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पैसा बोलता है

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पैसा बोलता है यह बिलकुल सत्य है . आज सर्वत्र त्राहि -त्राहि मची है , बिना आपदा के भी भयंकर बवंडर सा माहौल है . बैंक हो या ऐटीएम् सर्वत्र कतारबद्ध खड़े है मानव . अथक परिश्रम से अर्जित किये गए स्वयं के पैसे के लिए इतनी जद्दोजहद . एक -एक पैसे के लिए तरस रहे हैं . हर तबके के मानव परेशान हैं . विशेष कर मजदूरवर्ग के लोग अधिक . दिहाड़ी पर जीने वाले की स्थिति और भी दयनीय है . घर -घर झाड़ू -पोंछा का कार्य कर परिवार की जीविका चलने बाली बाई की स्थिति तो अत्यंत ही दयनीय है.
मेरे घर में काम करने वाली बाई छुट्टी लेकर बैंक गयी और सारे दिन बैंक में खड़ी रही लेकिन खाली हाथ लौटना पड़ा .एक तो सारे दिन भूख – प्यास से आकुल , घर -घर मालकिनों से खुशामद करके मिली छुट्टी भी बर्बाद . उसकी बेबसी देख कर द्रवित हो गयी हूँ . ऐसे अनगिनत लोग पीड़ित हैं . असमय काल कवलित हो रहे हैं . कितने लोगों की जान चली गयी है . वह क्या कल देखेगा ? जीवित रहता तो संभवतः आधा पेट खाकर भी अपना तथा अपने परिवार का भरण -पोषण करता. “कल किसने देखा है? दूरदर्शन पर हृदयविदारक दृश्य देखकर दहल जाती हूँ मैं . कुछ दिन वृद्धा की मौत तथा अर्थाभाव के कारण एक दिन बाद उसका संस्कार करना , संभवतः कोई हृदयहीन होगा जिसने उसके परिजन को देख कर अश्रु न बहाया हो .

आज हर तरफ नोटबंदी पर बहस हो रही है. पक्ष अपनी तारीफ का पुल बांध रहा है तो विपक्ष विरोध में कमर कस चुका है. सम्पूर्ण देश इस समस्या से जूझ रहा है. देश एटीएम और बैंक के आगे कतारबद्ध है फिर भी लोग इस आशा में प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं कि देश तरक्की करेगा. पंक्तिबद्ध लोगों की धैर्य , असीम उत्साह देखकर वास्तव में ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे सब जग गए हैं. बुजुर्ग हो या अन्य सभी में अदम्य उत्साह में दृष्टिगत हो रहे है.
सही है देश बदल रहा है. होगा क्या यह तो समय ही बताएगा. कोई यह कैसे बता दे कि कल क्या होगा, और फिर दावा के साथ बताने वाला तथाकथित विद्वान की कमी तो अपने देश में कतई नहीं है. समयनुसार करवट बदलने वाले नेताओं के देश में विश्वसनीय तो कोई रहा ही नहीं. अब देखिये न कि जो लोग जीएसटी के विरोधी थे वे सत्ता हाथ में आते ही समर्थक हो गए और जो लोग समर्थक थे वे विरोधी! अतः समयानुसार एक ही वस्तु में उन्हें कभी बुराई दीखता है तो कभी अच्छाई . फिर साधारण जन को विश्वास करने में कठिनाई होना स्वाभाविक ही तो है. आज नोटबंदी के पक्षधर जो कहते हैं उस पर लोग विश्वास करे या विपक्षी जो कहते हैं उस पर करे , यह यक्ष प्रश्न है. पर लोग राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति के कारण सरकार के इस पहल को उचित मानकर कुछ अच्छा होगा , गरीबों की भलाई होगी यह सोच कर अपने चहरे पर मुस्कराहट रख कर कष्ट सहने को तैयार ही नहीं , आतुर भी हैं.
पर विरोध के लिए विरोध करना तो विरोधियों का धर्म जैसा हो गया है. विरोध करो , तर्कपूर्ण विरोध करो. और विरोध करते समय इतना ख्याल जरूर रखो कि किसी का चारित्रिक हनन न हो. चाहे वह विरोध सत्ताधारियों द्वारा विपक्ष का हो या विपक्ष द्वारा सत्ताधारियों का. फोटोशॉप का प्रयोग कर किसी का भी अनुचित चित्र या किसी के बारे में अनुचित तथा अघटित बातों का उल्लेख सामाजिक संजाल (सोशल मीडिया) में कर अफवाह फ़ैलाने से बुद्धिजीविओं को कष्ट होता है.
लोगों के पास वक्त कितना है -दुरूपयोग करने के लिए. टीवी पर बहस , नुक्कड़ पर बहस , फेस बुक पर बहस,व्हाट्सअप पर बहस , गली मोहल्ले , घर-बहार और यहाँ तक कि संसद के बहुमूल्य तथा महँगी समय का दुरुपयोग मात्र बहस के लिए कर किया जाना सारे भारतवासियों को दुखी कर जाता है. जितना बहस में हम समय बर्वाद करते हैं उतना यदि किसी रचनात्मक कार्य में समय लगाएँ तो हम विश्व में सर्वोत्तम बन सकते हैं. यह सच है कि हम स्वतंत्र देश के आजाद नागरिक हैं और हमें अपना विचार व्यक्त करने का सम्पूर्ण अधिकार है.
कालाधन तो भ्रष्टाचार का उत्पाद है. पर भ्र्ष्टाचार से मात्र कालाधन ही नहीं पनपता है. यह तो देश के लिए महामारी जैसा रोग है . मानव जो भ्र्ष्टाचार का विरोध करता है वही मानव भ्रष्ट तरीके से कमाया हुआ धनवान का प्रशंसक होता दिखता है. फिर भ्र्ष्टाचार का उपचार कठिन हो जाता है. भ्र्ष्टाचार मिटाने हेतु भ्रष्ट मानसिकता का उन्मूलन करना होगा. मानसिकता ऐसी बने की भ्रष्ट लोगो से लोग घृणा करे न की ऊपरी कमाई जहाँ दिखे उसके लिए अपने नए पीढ़ी का उत्साहवर्धन . भाई-भतीजावाद,चोरबाज़ारी,कालाबाज़ारी,जमाखोरी,साम्प्रदायिकता,छुआछूत , जातिवाद, या अन्य कोई भी भेदभाव यह सभी भ्रष्टाचार ही तो है. इन सभी का समूल विनाश अत्यावश्यक है.
कालाधन यदि समाप्त हो जाता है तो भी यह आंशिक सफलता ही है. पुनः यह न हो पाए यह सोचना और इस के लिए सतत प्रयत्नशील रहना होगा. क्योंकि समरथ को न कछु दोष गोसाईं, तो फिर ये समरथ लोग पुनः इस तरह का धन जमा नहीं करेंगे ? इसलिए मानव की बढ़ती लालसा ,अतृप्त इच्छा ,असंतोष इत्यादि को नष्ट करना होगा. और यह तभी सम्भव हो सकता है जब समान धन सभी जन के पास हो. आवश्यक आवश्यकताएँ सरकारी माध्यम से पूर्ण हो , न कोई गरीब हो न कोई धनवान हो. धन देश का हो न कि किसी एक का हो. सभी धन पर सभी का समान अधिकार हो अर्थात रामराज्य हो.
पर फिर भी भय तो यह है ही कि पैसा बोलता है!!!!

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