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न्याय में देर से होता है अन्धेर.

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बंगाल में ७० वर्षीया नन के साथ बलात्कार की घटना सुनकर शर्म से सिर झुक गया होगा आज संपूर्ण भारतवासियों का . क्या यही मानवता है ? इतनी हृदय विदारक घटना ? यह नृशंस घटना तो निर्भया -कांड से भी घृणित है . ७० वर्ष में तो नानी -दादी की गरिमा से विभूषित हो जाती है नारी . इस पवित्र वयस में यह दुर्घटना. नन तो वैसे ही तपस्विनी सदृश होती है. उनके साथ ऐसा कुकृत्य . क्या चेतना सुषुप्त हो गयी है या विलुप्त ही हो गई है . ऐसे नर- पिशाच को तो भयानक मौत मिलनी चाहिए . सरकार सो रही है क्या , कब जागेगी ? पहले बेटी, माँ, बहन कलंकित होती ही रही हैं अब नानी दादी भी…. किस ओऱ जा रहा है समाज ? क्या महिला के त्याग का यही है सम्मान. अभी अभी महिला -दिवस समाप्त हुआ है क्या यही सौगात मिला है ,हम महिलाओं को ?
कभी बच्ची ,कभी किशोरी ,कभी ,युवती के साथ दिल दहलानेवाली वाली घटना आघात पहुंचाती ही रहती थी. आज ७० वर्षीया नन के साथ . लिखते हुए शर्म से सर झुक रहा है. क्या हम ऐसे दरिंदो के मध्य जीवन जी रहे है, हमारा देश मूक दर्शक ही बना रहेगा ? कुछ दिन अख़बार /समाचार की सुर्ख़ियों में रहेगा . कुछ बातें होंगी फिर सब शांत होकर अगले सुर्ख़ियों की प्रतीक्षा करेंगे . लगता है संपूर्ण देश में केवल नागालैंड के मानव में ही चेतना है .पब्लिक ने जो अभियुक्त को सजा दी थी . सराहनीय कदम था. इस घटना ने हमें यह सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या हम इसी देश के निवासी हैं जहाँ अनगिनत राक्षसों ने अपना डेरा जमा रखा है. कुछ दिन तो सरकार अनर्गल प्रलाप करती रहती है फिर ठन्डे वस्ते में डालकर निश्चिन्त हो जाती है. तभी फिर एक और घटना सामने आजाता है और पहले वाली दुष्कृत्य की परछाई भी विलीन हो जाती है. और फिर हमारा समाज आगे फिर कुछ होने की प्रतीक्षा करने लगता है. ऐसा मुझे इसलिए लगता है क्योंकि अपराधियों को सजा देने में हमारे यहाँ अनावश्यक देर लगती है.
सजा घोषित होने पर भी सजा नहीं दी जाती है और अपराधी जेल में आराम से समय व्यतीत करता रहता है. सोचता होगा कब निकलूं और पुनः अपराध करूँ . वकील साहब हैं उन्हें अगर ढेर पैसे दी जाये तो सच को झूठ साबित करने में माहिर तो वे होते ही हैं. सजा मृत्यु दण्ड की घोषित हो जाने के बाद भी हम उम्र कैद में बदलवा लेंगे या यूँ ही कुछ दिन गुजरने के बाद हमरी डॉक्यूमेंट्री बनेगी देश विदेश में दिखाई जाएगी . हम प्रशिद्ध हो जायेंगे. नाम तो होगा . कहावत है ” कुकर्मे नाम की सुकर्में नाम”. बस फर्क है की सुनाम है या बदनाम ! नाम तो होगा ही.
सजा में देरी अर्थात अन्याय अंग्रेजी में कहावत है – JUSTICE DELAYED IS JUSTICE डिनाइड.
अर्थात न्याय में देरी होना न्याय नहीं देने के बराबर है .सजा मुजरिम को किसलिए दी जाती है कि वह डरे , लोग डरे और अपराध में अंकुश लगे ,लेकिन जब अपराधी को दण्डित होने में वर्षों लग जाते हैं तो अपराधी भय से मुक्त रहता है और समाज में अपराध करने पर दण्ड मिलने का भय समाप्त हो जाता है और असामाजिक -तत्व पुनः अपराध करने पर उन्मुख हो जाता है .
सम्भवतः देर से न्याय मिलाना ,अपराधी के सजा में विलम्ब होना भी एक कारण है जिससे हमारे देश में अपराध पर अंकुश नहीं लग रहा है.
अतः मेरी धारणा है अपराधी को यथाशीघ्र उचित सजा मिलना चाहिए .तब ही अपराधी डरेंगे और समाज अपराधमुक्त हो पायेगा
“लड़कियों का पहनावा महिलाओं के परिधान अपराधियों को बलात्कार के लिए आकर्षित करता है” ,कहनेवाले तथाकथित सामाजिक ठेकेदारों के मुंह पर यह करारी तमाचा है जब अपराधी ७० वर्ष के नन के साथ ऐसा घृणित कुकृत्य कर सकता है, नन के पहनावे में तो कोई नग्नता नहीं होती फिर उन तपस्वनी के साथ बलात्कार क्यों ?
निर्भया -कांड में अगर अपराधियों को सजा मिल गयी होती तो शायद अपराध में कमी हो गयी होती और यह घटना हमें शर्मशार नहीं करती .
आइये देशवासी मिलकर कुछ सोचें इस वीभत्स घटना को रोकें इस दुर्घटना को रोकने के लिए अगर भारत बंद करना हो तो करें ,हड़ताल करना है तो करें सबको मिलकर आमरण अनशन करना होगा तो करें,अन्ना हज़ारें की तरह आंदोलन करना हो तो करें कुछ भी करें. आइये एकजुट होकर इस समस्या के निदान के ली कृत संकल्प करें और देश कि महिलाओं को इससे निजात दिलाये जिससे महिलाएं सुरक्षित होकर स्वतंत्र होकर सांस ले सकें ,अपना जीवन जीयें जहां किसी भेड़ियों का डर न हो .

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