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देवालय या शौचालय

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देवालय से पहले शौचालय अर्थात स्थान में तो देवालय से पहले संसार की कोई भी वस्तु नहीं हो सकती. लेकिन देवालय जाने से पहले सभी को शौचालय जाना अनिवार्य होता है. किसी भी पूजा -पाठ या इबादत से पहले शुद्धिकरण (अपने को पवित्र करना) आवश्यक होता है. अतः दोनों आवश्यक है. लेकिन देवालय लोग तभी जायेंगे जब शौचालय से फारिग हो कर शुद्ध हो जायेंगे.

देवालय तो हमारी पहचान है, शहर या गाँव में एक या दो देवालय हो तो चल सकता है. लेकिन शौचालय हर घर में आवश्यक है. स्वच्छता हमारे लिए अनिवार्य है. खुले में जाना मनुष्य के लिए जितना ही हानिकारक है उससे कहीं ज्यादा शर्मनाक.खुले में शौच जाने से वातावरण तो दूषित तो होगा ही,बीमारियाँ भी फैलेंगी. स्त्रियों को खुले में जाने से तो और भी आपत्तिजनक है. उन्हें शर्म का सामना करना पड़ता है. अपरोक्ष रूप से दुर्घटना भी बढ़ेगी. यह कहना कि पहले शौचालय फिर देवालय इसमें किसी का अपमान नहीं है. परापूर्व कल से देवालय तो बने ही होते हैं. यदि दोनों में एक बनानी हो तो पहले शौचालय ही बनाना चाहिए. सुधिजन! जरा सोचें जिनके घर में इसकी व्यवस्था नहीं है उन्हें कितनी यातना झेलनी पड़ती होगी? कितनी पीड़ा से गुजरती होंगी वहां कि महिलाएं, बच्चों को कितनी तकलीफ होती होगी , बुजुर्ग को रात्रि में बहार जाने में कितना भय होता होगा.
आज देश इतनी प्रगति पर है. हम २१वि सदी में जी रहे हैं. कुछ देश वासियों के सौचालय नहीं है. कितने अपमान कि बात है, कितने लज्जाजनक है यह? क्या प्रभाव जायेगा संसार में? अतः इस में राजनीती नहीं होनी चाहिए. जनता का हक़ है उनके घर में शौचालय हो. सर्कार का परम कर्तव्य है कि आंकड़ों को ध्यान में रख कर शीघ्रताशीघ्र शौचालयों का प्रबंध करे. यह मूलभत आवश्यकता है.
ऐसा कुछ हो जिससे सभी मानव उन्मुक्त हो कर खुली हवा में सांस ले सके.अतः यह मुद्दा कि देवालय से पहले शौचालय हो औचित्यपूर्ण है. इसके अर्थ पर ध्यान दें न कि राजनीती कि रोटी सकें.अर्थ का अनर्थ न लगायें बल्कि जिस तरह या जिसने भी यह समस्या उठाया है उपयुक्त है. सीघ्र ही इसका समाधान हो. साथ ही साथ सरकार शौचालय माफियाओं से सावधान रहे यह भी आवश्यक है. बहुत सारे NGO शौचालय के नाम पर खाकपति से लखपति या कड़ोड़पति बन चुके हैं और देश में फिर भी शौचालयों कि कमी बनी ही हुई है.

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