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ममतामयी मदर टेरेसा

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Mother Teresaआज ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया जाना तय होने की खबर पढ़कर अत्यंत प्रसन्नता हुई. उन्हें संत की उपाधि की शायद कोई आवश्यकता नहीं है , वे तो सही अर्थों में संत थीं. मानव सेवा जिनके जीवन का एक मात्र लक्ष्य हो वह तो संत नहीं महा संत हैं.
चकित करने वाली बात यह हो न हो कि किसी का टियूमर उनके प्रार्थना से ठीक हो गया या नहीं पर आस्था बहुत महत्वपूर्ण होता है. उन्होंने जो सेवा मानवों बल्कि दुखी मानवों की की थी वह अपने आप में चमत्कारी सेवा था. इस युग में इस तरह का उदाहरण अन्यत्र कहीं नहीं दीखता है.
मदर टेरेसा इस धरातल पर महान विभूति के रूप में अवतरित हुईं थीं. जो सदा मानव हितार्थ , कल्याणार्थ संलग्न रहती थीं. समाजसेविका के रूप में मदर टेरेसा को जो गौरव इस संसार में प्रदान किया गया वह अन्य किसी भी मानव को आज तक प्राप्त नहीं. शक्ति स्वरूपा थीं. महान सेविका थीं. मानव के कष्ट को देखकर द्रवित हो जाना इनकी महानता को परिलक्षित करता है. इस संसार में असंख्य मानव आते हैं, और जीवन-यापन करके चले जाते हैं किन्तु कतिपय ही ऐसे प्राणी विश्व के रंगमंच पर आये जिनका नाम और यश अनंतकाल तक धरा पर स्थिर रह सका , मदर टेरेसा अग्रगण्य हैं, जिन्होंने सम्पूर्ण जीवन पीड़ित मानव की सेवा में ही व्यतीत कर दिया. ऐसी महान विभूति किसी एक देश अथवा जाति की नहीं हो कर वरन अपनी क्रियाकलाप से समस्त मानव-जाति के कल्याणार्थ जन्म ले कर धरा की अनमोल नक्षत्र सदृश होती हैं. मानव की सेवा को ही धर्म मानकर सच्ची पूजा को मानाने वाली ममता की मूर्ति मदर टेरेसा पर समस्त धरा के मानव को गर्व है. इनका नाम आगनेस गोंवसा बेयायु था. यूगोस्लाविया के स्कोपले नामक स्थान पर जन्म हुआ था. बाल्यकाल से ही पीड़ित मानव को देख कर व्याकुल हो जाती थी. मात्र १२ वर्ष की आयु में ही सन्यासिनी का जीवन यापन करने की इनकी इच्छा थी. भारत में इनका आगमन २८ नवंबर १९२८ को हुआ. कोलकाता के संत मेरी हाई स्कूल में शिक्षण कार्य हुआ. बाद में वहीँ प्रधानाचार्य बन गयीं. उनके लगन एवं परिश्रम से सभी चकित थे. १९८१ में अपना अग्नेस नाम परिवर्तित कर टेरेसा रख लिया. समस्त जीवन ईश्वर एवं अनाथ मानव की सेवा में समर्पित करने का प्रण ले लिया. कुष्ठ रोगियों , कोढ़ियों की सेवा में निरंतर लगी रहीं. तिरस्कृत उपेक्षित एवं अनचाहा व्यक्ति मनोरोगी हो जाता है. मनोरोगी शारीरिक रूप से अत्यंत कठिनता से स्वस्थ हो पाता है. दरिद्र अस्वस्थ तिरस्कृत और उपेक्षित मानव के प्रति उनका लगाव था. जो सच्चे रूप से उनसे प्रेम करेगा उसे निश्चयेन ईश्वर की प्राप्ति होगी. निर्मल हृदय होम की स्थापना किया जिसमे विकलांग मनोरोगी निराश्रित , कोढ़ियों का आश्रय स्थल बनाया गया. कुष्ठ रोग्यालय की भी स्थापना कर दर-दर भटकनेवाले बेसहारा को आश्रय दिया.
मदर टेरेसा ने शांतिगृह की भी स्थापना की . उसमें भी अनेक निराश्रित रोगियों का आश्रय देकर उनका उपचार भी करवाया. उनके साथ अनेकों सन्यासिनों ने सेवा व्रत लेकर दलितों पीड़ितों की सेवा करती रहीं. इन्हें नोवेल पुरष्कार से सम्मानित किया गया. अनेकों पुरष्कार से इन्हें सम्मानित किया गया. आजीवन मानव की सेवा में लीन रहीं. ऐसी निःस्वार्थ और परोपकारी महिला सदी में विरले ही होती हैं. उनके निःस्वार्थ प्रेम को हम भारतवासी सर्वदा याद रखेंगे. उन्हें सतशः नमन.

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