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मैं सृष्टि की कृति

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मैं सृष्टि की कृति हूँ,
ईश्वर का उपहार ,
पुरूषों ,गर मान मिला है ,
तो ,मैं हूँ इसका आधार !
जिसे मैं सिञ्चित करती ,
वह मेरा परिवार,
मिटाकर स्व को
बचाती मैं तेरा अहंकार!

पुराण पलटकर देखो तुम
दानवों से मैंने ही बचाया था;
शक्ति ,सरस्वती हर रुप में
वीर बुद्धिमान तुझे बनाया था।
जब तक श्रद्धा दिया तुमने
लक्ष्मी बन मान तेरा बढाया
मॉ बहन संगिनी रुप में
अभिमान तेरा बढ़ाया था ।
जब जब दु:साहस किया तुमने,
दुर्व्यवहार किया नारी से
पतन हुआ समाज का
बच न पाया कोई मॉ दुर्गा के ताप से

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