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क्या आज मानवता बची है? क्या मानव कहलाने योग्य है मानव ?प्राचीन काल का मानव मनस्वी ,तपस्वी हुआ करता था . पर आज तो कुछ मनुष्य ने सारी सीमाएँ तोड़ दी है .उनमें दया ,धर्म शेष नहीं बचा है . न किसी के प्रति ममता न मोह . चाहत क्या है ? अपनों से क्यों विमुख होता जा रहा है ? अपनों से विमुख होना तो पशु भी पसंद नहीं करते. . फिर मानव क्यों ? पशु तो फिर भी साथ रहकर एक दूसरे को चाटकर प्रेम प्रदर्शित करते है , पक्षी का झुण्ड में रहना मौन प्रेम का प्रतीक ही तो है . मानव तो साथ भी नहीं रहना चाहता . आज के मानव को परिभाषित करना कठिन है. आखिर क्या बनता जा रहा है? लक्ष्य से भटक कर निरुद्देश्य जीवन जी रहा है .न किसी की भावना से प्रयोजन न किसी के जीवन से . क्या सभी जीवों में श्रेष्ठ मानव को इसीलिए बनाया .
कुछ दिन पहले की बात है ,मैं गाज़ियाबाद से घर जा रही थी . रास्ते में एक स्थान है ‘पिपरा कोठी ‘ वहाँ सड़क पर भयंकर जाम लगी थी . कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ! जाम क्यों है ? भीषण गर्मी थी , मेरे साथ सभी यात्री परेशान थे . कुछ बच्चे उधर से आ रहे थे जहाँ जाम शुरू होता था , मैंने कारण जानना चाहा तो पता चला कि दुर्घटना हो गयी है. मैं और कुछ पूछती इससे पहले वे चले गए . स्वाभाव से ही कोमल होने के कारण मैं सोचने लगी क्या, रोने लगी – ‘पता नहीं कैसे हुआ? क्या आयु होगी ? वह किसी का पिता होगा ,किसी का बेटा ,भाई या पति होगा .परिजन की क्या दशा होगी ? यह सब सोच कर व्याकुल थी . करीब तीन घंटे बाद एक सज्जन आये और बोले बहुत गरीब था ,आयु भी मात्र १७ या १८ साल की होगी . आपलोग पैसे दे दीजिये ,हमने समझौते कर ली है .” पुलिस भी मूक दर्शक बनी हुई है .असमर्थ भी है क्योंकि गावं वाले चारों तरफ से घेरे हुए है .
वसूली आरम्भ हो गयी ,प्रत्येक गाड़ियों से वसूल करने लगे .आप विश्वास नहीं करेंगे लेकिन अक्षरशः सत्य है जब पैसे मनवांछित मिल गए तब उनलोगों ने बात मानी .कुछ लोग तो यहाँ तक कह रहे थे कि पैसे तो जरूरतमंद को मिलेगा भी नहीं ,कुछ रुपये देकर शेष पैसे से दारु पी लेंगे मिलकर ..अस्तु
कुछ भी हो क्या ऐसी बात न्यायोचित है ? ये मनुष्यता है ?
निजात मिली जाम से लेकिन बच्चों का करुण क्रन्दन नहीं भुला पा रही हूँ ,बुजुर्गों का तड़पना , पानी तक को तरस गए थे .
मैं जब भी अकेली होती हूँ तो चलचित्र की तरह वह घटना मेरेेेे समक्ष घूम जाता है , क्या यही मानवता है ? क्या इसीलिए भागवान ने भेजा है ? क्या जीवन की कीमत चंद सिक्के हैं ? मैं आहत हूँ ऐसे घृणित सोच से.
उदहारण तो सलमान खान के ‘हिट एंड रन’ वाली केस से भी मिलता है मानवता के क्षय होने का . ४२ साल पहले नर्स के साथ बलात्कार की वारदात पर सात साल के सजा काटकर मस्त रहने वाले से भी, जब की नर्स ४२ साल तक कोमें में रहकर दम तोड़ देती है. ढेर उदहारण है इस तरह के जहाँ मानवता की परिभाषा आज बदलती हुई नज़र आती है.
आज सभी तिज़ारत में लगे है. राजनीतिज्ञ हों ,शिक्षक हों, समाज सेवी हों,पुलिस हों, या धर्म के ठेकेदार , हर कोई तिज़ारत में लीन है.
तिज़ारत ही महत्वपूर्ण हो गया है. चाहे वह लाश पर ही क्यों न हो !
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