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जीवन का हर पल निराला
उषा काल में पक्षियों के कलरव से उल्लसित होता मन
आदित्य की मनमोहक लालिमा से आलोकित होता मन
अपनो के कर कमल से चाय की चुस्कियों से तारो-ताजा होता मन
घर में बच्चों के होने के आभास से तृप्त होता मन
इश्वर की अर्चना से भक्तिमय होता अंतर्मन
इश्वर प्रदत प्रकृति से हरित होता मन
सर्व जन के मधुर वचन से सुमधुर होता मन
मात्री-पित्री स्नेह-छाया , आशीर्वाद आकांक्षी मन
हर पल हर क्षण अनमोल वात्सल्यता से ओत-प्रोत हमारा मन
कब किसलय से पल्लवित हो जाता नहीं जानता यह मन
कुछ कर गुजरने की तम्मना से लब-लब यह मन
हर घडी हर पल जी लेने का मन
पता नहीं कब गुजर जाता
और अवकाश लेने का होता मन
वृद्धावस्था की गरिमा से
सबको शिक्षित करता मन
आशीष लेते-लेते कब देना आरंभ हो जाता
अज्ञात है रे यह मन .
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