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मेडिकल शिक्षा

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Doctor भ्रष्टाचार के कारण मेडिकल शिक्षा के गुण स्तर से समझौता कर व्यापारियों को धन कमाने हेतु मेडिकल कॉलेज खोलने को अनुमति दिया जाता है , यही कारण है कि देश में कुकुरमुत्ते की तरह स्तरहीन मेडिकल कॉलेज का विस्तार हो रहा है .
स्वाभाविक ही है व्यापर अर्थोपार्जन के लिए ही किया जाता है , अतः इनकी प्राथमिकता होती है कैपिटेसन फी और ट्यूशन फी के माध्यम से धनोपार्जन न कि गुणात्मक शिक्षा . यह सभी निजी संस्थानों में आवश्यक नहीं लेकिन अधिकांश संख्या इसके अंतर्गत आता है .
हमारा देश क्या अधिक देशों में अध्ययन ही धन कमाने के लिए करते हैं ,अतः जब मोटी रकम देकर डॉक्टर बनते हैं तो मरीजों से वसूल तो करेंगे ही . यदा कदा समाचार पत्रों में उल्लेखित रहता है कि मेडिकल कॉलेजों में लाखों करोड़ों रुपये में एडमिशन होता है ,बच्चे चाह कर भी डॉक्टर नहीं बन पाते . कुछ दिन पूर्व एक समाचार पत्रों में छपा था ” तमिलनाडु में एम बी बी एस की फीस दो करोड़ रुपये ” तमिलनाडु के निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की फीस में करीब दुगुनी की वृद्धि हुई है ,अब यहाँ के अच्छे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए १.८५ करोड़ रुपये की फीस देनी होगी .नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट(नीट) के रिजल्ट जारी होने के बाद फ़ीस में वृद्धि हुयी है. जानकारी के मुताबिक इस १.८५ करोड़ की फ़ीस में करीब एक करोड़ रुपये ट्यूशन और ८५ लाख रुपये कैपिटेशन फी है. देश भर के निजी मेडिकल और डेंटल कालेजों में नीट के आधार पर ही दाखिला होने के नियम लागू होने के बाद निजी कालेजों ने फीस में यह वृद्धि की है. नए नियम के मुताबिक छात्र अलग- अलग कालेजों में आवेदन कर सकते है लेकिन दाखिला नीट में रैंक के आधार पर ही होगा. कुछ कालेज ने तो अभिभावकों से स्पष्ट रूप से कह दिया है की उन्हें कैपिटेशन फीस के रूप में ४० से ८५ लाख रुपये का भुगतान करना होगा.
चेन्नई स्थित एक कालेज का वार्षिक फीस २१ लाख तक है. यूपी के १९ निजी मेडिकल कालेज एवं २५ निजी डेंटल कालेज की भी फीस आम जनता के पहुँच से बाहर है. यह सालाना १४ लाख तक पहुँच गया है.
यह आकलन तो मात्र दो राज्यों का है ,और राज्यों की भी तो यही स्थिति होगी .मात्र दाखिले के लिए इतनी मोटी रकम ? कहाँ से आते हैं इतने पैसे ? हम किस और जा रहे हैं ? भारत में ऐसे कितने लोग होंगे इतनी मोटी रकम देनेवाले ! अपने बच्चे के भविष्य सुरक्षित रखने के लिए दे भी दें अपनी जीवन की संचित धन राशि, तो भी क्या गारंटी है कि वह बच्चा काबिल डॉक्टर होगा ही .जिस बच्चे की नींव ही कैपिटेशन पर आधारित होगा वह आगे चलकर क्या करेगा ? जिस घर में मात्र एडमिशन में ही इतनी बड़ी धनराशि दी जाती है उस घर में तो पैसे का ही बोलबाला होगा .जब नामांकन में करोड़ों रुपये तो आगे की फीस होस्टल चार्ज लौंडरी आदि खर्चे के लिए अतिरिक्त पैसे .कड़ोरो रुपये में एक डॉक्टर बनता है,यदि दो तीन बच्चे हों तो?? कितनी बड़ी विडम्बना है यह .डोनेशन तो हर क्षेत्र में अन्याय है .लेकिन स्वास्थ्य विभाग में तो दंडनीय अपराध होनी चाहिए .ऐसा डॉक्टर बनकर भी क्या करेगा ,गुण के आभाव में क्या उपचार करेगा? डॉक्टर को लोग ईश्वर प्रेषित मानते हैं ,कुछ कैपिटेशन के बल पर आये गुणहीन डॉक्टर को ऐसा माना जायेगा ? जिसके पास धन है वे तो किसी तरह डॉक्टर बना भी लेते हैं लेकिन कितने मेधावी के सपने अधूरे ही रह जाते हैं .कहते हैं भ्रष्टाचार मुक्त देश , क्या यह भ्रष्टाचार नहीं हुआ .सबसे बड़ा भ्रष्टाचार तो शिक्षा के मन्दिर में होता है .जिन शिक्षा मंदिरों में बच्चे का भविष्य निर्धारित होता है उन स्थानों में ऐसा अशोभनीय कृत्य !
चिकित्सा जगत में मेधावी छात्रों की आवश्यकता है न कि अर्थ के आधार पर चिकित्सक की. यदि चिकित्सक को समुचित ज्ञान नहीं होगा तो उचित उपचार कैसे करेंगे , सही जानकारी के आभाव में गलत उपचार करेंगे जिससे मरीज की या तो असमय म्रत्यु हो जाएगी या गलत इलाज़ के कारण अस्वस्थ ही रहेंगे .इसलिए देश को काबिल डॉक्टर की आवश्यकता है .
मेरी दृष्टि में इसकी नींव बाल्यकाल से ही निर्मित हो जाती है .कतिपय बच्चों के मन – मस्तिष्क पर इस बात का प्रभाव हो जाता है कि हमारे गार्जियन धन के आधार पर मेरा दाखिला करवा ही देंगे . हम उपयुक्त रूप से अध्ययन करें या नहीं, कारण यह है कि बचपन से ही ऐसे बच्चे देखते हैं कि उनके अभिभावक मनमानी पैसे के आधार पर प्राइवेट स्कूलों में दाखिला करवा चुके हैं .तथाकथित कुछ उच्च वर्गीय अर्थात पैसे वाले मन वांछित विद्यालयों में करवा देते हैं ,कुछ मध्यम वर्ग के अभिभावक अपने को उच्च वर्ग के पंक्ति में दिखने के लिए ,और बच्चे के मोह में कि समाज में अच्छा दिखेगा इसकारण भी जैसे तैसे जोड़-तोड़ कर धन लगाकर अपने बच्चों की दाखिला करवा देते हैं. .कुछ बच्चे के मानस पटल पर यह अंकित हो जाता है कि उनके अभिभावक निश्चित रूप से दाखिला दिलवा ही देंगे क्योंकि अबोध मन पर ये बातें अंकित हो जाता है .कहीं न कहीं इसके उत्तरदायी माता -पिता भी होते हैं. जो समय न देकर या बच्चे को अध्ययन के लिए प्रेरित न कर डोनेशन देकर डॉक्टर बनाने का दुष्प्रयास करते हैं .कुछ छात्र तो सफल होते भी हैं कुछ चकाचौंध में गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं ,कुछ की नींव इतनी कमज़ोर होती है यानी पढ़ने में कमज़ोर होने के कारण पिछड़ जाते हैं .कुछ दुकान खोलने पर विवश तो कुछ अन्य कार्य तो कुछ ऑटो चलाते हैं तो कुछ तो गलत धंधे भी करने लगते हैं .डॉक्टर बनने की तमन्ना धूल में मिल जाता है . इन बच्चों के सपने को साकार न होने के जिम्मेवार कौन? अभिभावक के साथ साथ शासन तंत्र भी है .यदि सरकारी विद्यालय की स्थिति इतनी दयनीय नहीं होती, अध्ययन की सुविधा होती और अन्य सुविधाएँ जैसे अच्छे शिक्षक, स्वच्छता ,शौचालयों की समुचित व्यवस्था अच्छा भवन आदि होता तो ये असमानता की भावना नहीं होती. कोई भी अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में दाखिला नहीं करवाता वरन सभी बच्चे एकता के भाव से सरकारी विद्यालय में पढ़ते. फिर डोनेशन देने की कोई मज़बूरी नहीं होती. सभी बच्चे सामान रूप से अमीरी गरीबी के भेद भाव से दूर साथ-साथ पढ़ते और मेधा के आधार पर उनका चयन होता.
वास्तव में यदि इन समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया गया तो कुछ वर्षों में मेधावी डॉक्टर का अभाव हो जायेगा , गुणवत्ता का लोप हो जायेगा. इस ओर सरकार को ध्यान देना होगा. अभिभावक भी अपनी संतान को गुणवान बनायें . वाल्यकाल से ही इनके गुणों पर ध्यान दें. उनके अंदर ऐसा गुण भरें की उनका दाखिला मेधा के आधार पर हो न कि लाखों -करोड़ों पैसों के बल पर.
नेपाल के समाचारों से पता चला की वहां एक डॉक्टर ‘जी. के. सी.’ महोदय नौवीं बार अनशन पर इसलिए ही बैठने जा रहें हैं की वहां की मेडिकल शिक्षा का निजीकरण के खेल में गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ हुआ है, और वह भी देश के एंटी करप्शन विभाग के मुखिया द्वारा. वह गरीब देश माना जाता है और वहां दक्षिण एशिया से पैसे वाले लोग अपने बच्चों को पैसे के बल पर मेडिकल में दाखिला दिलवाकर डाक्टरी की प्रमाणपत्र खरीदवा देते हैं. इस खेल में स्वदेशी (नेपाली)लोग भी खुल कर भ्रष्टाचार करते हैं और अपने बच्चों को मेडिकल में पढ़ाने हेतु मोटी रकम चुक्ता करते हैं. यही वजह है की हाल में ढेर सारा नकली डॉक्टर पकड़े गए थे !
आज हमारे देश में इंजीनियर के प्रमाणपत्र रखने वालों में केवल ६ से ८% इंजीनियर ही सही इंजीनियर माने जाते हैं जिनसे इंजीनियरिंग के काम की अपेक्षा की जा सकती है. इंजिनियर लोग उबेर या ओला के गाड़ी चलाते हैं , उनको नौकरी नहीं मिलती है. अगर मिलती है तो १० से २० हजार की.और ओला ड्राइवर ७० से ८० हज़ार कमाते हैं.
क्या कल यही हाल डॉक्टरों की नहीं होगी? डॉक्टर अगर सही नहीं है तो सीधा मानव जीवन से खिलवाड़ करेगा!
सरकार को चाहिए डोनेशन पर आधारित किसी भी कालेज को मान्यता न दे. इस तरह का कालेज शिक्षा नहीं देता है वरन व्यापार करता है. जहाँ व्यापार होता है वहां शिक्षा नहीं हो सकता है. विद्या दान हो सकता है, व्यापार नहीं. और अगर विद्या का व्यापार होने लगता है तो वहां मूल्य का महत्व स्वभाविक है, जहाँ मूल्य का महत्व होगा वहां विपणन होगा और गुणस्तर कायम रहे इसकी कोई गारंटी नहीं.
डा रजनीदुर्गेश

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