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मेरी हर सांस में पापा बसते हैं

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पिता गुरुः प्रथमो धर्मः
पोषणाध्यापनान्वितः
पिता यदा धर्मः स वेदस्वपि सुनिश्चितः
तस्मापितुर्वचः कार्यम् न विचार्य कदाचन
पातकान्यपि पूयन्ते पितुः शासनकारिणः

“अध्ययन और पोषण प्रदान करने वाला पहला गुरु पिता ही परम धर्म है. पिता जिस प्रकार का आदेश दे वही धर्म है. यह वेद में भी भली भांति सुनिश्चित है.
संतान के लिए पिता सर्वस्व है . शरीर आदि जो कुछ भी देय पदार्थ है , उन्हें केवल पिता ही संतान को प्रदान करते हैं. अतः पिता के वचन का पालन करना चाहिए. जो पिता के वचन का पालन करते हैं, उनके पाप धुल जाते हैं.”

मेरे पापा इस संसार के सर्वश्रेष्ठ पिता हैं. मेरे ही क्या मुझे ऐसा प्रतीत होता है – विश्व की हर बेटी ऐसा अनुभव करती होगी कि उसके पिता ही सर्वश्रेष्ठ हैं.
मेरे पापा मेरे हीरो हैं. अपनी भावी पीढ़ी के हर संतान को उनके तरह ही यशस्वी एवं ओजस्वी देखना चाहूंगी. क्योंकि उनके जैसा विद्वान मुझे इस धरा पर कोई अन्य नहीं दृष्टिगत होता है. जितने बड़े विद्वान उतने ही अच्छे वक्ता, अच्छे श्रोता , उतने ही अच्छे गायक और सच्चे इंसान हैं मेरे पापा. मैंने उनके जैसा दयालु मानव नहीं देखा है. मनुष्य क्या किसी पशु को भी कष्ट में देखकर वे द्रवित हो जाते हैं.
कितने ही गरीब बच्चे उनकी छत्रछाया में रहकर आज जीवन की ऊंचाइयों पर विराजित है. छात्र का मनोबल बढ़ाना कोई उनसे सीखे. अध्ययन शैली इतना सरल है कि औसत बुद्धि के छात्र भी उनके पाठन कला के कारण सफल होते हुए देखे गए हैं.
आज ‘सुपर थर्टी ‘ का इतना अधिक नाम है. लेकिन वे बिना नाम के आज असंख्य विद्यार्थियों को अपने अध्यपान से ऊंचाइयों की सफलतम सोपान पर विराजमान कर चुके हैं. कोई पुलिस के उच्चतम पद पर है, कोई व्यख्याता, कोई प्रिसिपल ,कोई शिक्षक बन पद की गरिमा को अक्षुण्ण बनाये रखा है.
मेरे पिता मेरे गुरु भी हैं. उनके जीवन में सबसे मंद बुद्धि छात्रा शायद मैं ही हूँ क्योंकि मैं कुछ बन नहीं पायी. वे मोह के ऐसे धागे में पिरोते हैं कि कोई भी उनका अपना बन कर रह जाता है. उनके जैसा निश्छल , निष्कपट,एवं सहृदय बिरले ही होते हैं.
पापा का क्रोध भी शिक्षा सदृश ही होता है. मेरा जोर-जोर से हंसना उन्हें पसंद नहीं था. मुझे यह अच्छा नहीं लगता था . लेकिन जब मेरी शादी हुई तो मेरे श्वसुरजी को भी जोर से हंसना पसंद नहीं था, तब मुझे प्रतीत हुआ पापा की दूरदर्शिता.
मेरे घर में हर तरह की छूट थी, स्वतंत्रता थी लेकिन स्कूल या कालेज से छुट्टियों के पश्चात एक मिनट की देरी भी उन्हें पसंद नहीं था. हमने भी इसका सदैव ध्यान रखा. कोई भी क्षेत्र हो, कोई भी समस्या हो हर समय चट्टान की तरह अडिग रह कर साथ देते हैं मेरे पापा. जीवन जीने की कला हमने उन्हीं से सीखा है. पता नहीं कौन सा जादू जानते है ? हम भाई-बहन को थोड़ी सी भी परेशानी होती है तो उन्हें ज्ञात हो जाता है. और यथा शीघ्र उनका फोन आ जाता है और पूछते हैं – तुम ठीक तो हो? कुछ परेशानी तो नहीं? हम विस्मित हो जाते हैं . चोट हमें लगाती है और अहसास उन्हें (पापा) को होती है. पापा के विषय में लिखना मेरी लेखनी की हिमाकत है. मेरी लेखनी में उतनी ताकत कहाँ? उनके सम्बन्ध में इस देश के बड़े बड़े विद्वानों ने जितना कुछ लिखा है वह भी पर्याप्त नहीं हैं . उनके विषय में लिखने वाले साहित्य जगत के कुछ विद्वानों का यहाँ उल्लेख करना विषयगत ही है . यथा- १.पूर्व कुलपति डा.अभिराज राजेंद्र मिश्र,२.काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्र ‘विनय’, ३. राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के डा.उमा रमण झा,४.राष्ट्रपति सम्मानित श्री गौतम पटेल, ५.डा. महेश झा,६.डा.ब्रह्मचारी व्यासनंदन शास्त्री,७.डा.शशिनाथ झा ,८.डा.वैद्यनाथ मिश्र, ९.डा. अमरनाथ ठाकुर,१०. प्रतिकुलपति डा.प्रभा किरण,११.डा.वीना मिश्रा,१२.डा.अवधेश कुमार झा,१३.डा.राजेंद्र नानावटी,१४.डा.कृतार्थ शंकर पाठक,१५.डा.कृष्णचन्द्र झा ‘मयंक’,१६.महामहोपाध्याय प्रो.जयप्रकाश नारायण द्विवेदी ,१७.डा.शम्भू झा,१८.श्री सच्चिदानंद पाठक,१९.श्री श्याम कुमार झा, इत्यादि अनेकशः विद्वानो ने उनके सम्बन्ध में इतना कुछ लिखा है की मेरी लेखनी इस के आगे विकलांग हो जाता है.
हर बेटी पिता के बहुत करीब होती है. हम चारो बहन उनकी धड़कन हैं. मेरी हर सांस में पापा बसते हैं.
पापा आपके चरणों में मेरी जगह सदा बनी रहे यह मेरी कामना है. पितृ दिवस ही नहीं वरन हर सांस में आपको नमन करती हूँ और सदा नमन करती रहूंगी.
हाँ एक बात मैं कहना चाहती हूँ संतान कितनी भी बड़ी हो जाये पिता की दृष्टि में वह सदैव बच्ची ही रहती है. कुछ दिन पूर्व मुझे ऐसा सौभाग्य मिला कि मैं अकेले उनके पास मात्र १० दिनों के लिए गयी थी. उनका स्नेह देखकर मुझे ऐसा प्रतीत होता था कि मैं छोटी बच्ची बन गयी हूँ. उन्होंने मेरा नामकरण भी किया . उनकी दृष्टि में मैं ‘रजनी’ से ‘स्वाति’ बन गयी. उनका कहना था कि – तुम मेरे लिए स्वाति नक्षत्र की तरह हो. मैं क्या हर बेटी पिता की ऐसी ही लाडली होती है, प्राण होती है. हर उस पिता को नमन जो किसी बेटी का पिता हो.

इस पितृ दिवस पर मैं अपने पिता सदृश पूज्य श्वसुर श्री विष्णु चन्द्र झाजी को नमन करती हूँ. उन्होंने सदैव मुझे पुत्रीवत स्नेह दिया है. पता नहीं उन्हें भी कैसे ज्ञात हो जाता है मेरी अस्वस्थता के सम्बन्ध में. उनका फोन आएगा कि – मणि (उनके द्वारा प्रदत नाम) तुम ठीक तो हो? हम विस्मित हो जाते है. मुझे ऐसा नहीं लगता कि कोई भी श्वसुर अपनी पुत्रवधू को इतना असीम स्नेह देता होगा .

मेरे बाबा स्वर्गीय पंडित श्री कृष्ण चन्द्र झा तथा नाना पंडित श्री आद्या चरण झा दोनों ही संस्कृत -साहित्य के अनमोल रत्न थे, इनदोनों को इस पावन अवसर पर शतशः नमन .

महाभारत का यह कथन अक्षरशः सत्य है-
“पिता धर्मः , पिता स्वर्गः
पिता ही परमं तपः
पितरि प्रीतिमापन्ने
सर्वे तुष्यन्ति देवताः”
अर्थात पिता ही धर्म है, पिता ही स्वर्ग है, पिता ही परम तप है, जिसके प्रसन्न होने पर देवता भी हर्षित होते हैं.

डा.रजनीदुर्गेश
फ्लैट न.१७०२
सी-१ टावर
सुपरटेक लिविंग्स्टन
क्रॉसिंग रिपब्लिक
गाजियाबाद -२०१०१०.

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