद्र में मिलकर खारा हो गया .
फिर भी जो बचा है उसका सही उपयोग हो और भूजल का संरक्षण तथा सम्बर्धन किया जाये तो आने वाली पीढ़ी को हम यह कह पाएंगे की हम ने जिम्मेदारी निभायी
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