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ग्रामीण विकास की आस

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भारत गांव का देश है . ग्रामीण विकास को अगर ध्यान से देखें तो स्थानीय विकास बहुत ही न्यून हुआ है . ग्राम से पलायन कर शहर में बस जानेसे वहां के कुछ लोगों का व्यक्ति विकास हो गया होगा पर ग्राम विकास के नाम पर केवल योजना और राजनीतिक पार्टियों का मेनिफेस्टों का विकास ही संभव हो पाया है .
आज भी ग्रामवासी असुविधा से जूझ रहे हैं . आज भी शहर की अपेक्षा गाँव का विकास नगण्य ही हुआ है . सड़कों की असुविधा , बाजार की असुविधा , स्वास्थ्य सेवा की असुविधा एवं शिक्षा की असुविधा के साथ -साथ बहुत सारे ऐसे असुविधाओं का सामना ग्रामवासी को करना पड़ रहा है . मॉल की क्या बात एक दुकान भी अच्छा नहीं है . छोटी – छोटी वस्तुओं के लिए शहर की और भागना पड़ता है . यदि कोई भी अस्वस्थ हो जाये तो इलाज के लिए शहर ही सहारा होता है , और कभी – कभी तो रस्ते में ही लोग …… . और अगर वहीँ किसी झोला छाप डाक्टर के चक्कर में पड़े तो भगवन ही मालिक . कुछ साधारण चिकत्सक ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत हैं जो थोड़ा बहुत उनकी जरूरतों को पूरा करते हैं लेकिन बड़ी बीमारी के लिए शहर की ओर ही भागना पड़ता है. अचानक यदि किसी को अटैक आ जाये या लकवा या अन्य कोई घातक बीमारी हो जाये तो शहर जाते जाते ही असमय मृत्यु की गोद में चला जाता है. कितने मानव तड़प-तड़प कर दम तोड़ देते हैं, असमय कल-कवलित हो जाते हैं डाक्टर के अभाव में . मरीज की दुर्दशा का तो अंदाजा लगाना भी कठिन है. क्या हम 21वीं शताब्दी में जी रहे हैं जहाँ मानव उचित उपचार के अभाव में इस संसार से ही विलग हो कर अपने पीछे बिलखता बेसहारा परिवार को छोड़ जाता है. डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है. उसीमें कुछ डाक्टर गावं जाने की कष्ट से मरीज के उपचार के लिए नहीं जाता क्योंकि जितनी देर में जायेगा उतनी देर में तो शहर में मोटी फ़ीस वसूल कर लेगा.
यदि गावं का विकास दर औसतन सही होता तो ग्रामीणों को यूँही तिल-तिल कर नहीं मरना पड़ता . सवास्थ्य सुरक्षा से बड़ी आवश्यकता क्या हो सकती है . यातायात की आज भी सर्वत्र उपयुक्त व्यवस्था नहीं है. आज भी मानव को बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है . जो थोड़ा बहुत सड़क बने उनमें पुलों के पास डायवर्सन बना और वर्षों से डायवर्सन ही पड़ा हुआ है. वर्षों से परेशानी यथावत है. यातायात के उचित ज्ञान का अभाव या शीघ्रता के कारण गावं के निकट के शहर में अधिक भागम-भाग रहती है. ऑटोवालों का मनमानी, दोपहिया वाहन चालक का मस्ती तो सुचारु यातायात में बाधक रहता ही साथ ही साथ असुरक्षित वर्षों पुरानी गाड़ियों का निर्वाध सञ्चालन आएदिन दुर्घटना का वजह बनता रहता है.
उपरोक्त समस्याओं का जिम्मेदार मूलतः सरकार है. ये गावं के विकास के प्रति लापरवाह है, अंजान तो कदापि नहीं.
ग्रामवासी शहर के बाजार पर निर्भर होते हैं पर शहर से गावं को जोड़ने वाली सवारी साधन इतने कम होते हैं कि उनमें हमेशा अतिरिक्त भीड़ रहता है , यह भी दुर्घटना का कारण होता है. बस के छत पर यात्रा करते हुए कई ग्रामीण इलाकों में लोग मरे जाते हैं. अतिरिक्त भर ले कर चलनेवाले मालबाहक अक्सर दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं.
सबसे भीषण समस्या कृषक की है ,वे साधन के अभाव ,यातायात की असुविधा या प्राकृतिक आपदा के मार से जूझते रहने के कारण अत्यन्त कठिनता से जीवन यापन कर रहे हैं ,उत्पादन नहीं होने कारण भोजन की भी समस्या का सामना करना पड़ता है .
ग्रामीण विकास में शिक्षा सुविधाओं का अभाव भी आज भी यथावत है . विद्यालयों महाविद्यालयों का नितान्त अभाव है जिसके कारण बच्चों को समुचित शिक्षा नहीं मिल पाता है , इसके कारण मेधावी बच्चे विद्यालय के अभाव में पीछे जा रहे हैं. शिक्षित साधन संपन्न व्यक्ति अपने बच्चे को शहर में पढ़ा रहे हैं लेकिन गरीब के बच्चे अच्छी तरह अध्ययन नहीं कर पा रहे हैं. सरकारी विद्यालय जहाँ है भी वहां शिक्षक बच्चों पर ध्यान नहीं देते . कुछ गरीब परिवार के बच्चे तो मात्र भोजन करने के उद्देश्य से जाते हैं. हर तरफ इस बात की चर्चा होती है की देश तरक्की कर रहा है, क्या तरक्की का आशय मात्र सीमित शहरों तक ही है ? कुछ वर्ग तक ही है? आज भी उचित शिक्षण संस्थान नहीं होने से मानव शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाता . क्या हम २१ विन शताब्दी में जी रहे हैं? एक और भी विकराल समस्या है गावं से शहर की ओर पलायन . उचित साधन नहीं मिलाने के कारण मानव गावं की संपत्ति को बेच कर शहर की ओर उन्मुख हो रहे हौं. फलतः शहर में भी भर बढ़ती जा रही है. खुले वातावरण में रहने वाले ग्रामीण शहर में छोटे फ्लैट में रहने लगते हैं लेकिन उन सबका मन नहीं लगता, दम घुटता है. गावं के स्वच्छ पवित्र वातावरण की स्मृति आती है, फलस्वरूप निराश हो कर जीवन व्यतीत करते हैं. सदा परायापन का बोध होता है. इस अपराध -बोध में कि क्यों गावं छोड़े, स्वजन की याद में परकटे पक्षी की तरह जीवित रहते हैं. उनकी स्थिति उस वृक्ष की तरह होती है जिसे अपने स्थान से हटकर अन्य स्थान पर लगा दिया जाता है बोन्साई बनाकर. एक भयानक समस्या और पनप रही है उसकी ओर सम्भवतः बहुत ही कम लोगों का ध्यान है. गावं से अध्ययन के लिए या रोज़गार के लिए जो शहर में रहते हैं , वे मानव जब गावं जाते हैं अपनों से मिलने तो उनके स्वयं के कुटुंब उनकी तरक्की देखकर ईर्ष्यादग्ध हो उठते हैं. शहर में रहने के पीछे उनकी कड़ी मेहनत नहीं दिखती , मात्र दीखता है उनका रहन-सहन. सत्य भी है गावं में रहने वाला जीतोड़ मेहनत करने के बाद भी सफल नहीं हो पाता , ईर्ष्या तो स्वाभाविक ही है. मानव का प्रमुख गुण है ईर्ष्या करना. शहर से मानव अपनों से मिलने आता है. लेकिन उपेक्षा , तिरस्कार मिलने पर पुनः न गावं जाने की शपथ ले लेता है. गावं के अपनों से वंचित हो कर किराए के मकान या फ्लैट में जीवन गुजर देता है. इसके जिम्मेवार कौन है? सरकार है जो अपने कुटुम्बों से दूर कर देता है. यदि गावं में भी सारी सुख सुविधाएँ होती तो मानव अपनों से विलग नहीं होता . यदि यही स्थिति रही तो गावं का गावं का विकास नहीं हुआ तो आगामी पीढ़ी को भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा . सबसे प्रमुख समस्या तो स्थान की होगी . गावं की वह हरियाली मनमोहक प्राकृतिक दृश्य, स्वच्छ हवा , सीधे सज्जन लोग ,उन्मुक्तता सब दादी नानी की कहानियों में ही सिमित रह जायेगा या किताब के पन्नों में.
शिक्षा , स्वास्थ्य , बेरोज़गारी, महिलाओं में शिक्षा का अभाव , यातायात की असुविधा, गरीबी आदि अनेक समस्याएं हैं जिसपर सरकार के साथ देश के हर नागरिक को ध्यान देना होगा जिससे ग्रामवासी शहर की ओर पलायन नहीं करेंगे. हमारी धरोहर कायम रहे ,भारत की कृषि जीवित रहे , अतः हम सभी ग्रामीणों को ग्राम की विकास का आश है.

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