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मेरी माँ

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Maan शांत स्थिर जलमें जिस तरह कंकड़ फेंकने से जलमें लहरें उठने लगती है, फेंकने वाला तो आदतानुसार या कपटवश फेंकता है, लेकिन कोई उस जल से पूछे की उसे कितनी पीड़ा होती होगी . वह तो कंकड़ को भी अपना समझकर समाहित कर लेती है. माँ भी उसी तरह होती है. शांत जल की तरह अपने में समेट कर सर्वस्व न्योछावर कर देती है. संतान बड़े होने के बाद उससे विलग होकर अपनी दुनियां बसा लेते हैं , उस पक्षी की तरह अपना कार्य निकल जाने पर उड़ जाता है निर्ममता के साथ . मानव भी तनिक नहीं सोचता जो माँ नौ महीने अपनी कोख में रख कर पलित-पोषित करती है , अपना सर्वस्व समर्पण करने वाली माँ कितनी आकुल होती होगी, कितनी तड़प एवं छटपटाहट होती होगी. फिर भी शांत झील की तरह मौन हो कर राह तकना ही उद्देश्य रहता है.
जिस घर में माँ का निवास होता है वहाँ संसार की संपूर्ण ऐश्वर्य विराजित रहता है .प्रत्येक सदस्य सफलता का सोपान स्वयं ही चढ़ता है ,सफलता कदम चूमती है .नारी का जहाँ सम्मान होता है वहाँ देवता रमण करते हैं ,यह माँ के लिए ही कहा गया होगा , भगवान हर स्थान पर उपस्थित नहीं हो सकते इसलिए उसने माँ को बनाया अपना प्रतिबिम्ब .इस धरा की साक्षात जगदम्बा है .माँ बिना हर रिश्ता अधूरा है हर रिश्ते की डोर माँ होती है ,नींव माँ होती है .आधार होती वही .आज दिशा और दशा स्वार्थपूर्ण हो गयी है ,एक माँ ही ऐसा अटूट सम्बन्ध है जो निःस्वार्थ पूर्ण है ,किसी भी स्वार्थ से परे है ,मात्र ममता से परिपूर्ण होती है . इस बसुधा की सबसे मनोरम रचना है माँ
मेरी माँ प्रेम की अथाह सागर है ,दया की भण्डार है .शक्ति स्वरूपा है .मेरी माँ से ही मुझे पहचान मिली है ,काश उनकी जैसी मैं बन पाती . हर पग पर साथ खड़ी रहती है अटल चट्टान की तरह रहती है , हर विपरीत परिस्थिति में सदा मनोबल बढ़ाया है , स्मृति पटल पर बहुत घटना अंकित है उसके त्याग की ,वास्तव में उससे सहनशील बसुधा पर कोई अन्य महिला हो ही नहीं सकती . मुझे याद आ रहा है जब हम छोटे थे तो हमारा घर कुटुम्बों से भरा रहता था ,मेरे कॉलोनी में कोई भी आदमी पता पूछने किसी के पास आता था उसे मेरे घर भेज दिया जाता था क्योंकि मेरे घर में सदा अतिथियों का आगमन होता ही रहता था .मेरी माँ वास्तव में ‘अतिथि देव स्वरुप होते हैं ‘ यह मेरी माँ जानती थी . मेरे घर में रहकर कितने अधिकारी पद पर सुशोभित है ,कितने प्रोफ़ेसर तो कितने अन्य अन्य क्षेत्र में कार्यरत हैं . पापा के हर छात्रों को पुत्रवत स्नेह देती थी ,आज भी सब माँ से मिलने आते हैं ,एक बात याद आ रही है ,मेरे विवाह के बाद मेरे पति चेन्नई में जब नौकरी करने गए तो माँ मेरे साथ एक नौकर दे दी ,वह मेरे साथ रहा .मेरे पति उसकी नौकरी लगवा दी, वह नौकर कम भाई सदृश था ,जब मेरे पति का स्थानांतरण कानपूर हुआ तो वह जिसका नाम कुमार है ,वह रो रहा था साथ में यह कह रहा था ‘आज लगता है माँ से बिछड़ रहा हूँ ,दीदी आप जब तक साथ थीं तब तक लगता था माँ साथ है आज से अकेला हो गया.’. ऐसी वात्सल्यमयी है मेरी माँ .उसकी आत्मा में हम सभी भाई बहन बसते हैं . पति सेवा में साक्षात् अनसूया है , सावित्री की तरह कितनी बार कितनी बार रक्षा की है .सर्व गुणसम्पन्ना है माँ .
गौरवर्ण ,उच्च ललाट ,माध्यमकद पतली ,चेहरे पर मृदुता धीर गम्भीर उदात्त चरित्र एवं परिवार को समर्पित मोहिनी झा इस धरा की साक्षात् लक्ष्मी है. उस गौरवशलिनि की पुत्री होने का गर्व है मुझे. पंडित आद्याचरण झा की पुत्री ममतामयी इंद्रकला की सुता ज्ञानप्रकाशक श्री कृष्ण चन्द्र झा की पुत्रवधु तपस्विनी अम्बिका  की बहू , प्रखर विद्वान सतीश चन्द्र झा की भार्या भुवनमोहिनी मनमोहिनी मेरी माँ परिवार की अनमोल रत्न है. मेरी माँ मेरी जननी ही नहीं मेरी प्रथम शिक्षिका मेरी सखी अर्थात सब कुछ है.
इस पावन    अवसर पर जिन लोगों ने मातृ सदृश स्नेह दिया है उसमें मेरी दादी अम्बिका झा का महनीय स्थान है. वह हमें सदा सम्बल देकर कुछ बनने का स्नेह संस्कार दिया है. वह आज हमारे मध्य नहीं है लेकिन उसका साथ एवं उसकी अनुपम सीख जीवन पर्यन्त मेरे साथ रहेगा. उसकी आत्मा सदा मेरे संग है. स्व.नानी माँ श्रीमती इंद्रकला झा भी अत्यन्त स्नेहमयी ,ममतामयी थीं . उनका भी स्नेह और आशीर्वाद सदा मेरे संग है. स्व. मेरी बुआ इंदिरा झा भी सदैव जननी सा स्नेह दिया है. आज वो नहीं हैं हमारे मध्य लेकिन उनकी याद और आशीष सर्वदा मेरे साथ है. मेरी आंटी स्व . मंजू ठाकुर ने सदा पुत्री सा स्नेह दिया ह रक्त सम्बन्ध नहीं होने पर भी जननी सदृश प्रेम दिया है ,इस पवित्र दिवस पर उनको ह्रदय से नमन मेरी एक चाची हैं सदा मुझे ममता से सिञ्चित करती रहती हैं , जिनका नाम अजीरा झा है उन्हें माँजी ही कहती हूँ उनको कोटिशः नमन . मेरी सभी काकी , मामी एवं मौसियों को भी इस महान तिथि पर नमन उनका सहयोग एवं अनन्य स्नेह के लिए ह्रदय से नमन .
मेरी सास श्रीमती काली झा को दिल से नमन वह ममतामयी करुणामयी है ,हर कदम पर साथ देती हैं ,कभी आभास नहीं होने दिया की मैं उनकी पुत्री नहीं पुत्रवधू हूँ ‘,इस पावन दिवस पर उनको कोटिशः नमन .IMG_20160508_183003
सुन्दरता में रति सामान है मेरी माँ
तपस्या में पार्वती सामान है मेरी माँ
त्याग में पन्नों की किताब है मेरी माँ
करूणा की सागर है मेरी माँ
प्रेम की श्रोत है मेरी माँ
मेरे परिवार की पालनहार है मेरी माँ
ज्ञान की कुंजी है मेरी माँ
मेरी बगिया की माली है मेरी माँ
पवित्रता की महासागर है मेरी माँ
देश की विलक्षण नागरिक है मेरी माँ
इस बसुधा की कोहिनूर है मेरी माँ
इस पवित्र तिथि पर अपनी माँ को शतशः नमन

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