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निकाह रजामंदी से और तलाक – तीन तलाक से

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वाह रे न्याय ! निकाह तो बिना कुबूल है, कुबूल है, कुबूल है कहे बिना नहीं हो सकती अर्थात रजामंदी के बिना शादी नहीं हो सकती पर तलाक एकतरफा तीन उच्चारण से कायम हो जाता है ! शौहर जब चाहे तीन बार बोले या आजकल तो बोलना भी नहीं है , चिठ्ठी लिखकर या एसएमएस करदे या व्हाट्सएप्प कर दे या मेल कर दे तो तलाक हो जाता है. इक्कीसवीं शताब्दी का सबसे बड़ा कलंक ! महिलाओं के मानवाधिकार का हनन. एक तरफ लोग कहते हैं स्त्री-पुरुष बराबर है और दूसरी तरफ महिलाओं को कभी भी तीन तलाक से अलग कर देने की परंपरा वह भी धर्म के नाम पर ! शरीयत का हवाला और मानवाधिकार हनन का अधिकार ?
किसी कबीलियाई ज़माने का कानून आज के परिपेक्ष में भी उपयोगी मात्र इसलिए करार दे दिया जाता है क्योंकि यह पुरुषों को तुष्ट करता है ! फिर यह हिंदुस्तान में ही क्यों चलन में है , जबकि दुनियां की २२ से ज्यादा मुस्लिम और गैर मुस्लिम देशों में इसे गैरकानूनी करार दिया गया है?
पाकिस्तान और भारत में मुसलमानों की संख्या करीब-करीब बराबर है फिर भी पाकिस्तान जैसे देश में महिलाओं को इस बराबर कानून से मुक्ति मिल चुकी है लेकिन हमारे यहाँ शरीयत के आड़ में यह प्रचलित ही है., बांग्लादेश,ईरान,इराक,इंडोनेशिया, तुर्की,साइप्रस,ट्यूनीशिया,अल्जीरिया,मलेशिया,मिस्र ,सूडान,यूनाइटेड अरब अमीरात,जॉर्डन,क़तर और श्रीलंका सभी देशों में इस परिपाटी को अवैध करार कर दिया गया है.
भारतीय संबिधान के अनुच्छेद -१४ के तहत भारत के मुसलमानों(औरतों, महिलाओं) को इस दायरे में क्यों नहीं लाया जा सकता? मुस्लिम पर्सनल लॉ मात्र मुस्लिम पुरुषों की हित की ही बात क्यों देखता है? और यह मुस्लिम पर्सनल लॉ क्या बहुत असामयिक नहीं हो चूका है?
तीन तलाक प्रतिबंधित किये जाने से मुस्लिम महिला की स्थिति सुदृढ़ होगी. महिलाओं को आश्रयहीन होने का भय नहीं रहेगा. मुस्लिम महिला का सम्मान बढ़ेगा,आत्मबल में वृद्धि होगी. मुस्लिम नारी अपने को सुरक्षित अनुभव करेगी. तीन तलाक पर रोक लग जाये तो यह अत्यंत सराहनीय कदम होगा. सतत मुस्लिम महिलाओं का जीवन भय के साये में व्यतीत होता है. वे सब खुलकर बोल भी नहीं पातीं. अपने ऊपर होते अत्याचार के विरुद्ध आवाज भी नहीं उठातीं. हर प्रातःकाल अल्लाह से यही दुआ मांगती होंगी की हे अल्लाह ऐसी कोई घटना न हो जिससे तलाक की नौवत आये . यदि भूलवश कुछ अपराध हो जायेगा तो पति क्रोधित होकर तलाक न दे दें. यदि तीन तलाक बोल दिए तो मेरा क्या होगा? आश्रय छिन्न-भिन्न हो जायेगा. क्रोधवश दिया गया तलाक को पुनः ठीक करना कितना घिनौना होता है ? कहने को तो “हलाला” पर दुसरे मर्द के साथ एक रात बिताना -उफ़! असम्भव और घिनौना भी.अस्तित्व लुप्त-प्राय हो जायेगा . मृतप्राय हो जाऊँगी. अगर इस तरह की आसान और सरल तरीका से तलाक न हो सकता तो शायद क्रोध शांत होने के पश्चात या आपसी बात-चित के जरिये समझदारी के बल पर पति-पत्नी वैसे ही संग-संग रहने लगते पर इस तीन तलाक से तो उन्हें हलाला जैसे गन्दी अनुभवों से …..
बाल्यकाल में एक फिल्म देखी थी-“निकाह “. आज भी उस फिल्म की पटकथा मेरे मानस पटल पर अंकित है .उसी समय से मैं इस प्रथा को पसंद नहीं करती .मैं विरोधी हूँ ,इसमें मानवीय संवेदना का नितान्त आभाव है . मेरी एक सहेली के साथ भी ऐसी ही घटना घटित हुई थी .दूरदर्शन पर तलाक तीन वाली न्यूज़ देखकर वर्षों से सुप्त पड़ी वह वारदात आँखों के समक्ष घूम गयी .अपनी सहेली की दारूण स्थिति की याद से विह्वल हो जाती हूँ .उसका छटपटाना ,व्याकुलता ,दर्द मैं कभी भी भूल नहीं पाती .पति से उत्कट लगाव था ,जिससे विलग होने में उसके तड़प को भूल नहीं पाती ,जब उसके पिता उसे ले जा रहे थे दुबई , तो उसकी बेबसी को भूल नहीं पाती ,घर के कोने कोने को सजाने वाली स्वयं आश्रयहीन होकर अपने घर को कौन कहे देश ही छूट गया .किसी ने हलाला करने की सलाह दिया .मेरी सहेली ने अस्वीकार कर दिया कि नहीं मैं यह नहीं कर सकती ,मैं एकनिष्ठ रहूंगी फ़रहान के प्रति .उसकी गलती नहीं है ,वे तो क्रोधवश भूल कर बैठे .मैं घर से जा रही हूँ दिल से नहीं .मैं सम्पूर्ण जीवन फ़रहान के मधुर स्मृति तथा बच्चों की परवरिश में व्यतीत कर लूंगी .
यह कुछ अहंकारी मुस्लिम पुरुषों की करतूत है की वे महिलाओं को अपने समकक्ष देखना पसंद नहीं करते हैं. पर जबतक समानता नहीं होगा , जब तक सारे नियम और कानून सभी केलिए एक नहीं होगा तब तक मोदीजी का – ” सबका साथ सबका विकास” का नारा सफल कैसे हो सकता है? एक समुदाय के आधे हिस्से के लोग अगर पीड़ित रह जायेंगे तो हम प्रजातंत्र के साधक कैसे होंगे? अतः देश हित की चाहना रखने वाले इस तीन तलाक का जरूर विरोध करेंगे.
हिंदुओं में भी बहुपत्नी(बहुविवाह) का प्रचलन था पर अब यह कानूनी रूप से मान्य नहीं रहा तो मुस्लिम को भी इस तीन तलाक और बहुविवाह वाली कुप्रथा का अंत करना चाहिए. कुरान का हवाला देते हुए बहुत सारे मुस्लिम विद्वानों ने कहा है की तीन तलाक कुरान के मान्यताओं के विरुद्ध है. इसे बहुत बड़ा गुनाह माना है. उन्होंने कहा है कि -अल्लाह का हुक्म है कि तलाक उसी स्थिति में होनी चाहिए जब दोनों को एक साथ रहना कठिन हो जाये,एकसाथ जीना असम्भव हो जाये. अतः सोच-विचार तथा होशोहवास में रहकर एवं परिवार के बीच बात-चित द्वारा समाधान न होने पर कानून की सहायता से तलाक का आधार हो तो ये सभी के हित में होगा.
अतः जिस तरह निकाह के समय दोनों पक्षों की रज़ामंदी सारे समाज के मध्य मांगी जाती है और निकाह के लिए जब तक दोनोंका कुबूलनामा नहीं मिल जाता निकाह नहीं होता है , ठीक उसी तरह जब तलाक की स्थिति हो तो दोनों पक्षों की रजामंदी का प्रावधान क्यों नहीं हो? केवल पुरुष के चाहने भर से तलाक क्यों हो?
निकाह रजामंदी से और तलाक तीन तलाक से और वह भी एकतरफा!!!!

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