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भारत – नेपाल का आत्मिक सम्बन्ध (भूकम्प -त्रासदी का सन्दर्भ )

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मैं, भारत की बेटी और नेपाल की पुत्रवधू , भूकम्प के समय में नेपाल में ही थी .बहुत कुछ अपनी आँखों से देखा. और वहाँ सहायता में लगे भारतीय भाइयों को भी देखा . मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि प्रधान मंत्री मोदीजी ने जो सार्थक भूमिका निभायी है ,नेपाल के पीड़ितों को सहायता देने में वह भुलाई नहीं जा सकती है . इसके साथ ही बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमारजी ने रक्सौल से जो विविध तरह के खाद्य सामान और दवायें भेजी है ,व्यक्तिगत अपना ध्यान दिया है ,यह भी भूलने की बात नहीं है .
BHUKAMP RAHAT
भूकम्प की त्रासदी से सम्पूर्ण नेपाल तहस -नहस हो गया है .मैंने रोते- बिलखते मानव को देखा है .वहाँ कई दिनों तक लोगों ने टेंट के नीचे समय बिताया है .दाने- दाने के लिए तरस गए थे .पानी की अनुपलब्धता से सभी प्यास से व्याकुल थे . भूख से व्याकुल लोग ५०० ५०० रूपये में चाऊ चाऊ खरीदते थे , काठमांडू में पढ़ने गए छात्र के पास इतनी महँगी चीजें खरीदने हेतु पैसे भी नहीं थे . बुजुर्ग की स्थिति और भी दयनीय थी ,शारीरिक रूप से भी कमजोर थे , विकलांगों की तो और भी दुःखद स्थिति थी. वे लाचार थे . अर्थात अत्यन्त भयावह स्थिति थी . राहत सामग्री भी सबको नहीं मिल पा रहा थी . असंख्य मानव इस त्रासदी के शिकार थे . हज़ारों शव मलवे के नीचे दब गया था .दहशत में थे मानव .भूकम्प के आने से भगदड़ मच गयी थी , अनेको घायल हो गए,

सबके विषय में लिखना असम्भव है ,एक दो घटना का उल्लेख कर रही हूँ ,मेरी ननद बेटी दसवीं की परीक्षा देकर काठमांडू गयी थी .भूकम्प आया तो बच्ची बेहोश हो गयी .स्वस्थ होने के बाद जब घर लौटी तो भीषण दहशत में थी ,कांप रही थी ,हमसे ऐसे लिपटी की मै व्यक्त नहीं कर सकती आज भी याद करके विह्वल हो जाती हूँ मैं .ऐसे अनेकों बच्चे ,बच्चियाँ ,बुजर्ग युवक -युवतियाँ अभी भी सदमें में हैं .

एक सज्जन अपनी आप बीती सुना रहे थे ,उनके कथनानुसार वे घर में अकेले थे अचानक भूकम्प आ गया उनका घर ढह गया था. मात्र एक पीलर बचा था ,वे सज्जन उसे पकड़कर खड़े थे ,जब खम्बा हिलने लगता था तो उन्हें ऐसा प्रतीत होता था अब जान नहीं बचेगी ,खैर जीवन बच गयी थी ,पर चेहरे पर मौत का खौफ था ही .उनके विषय में याद करके मै भी उनके साथ घटित त्रासदी से भयाक्रान्त हो जाती हूँ .कितना लिखूं ,सब लिखना असम्भव है .अनेकों के सपने टूटे ,अनेकों ने अपनों को खोया ,कितने के ख्वाब अधूरे रह गये ,कितने अपनों को बिलखते ,तड़पते देखा .

मैं जब तक रही सर्वत्र भूकम्प की ही बातें होती रही .ऐसी कठिन परिस्थिति में भी कृतज्ञ थे तो अपने पडोसी देश भारत के प्रति .हमारे प्रधानमंत्रीजी की सहृदयता की , बिहार के मुख्यमंत्री जी की उदारता की .

एक सच्ची घटना का उल्लेख मैं कर रही हूँ ,आरम्भ से ही जब हमारे देश की गाड़ियाँ बॉर्डर पार कर नेपाल जाती है तो प्रतिदिन ३०० रूपये लिए जाते है ,साथ में घंटों जाँच -पड़ताल . मुझे यह पसन्द नहीं था क्योंकि हमारे देश के बॉर्डर पर सामान्य पूछ -ताछ होती है . अजीब घुटन होती थी मुझे कि क्यों अकारण परेशान करते हैं . अस्तु
इसबार नियमानुसार रूपये तो लिए ,लेकिन जहाँ घंटों व्यर्थ हो जाते थे ,इसबार मात्र १० मिनट में कार्य हो गया .जनकपुर में मिलिट्री फ़ोर्स वाले ने जैसे ही गाड़ी को रोका अकस्मात मेरे मुख से निकल गया -अब भी भारत की गाड़ी रोकते हैं ? जबकि हम भारतवासी पडोसी नहीं आपसबको कुटुम्ब मानते है ,आप सब विश्वास नहीं करेंगे उसने कहा -‘बुरा मान गये ,क्षमा कीजिये आप जाइये’ . जब तक हम रहे किसी ने नहीं रोका .इतना ही नहीं लौटने पर बॉर्डर पर किसी ने नहीं रोका . मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई . आज भारत की उदारता ने सबका मन परिवर्तित कर दिया ,सबका मन जीत लिया .

अब आवश्यकता है नेपाल के पुनर्निर्माण में सहयोग देने की . सम्पर्क साधन और बिजली की व्यवस्था चरमरा गयी है . जानकी मंदिर में जो क्षति हुई है उसका पुनः निर्माण हो ,काठमाण्डू ,पोखरा आदि सभी स्थानों की जो व्यवस्था ध्वस्त हो गयी है उसको पहले वाले रूप में लाने के लिए भारत की आवश्यकता है. हर तरफ निराशा ही निराशा व्याप्त है .मनोबल बढ़ाने की आवश्यकता है .
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है बड़े भाई होने के नाते भारत अपने कर्त्तव्य का पालन कर अपने उजड़े परिवार को बसायेगा .

भारत सदैव अपने परिवार की तरह नेपाल को सहायता करता आया है और आजीवन करता रहेगा . हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी तथा बिहार के मुख्यमंत्री जी तथा हमारे सैनिक भाइयों,एन डी आर ऍफ़ की टीम ने जो नेपाल की सहायता की है ,अविस्मरणीय रहेगा ,युगों तक नेपाल याद करेगा .मोदी जी ने देश का मान बढ़ाया है विशेषकर मैं अपने को गौरवान्वित अनुभव करती हूँ कि मैं इस देश कि बेटी हूँ जहाँ ‘ बसुधैव कुटुम्बकम ” अक्षरशः सार्थक तथा सत्य है.

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