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मैं भी पुस्तक लिखूंगी .

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एक समय था जब लोग आपस में किसी बात पर चर्चा करते थे और अपनी बात की तथ्यता पर जोड़ देनी होती थी तो लोग कहते थे अरे अमुक लेखक के अमुक पुस्तक में देखो ये लिखा हुआ है.
पुस्तकों में छपे हुए हर तथ्य सत्य माना जाता था.
आज के समय में अब इस तरह के उद्धरण नहीं उल्लेखित किये जा सकते हैं ,आज के कुछेक लेखक झूठ या असत्यता की पुलिंदा अथवा प्रसिद्द व्यक्तियों को अपमानित करने के लिए या अपने बचाव के लिए पुस्तक लिखते हैं शायद . किताब की तथ्यता पर प्रश्न चिह्न लगाऊँ या विस्मयवाचक पता नहीं या दोनों का प्रयोग करूँ पता नहीं .
एक और प्रश्न हमें व्यथित कर सकती है की संवेदनशील पदों पर रहने वाले राजनीतिज्ञ हों या प्रशासक सभी अवकाश प्राप्ति के बाद या पदच्युत होने के बाद ही क्यों पुस्तक लिखते हैं ?
अपने आप को nirdosh प्रमाणित करने का छलावा या अन्य पर कीचड़ उछालकर अपने आप को सफेदपोश प्रमाणित (साबित) करने का निरर्थक प्रयत्न तो नहीं करते ! पिछले कुछ दिनों में बड़े-बड़े शासकीय अधिकारी एवं राजनीतिज्ञ लोगों ने पुस्तकें लिखी . चार्ल्स शोभराज ने भी पुस्तक लिखा और अब पेश है नया पुस्तक नटवरजी का .
आजकल फैशन बन गया है किताब लिखकर तथ्यों की कब्र खोदने का. नटवर जी ने कब्र खोदा और मुर्दा निकाला जो बकता है की सोनियाजी ने प्रधानमंत्री न बनकर त्याग नहीं किया था बल्कि बेटे की बात मानी थी. वाह नटवरजी वाह ! आप सबकुछ लिखिए, जो मन में आये या जो सत्य हो सब कुछ.अब तो सत्ता में भी नहीं हैं! सोनियाजी भी सत्ताधीन पार्टी में नहीं हैं! जब आप भी उन्हीं के संग थे तब तो न कुछ बोला न लिखा ! उस समय डर रहे थे क्या ? समय की पहचान ! अच्छे और सच्चे लोग तो हरदम सत्य को सभी के समक्ष उजागर करते हैं, चाहे वह कोई भी अवस्था क्यों न हो. अब आप लिखेंगे तो लोग तो यही कहेंगे की आप शायद बदले की भावना से यह सब कर रहे हैं (सच्चाई जो भी हो).
सोनियाजी पूरी तरह से भारतीय हैं. यह सत्य है. भारतीय संस्कार के गणित से व्याह कर लायी गयी बहु मायके की नहीं होती बल्कि ससुराल की होती है. अतः बहु कहीं से भी आई हो वह वहां की हो जाती है जहाँ उसका पति रहता है. तो नटवरजी का यह कहना की सोनियाजी ने जो उनके साथ किया वो कोई भारतीय उनके साथ नहीं करता – यही उनके विद्वेष की भावना को दर्शाता है.
सोनियाजी क्या थी कैसी हैं सारा हिंदुस्तान जानता है. जब तक पार्टी में पदासीन रहे तब तक ‘जय सोनियाजी’ और जब अलग कर दिए गए (कारण जो भी हो), पद से हटने के बाद ही उनमें बुराइयां क्यों दिखने लगी ?
सोनियाजी सदा लाभ के पद से दूर रहीं. और वह उस परिवार से सम्बन्ध रखती हैं जो परिवार शहीदों की परिवार है. आलोचना सहने की क्षमता भी है उनमे. और शायद यह कहाबत सही है की “हवा ऊँचे मकान में ही लगाती है”. तब किताब लिखना है तो कोई भी लिख ले, और किताब लिखने से न सत्य बदलेगा न कोई लांछित ही होगा, तत्काल प्रचार और दुष्प्रचार हो सकता है.
उपरोक्त सिल-सिला में जब मैं कुछ महिलाओं के साथ बैठी चर्चा कर रही थी तो तोतली आवाज में तुतलाते हुए मेरी सहेली की छोटी सी बेटी ने कहा की – माँ भैया मुझे परेशान करते हैं , मैं भी पुस्तक लिखूंगी !.

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