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भ्रष्टाचार के लिए हम जिम्मेदार!

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‘भर्ती परीक्षा में घपला’ – समाचार पत्र में छपी समाचार पढ़कर मैं क्षुब्ध हूँ कि कितनी भी सावधानी हो घपला होने से बचपाना असंभव नहीं तो अति कठिन हो चुका है. सरकार डाल-डाल तो घपलेबाज पात-पात .
घपला – भ्रष्टाचार का ही एक रूप है. सुरसा कि मुख कि तरह यह फैला हुआ है. यह हर राष्ट्र या संस्था की उन्नति में बाधक है. भ्रष्टाचार के कारण ही कोई कार्य समुचित रूप से अपने सही अंजाम तक या तो पहुँच ही नहीं पाता और अगर पहुँच भी जाता है तो छिन्न भिन्न हो कर वा आधे अधूरे , अपूर्ण तथा गुणवत्ता रहित.

 

हमारे देश में दुर्भाग्य से इस बीमारी ने ऐसी पैठ जमा ली है की यह कैंसर से भी घातक हो गया है. कभी-कभी तो ऐसा लगता ही की ला-इलाज तो नहीं हो गया है ! लेकिन इस शब्द में ताकत बहुत है. बड़े-बड़े नेता इस शब्द का प्रयोग कर सत्ताधीश बन बैठते है. और जब सत्ता में बैठ जाते हैं तो कुछ को छोड़ कर अधिकांश इस शब्द से होने बाला लाभ उठाने में स्वयम लिप्त हो जाते हैं और तब बचे हुए कुछ सत्ताधारी इस शब्द को मिटाने का भरपूर कोशिश करने के वावजूद इसे न मिटा पाते हैं न कम कर पाते हैं. बस तुलनात्मक तथ्यांक प्रस्तुत कर लोगों को गुमराह कर पाते हैं. केंद्रीय तथा सभी प्रांतों की सरकारों को भ्र्ष्टाचार रूपी दानव ने किंकर्तव्यविमूढ़ बना दिया है. हर क्षेत्र में इसका बोलबाला है., कोई भी योजना इस भ्रष्टाचार के कारण सफलता प्राप्त नहीं कर पा रही है.

हमारी आवश्यकताएं इतनी बढ़ गयी हैं की उन मांगों को पूरा करने के लिए हम अनुचित साधनों का प्रयोग करने में संकोच नहीं करते. कही न कहीं बढ़ती एवं अनियंत्रित मंहगाई भी इसके जिम्मेदार हैं. मानव की अभिलाषा अनंत है, कम धन से तृप्ति नहीं होती है फलतः अनैतिक रूप से धन कमाने की लालसा भी इस दुष्कर्म की जननी है. सरकार के बड़े-बड़े कर्मचारियों से ले कर कचहरी में चपरासियों तक में यह प्रवृति दृष्टिगत होती है की बिना धन लिए (सेवा शुल्क) कोई कार्य नहीं करते हैं. स्वीपर से ले कर अफसर तक इस क्रिया को धर्म की तरह अपना चुके हैं. आज कल के डॉक्टर भी अर्थ के लिए मरीज़ों की जान तक दावं पर लगा देते हैं. जिस चिकित्सक को देवदूत की संज्ञा दी जाती थी उन में से कुछ आज पैसे के लालच में यमदूत बन चुके हैं. दवा के अनेक व्यापारी अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इन डॉक्टरों के मार्फ़त नकली दवाइयां बनाकर जनता को लूटते हैं और उनकी हत्या भी करते हैं.

 

अनाज के व्यापारी अनाज में मिलावट कर इस तंत्र को बढ़ावा दे रहे हैं. बड़े-बड़े स्कूल -कालेजों में डोनेशन ले कर तथा मनमानी फ़ीस वसूल कर निम्न स्तर की शिक्षा दे कर बेरोजगारों की संख्या बढ़ाने में अनुचित सहयोग कर भ्रष्टाचार का अपने अलग अंदाज में सेवा करते हैं. वकीलों द्वारा भ्रष्टाचार का पोषण तो सब जानते हैं. इंजिनियर तो बदनाम यूँ ही नहीं हो गया है. चार्टर्ड अकाउंटेंट के बारे में मशहूर है कि वे टैक्स चोरी के ज्ञाता होते हैं और देश को डुबाने में उनका योगदान रहता है. कौन बचा है? राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट….!! सब लूटना चाहते हैं और मज़े की बात है की सब भ्रष्टाचार के विरोधी भी हैं. हर भ्रष्टाचारी सार्वजानिक रूप से इस शब्द को घृणित मानते हैं और व्यक्तिगत रूप से इसका सेवन करना प्रमुख कर्तव्य समझते हैं.

जब पड़ोस का कोई आदमी अचानक बड़ा बंगला बना लेता है, बड़ी गाड़ी खरीद लेता है , विदेशों में परिवार सहित छुट्टियां मनाने जाता है तो माँ-बाप सगे सम्बन्धियाँ , समाज में हर तरफ उस आदमी की प्रशंसा करते थकते नहीं हैं – देखो वह उनका बेटा कितना सफल है, कितना कमाई है उसका अदि,आदि. फिर होता क्या है दूसरे लोग भी उसी के राह पर चल कर शॉट कट अपना कर (भ्रष्टाचार ) धनवान बन प्रशंसा प्राप्त करना चाहते हैं. और इस तरह भ्रष्टाचार की कड़ी बनती चली जाती है. हम कहीं किसी जगह किसी काम से जाते हैं और वहां किसी कारणवश देर लगने लगता है वा सम्बंधित कर्मचारी द्वारा जान बुझ कर देर लगाया जाता है तो हम समय बचाने के लिए इस भ्रष्टाचार मन्त्र का प्रयोग करने में आगे बढ़ जाते हैं . फिर अपने दोस्तों या जानने वालों में प्रचार भी करते हैं की मैंने तो अमुक काम थोड़े से पैसे दे कर तुरंत करवा लिया था, तुम भी कुछ खर्च कर अपना समय बचा सकते हो. और इस तरह भ्रष्टाचार बढ़ाने का सिलसिला चल निकलता है.

 

 

राजनैतिक क्षेत्रों में टिकट प्राप्त करने हेतु अक्षम लोग भी पैसे खर्च कर मुकाम पा लेते हैं. यहाँ तक कि विश्वविद्यालयों के कुलपति -प्रतिकुलपति की पदों की भी बोली लगती है और उच्चतम बोली लगानेवाला अयोग्य लोग भी उस पद को प्राप्त कर लेते हैं.
अतः मुझे लगता है सरकार भ्रष्टाचार को कैसे खत्म कर पायेगा , जब हम जनता ही इसे खत्म नहीं करना चाहते. हम या हमारे लोग करें तो अच्छा लगता है. इसके माध्यम से हमारा काम आसानी से हो जाये तो अच्छा लगता है. बस हमें अगर ज्यादा देना पड़े या किसी कारणवश हमें आघात पहुंचे तभी यह ख़राब लगता है तो कहीं न कहीं हम खुद भ्रष्टाचार के जिम्मेदार हैं. और सच तो ये है की हम इसके आदि हो चुके हैं. भगवान तक को रिश्वत देने में पीछे नहीं रहते. हम जिसके अधिकारी नहीं भी होते हैं उसको प्राप्त करने हेतु भगवान को कहते है – हे भगवान मुझे ये करदे ,वो करदें, परीक्षा में पास करदें, धन दौलत दिलादें आदि, आदि और रिश्वत के तौर पर इतना पैसा चढ़ाऊंगा , इतने रुपये का मिठाई चढ़ाऊंगा !!

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