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नशा एक अभिशाप

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नशा का नाम सुनते ही मन में अजीब छटपटाहट और घबड़ाहट होती है। नशा की लत में एक चर्चित परिवार का सर्वनाश होते मैंने देखा है; काल का ग्रास बनते देखा है. प्रतिष्ठित परिवार का , प्रख्यात पिता के पुत्र देवेंद्र शहर के बहुत बड़े साहित्यकार थे। पांच पुत्रों और एक पुत्री के पिता शहर में साहित्य के प्रतिष्ठित वयक्ति थे, जिनको बच्चे से बुजुर्ग और अनपढ़ से विद्वान सभी आदर देते थे। लोग अपने बच्चों को यह भी कहते थे कि देवेंद्र की तरह बनना है। उनके बच्चे भी मेधावी तो थे लेकिन माता-पिता के प्रति बहुत निष्ठुर थे. चारों बेटे और बेटी का विवाह हुआ और सभी अपने -अपने घर बनाकर माता-पिता के ऋण से भी मुक्त हो गए। छोटा महेश अपने माता -पिता के साथ रहता था, देवेंद्र बाबू को सदा इस बात का दुःख रहता था कि चारों बेटे उनसे विलग हो अपना घर बसा लिए थे इसका बहुत दुःख था सदा मायूस रहा करते थे। छोटे बेटे के पास रहने से तसल्ली तो थी ,लेकिन बेटे को नशे की लत थी ये वे जानते थे इसलिए आकुल रहा करते थे।

 

 

लेकिन सहारा भी तो वही था हमेशा पैसे माँगा करता था ,वे दे दिया करते थे। एक दिन सुबह सुबह पैसे माँगा वे मना कर दिए, दोपहर में वे अपने दोस्त को लाने गए स्टेशन गए, वहाँ महेश को गले में उत्तरी डाल पैसे मांगते देख और यह कहते सुन कि माँ का देहान्त हो गया कुछ रुपये दे दो। यह देख वे अपने दोस्त को घर लाये किसी तरह ,संयोग था कि वह देख नहीं सके ऐसा उन्हें ज्ञात हुआ। रात में खाना खाकर सोने आये तो पत्नी को दुःख होगा यह सोच कुछ कह नहीं सके और सोचने लगे कि मेरा बेटा इतना घृणित कार्य करेगा ? किस अपराध की सजा ईश्वर ने दी मुझे कि ऐसे बच्चे हुए ,कितने अरमान से पाला था बच्चों को  हे ! ईश्वर अब क्या करूँ ? रात्रि के दो बजे करीब पत्नी सोमा कराहने की आवाज़ सुन नींद से जग गयीं पति को सीने पकड़ व्याकुल देख सबको उठाये ,दोस्त डॉक्टर को बुलाने गया ,बेटे महेश को बस इतना ही कह पाए बेटा माँ का ध्यान रखना और अपना भी गलत आदत इतना ही कह पाए और डॉक्टर के आने से पहले सदा के लिए चिर निद्रा में सो गए। कोहराम मच गया ,दुःख के सागर में डूब गए सभी .अस्तु .सभी बच्चे आ गए, अंतिम संस्कार के बाद श्राद्ध कर सभी माँ को महेश के पास छोड़ चले गए।

 

देवेंद्र बाबू के दोस्त जाते वक़्त महेश से बोले -बेटे माँ का ध्यान रखना ,स्टेशन पर तुम्हारे पापा तुम्हारी करतूत देख लिए थे, बेटा सुधर जाओ अपने कुल का ध्यान रखो ,माँ के लिए गलत आदत छोड़ दो। महेश रोने लगा ,क्षमा मांगने लगा, इसपर उन्होंने कहा -कोई नहीं सुबह का भूला शाम को घर लौट आये तो भूला नहीं कहते, यह कह उन्होंने उसे कम्पनी में नौकरी भी दिलवा देने का आश्वासन दे दिया। महेश सुधर भी गया नौकरी भी मिल गयी ,एक साल तक सब सही रहा ,माँ भी प्रसन्न रहने लगी।

 

एक दिन वह ऑफिस से घर आ रहा था मार्ग में एक पुराना साथी मिल गया, वह अपने साथ जिद्द कर ले गया महेश के मना करने पर भी उसके मित्र बबलू ने हठ करके शराब पीला दी। अब तो फिर से वह पीने लगा, धीरे धीरे वह घर का सामान बेचने लगा। माँ के मना करने पर झगड़ा करने लगता था ,माँ विवश थीं ,करतीं भी क्या। एक दिन माँ को रोते देख उसे पुनः पश्चाताप हुआ ,वह प्रण कर लिया कि अब नहीं करूँगा नशा कुछ दिन तक सब ठीक रहा .एक दिन माँ ने कहा -बेटा आज जल्दी घर आ जाना ,मन्दिर चलना है ,एक लड़की को देखना है तेरे लिए। हंसकर कहा महेश ने क्यों माँ अब रोटी नहीं बनती आप से आ जाऊँगा नियत समय पर।

 

माँ तैयारी करने लगी शाम की रात के आठ बज गए महेश नहीं आया तो यह सोचा कि मन्दिर आ जायेगा ,वह मन्दिर चली गयी ,१० बज गए वह नहीं आया तो वह लड़की देख उसे अंगूठी पहना अगले दिन मिलने का वायदा कर घर आ गयी। रात्रि के बारह बजे तक नहीं आया तो फ़ोन की बेटे को ,नशे की आवाज़ सुन करुणा से भर गयी और सोचने लगी इसके अतिरिक्त मेरे पास कहीं आश्रय भी नहीं है ,बेटी माँ का दुःख समझती है ,मेरी बेटी तो निर्दय है ,उन्हें याद आने लगा कि उनकी बेटी के साथ जॉइंट अकॉउंट था ,बहुत कठिनता के साथ ५० हज़ार रुपये जोड़ रखी थी ,बेटी ने सारे रुपये निकाल लिए ,पूछने पर कभी न आने की धमकी दे अपने घर चली गयी। अपने नसीब को कोसने लगीं कि मेरे संतान ऐसे क्यों हो गए ,किस पाप का दण्ड ईश्वर दे रहे हैं।

 

इतने बड़े विद्वान और परोपकारी मानव की ऐसी संतानें .विवश हो वह रोने लगीं .इतने में दरवाज़े पर दस्तक सुन दरवाज़ा खोलने गयीं तो नशे में धुत्त बेटे को देख और भी व्यथित हो गयीं। महेश आते ही सारी जायदाद अपने नाम करने को कहा, उनके मना करने पर धक्का दे दिया माँ को माँ गिर पड़ीं ,नशे में बड़बड़ाता वह उठाने गया तो खून से लथपथ माँ को देख घबरा गया माँ माँ कह रोने लगा। माँ मुझे माफ़ कर दे दोस्त कोल्ड्रिंक्स में डालकर पीला दिया उसे रुपये की आवश्यकता थी,उसी ने जायदाद मांगने को कहा था। अब गलती नहीं करूँगा ,उठ न माँ ,उठ न .माँ होती तो कुछ कह सकती ,वह तो सदा सर्वदा के लिए यह लोक छोड़ पर लोक चली गयी थी। वह बिलखने लगा ,बार बार कान पकड़ माफ़ी मांगता ,ग्लानि से अभिभूत हो वह उठा और अलमारी से पिस्टल निकाल अपने को गोली मार ली। गोली की आवाज़ सुन पडोसी सब आ गए ,रक्त रंजित माँ के शव पर बेटे के शव को देख दुःख मिश्रित भयाक्रांत हो कांपने लगे। जितनी मुँह उतनी बातें करने लगे सब। मैं मूक हो सोच रही थी कि नशा रूपी भयानक रोग ने एक परिवार को काल का ग्रास बना लिया ,कोढ़ से भी भयानक रोग है यह नशा, दि आज नशामुक्त भारत हो गया होता तो तो आज इस परिवार का सर्वनाश नहीं होता।

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