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मैं भारत हूँ

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मैं भारत हूँ, अतुल्य हूँ ,
दिव्यता से पूर्ण हूँ,
मैं अखंड हूँ,
स्वराज मेरा अधिकार है.
मेरे चहुँ और प्राकृतिक सौंदर्य विद्यमान है.
हरीतिमा ही हरीतिमा व्यप्त है.
शरणागत की आश्रयस्थली हूँ.
मैं अनादि अनंत हूँ.
खनिज पदार्थों से परिपूर्ण हूँ.
दया और करुणा की सागर हूँ.
एकता में अनेकता की परिचायक हूँ.
सूरज सबसे पहले मेरे यहाँ डेरा डालते हैं .
मिठास से परिपूर्ण हूँ.
महान वीर सपूत मेरे अंतःकरण में बसते हैं.
मेरे यहाँ उगते सूरज के साथ डूबते सूरज को भी प्रणाम करते हैं,
मुझे समय -समय पर कुछ विदेशी ध्वस्त करने का असफल प्रयत्न करते हैं . हाँ , मुझे और मेरे संतानों को कठिनता तो होती है लेकिन हम अपने कर्तव्य से कभी विमुख नहीं होते. कदम -कदम पर जतिन परीक्षा तो देते हैं लेकिन अनुतीर्ण नहीं होते.
राम, कृष्ण, युधिष्ठिर, महाराणा प्रताप,लक्ष्मी बाई आदि सहस्रों महान व्यक्तित्व की मैं माता हूँ. मेरे हिमालय की कंदरा में आज भी शिव-पार्वती सदृश देवत्व अहर्निश तपस्यारत हैं. मेरी भूमि भक्तों की है, जहाँ हनुमान,प्रह्लाद , मीरा जैसे अनेकों भक्त अवतरित हुए हैं. वाल्मीकि, कालिदास , विद्यापति आदि असंख्य लेखकों ने अपनी अद्भुत क्षमता से अनमोल ग्रन्थ रच कर विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया हैं.
शिवानी,सरतचन्द्र,बंकिमचन्द्र सदृश अनेक लेखकों ने अपनी कलम से साहित्य का इतिहास रच दिया है. मैं रत्नगर्भा हूँ, कोटिसः रत्न धरा पर आकर विजय पताका लहर गया है. मुझे लोग ‘सोने की चिड़िया’ कहते थे.
फिरंगियों की दृष्टि मुझ पर परी और वे व्यापर करने के बहाने से आकर मुझे गुलामी की जंजीर से जाकर दिया. अनेकों वर्षों तक मैं तड़पती रही. लेकिन मैं रत्न गर्भ हूँ, मेरे बच्चे ने हर नहीं मानी. मेरे कोख से गांधी जैसा युग – पुरुष पैदा हुए हैं. वे अपने सहयोगियों जवाहरलाल, सुभाषचन्द्र बोस, चंद्रशेखर आजाद,तिलक सदृश अनेकों सपूतों के साथ मिलकर मुझे आजाद किया.
आज भी कुछ अराजक तत्व मुझे झकझोरने का प्रयत्न करते है, कभी मुंबई धमाका, तो कभी दिल्ली, कभी कश्मीर, कभी पठानकोट जैसे स्थान पर दिल दहलाने वाले कुकृत्य करते रहते हैं. लेकिन मेरे वीर सपूत मोहतोड जवाब देते हैं. आज भी हमारे सपूतों ने अपनी वीरता का परिचय दिया है. मैं द्रवित हूँ , किसी की एक महीने पूर्व शादी हुई तो कोई छोटे-छोटे बच्चों को छोड़ गए. किसी के बूढ़े मान -बाप का सहारा छीन गया. किसी की बेटी को पिता को अंतिम विदाई देते देखकर मैं दहल गयी हूँ लेकिन हारी नहीं हूँ.
हमारे बच्चे देश के लिए शहीद हुए हैं. वे अमर हो गए हैं. वे मुझ में समां गए हैं.
मेरे कोखजायों की जिस किसी ने यह दस की है वे मानव नहीं दानव हैं. मैं विह्वल हूँ , आज मेरी समस्त संतानें व्याकुल हैं, आकुल है अपने शहीदों के लिए. लेकिन मैं पुनः उठ रही हूँ, अपने सभी संतानों के लिए इनके भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए. मैं जग गयी हूँ. मेरे संतान सर कटा सकते हैं लेकिन झुका नहीं सकते. उनके फितरत में किसी को धोखा देना नहीं है क्योंकि वे मेरे संतान हैं.
मैं अखंड हूँ , अक्षुण्ण हूँ , अनमोल हूँ.

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