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लिव इन रिलेशन ओचित्य या औपचारिक

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Parinay१३ अप्रैल २०१५ सोमवार को सर्वोच्च अदालत ने कहा- कि कोई अविवाहित जोड़ा पति -पत्नी के रूप में अगर साथ रह रहा है तो उन्हें कानूनी रूप से विवाहित मन जायेगा , और उसे वे सारे अधिकार मिलेंगे जो एक विवाहित को मिलता है .पुरुष साथी के मौत के बाद महिला उसकी विवाह सम्पत्ति की अधिकारी होगी . मात्र उन्हें प्रमाणित यह करना होगा कि साथ रहने का फैसला विवाह के उद्देश्य से लिया था .एक लड़का एक लड़की लम्बी अवधि तक साथ रह रहे हैं तो विवाहित माने जायेंगे ,तो लिव इन रिलेशन का औचित्य क्या ?विवाह करने के उद्देश्य से लम्बी अवधि तक साथ रहने से तो अच्छा तो यही है की विवाह कर लो और साथ रहो .

विवाह वेदी या यज्ञ वेदी कहें ,इस वेदी पर अग्नि की धुंआँ ,पण्डितों के मंत्रोच्चार के बीच सात फेरों के साथ-साथ सात वचनों की प्रतिज्ञां /शपथ वह भी रिश्तेदारों ,दोस्तों तथा समाज के समक्ष नर एवं नारी को विवाह नामक या सच कहें तो परिणय -सूत्र के अटूट बंधन में इस तरह पिरो देता है कि दोनों जन्म -जन्मान्तर तक एक दूसरे को मानसिक ,बौद्धिक ,कार्मिक और अंत में शारीरिक तौर पर आत्मसात करने को सहज हो जाते हैं .

इसके विपरीत ‘लिव इन रिलेशन’ में ‘ आकर्षण’ का मुख्य भूमिका रहता है. पहले देखा फिर मिला , मेलबाजी हुई , व्हाटसप पर लगे रहे, फेसबुक पर मिले ,कुछेक डेट्स पर गए और फिर साथ रहना शुरू किया और शारीरिक रूप से एक दूसरे के हो गए . फिर एक दूसरे के बीच थोड़ी भी खट-पट हुई तो अलग हो गए. स्थिति तब ज्यादा ख़राब हो जाता है जब कुछ लड़की या महिला बलात्कार का आरोप लगा देती है. साथ -साथ रहते थे दोनों की मर्जी थी तभी शारीरिक सम्बन्ध बना फिर अलग होने पर यह बलात्कार हो गया? जैसे बासी सम्बन्ध बलात्कार हो!? ऐसा क्यों ? कहीं इस कारण से तो नहीं कि दोनों एक दूसरे को मानसिक,बौद्धिक,,कार्मिक और अंत में शारीरिक तौर पर आत्मसात न करके केवल वाह्य आकर्षण के बाद मात्र शारीरिक आवश्यकता के तहत एक दूसरे से सम्बंधित हो जाते हैं . कमिटमेंट या विश्वास की कमी ? और अलग होने में स्वतंत्रता का अहसास , न तलाक का झंझट न और कुछ. क्या यह है लिव इन रिलेशन का वजह या मात्र अंग्रेजी नक़ल? मेरे समझ से पर है यह.
कहीं हिंदुस्तान में यह इस वजह से तो नहीं पनप रहा है की आज का युवा पीढ़ी पुरानी कुरीतियों से क्षुब्ध है? भारतीयता लुप्तप्राय हो रही है. तथाकथित आधुनिक समाज में प्रचलित कुछ कुरीतियां भी इसके जिम्मेदार तो नहीं? यथा दहेज़ . इस दहेज़ नामक विषधर ने तो कितने परिवार को डस कर परलोक पहुंचा चूका है. आज के युवा इस विषधर से अपने समाज को बचाने हेतु ऐसा कदम तो नहीं ले रही ? विवाह समारोह में गैरजरूरी आडम्बर और उस में अनावश्यक फिजूलखर्ची और इस वजह से माता-पिता को परेशानी में डूबते देख बच्चे विवाह से बचने की कोशिश में इस तरह की कदम को स्वागत करने को मजबूर तो नहीं हैं?
सर्वप्रथम दहेज़ को समूल नष्ट करना होगा .आज भी यह विकराल समस्या बानी हुई है,मात्र रूप परिवर्तित हो गया है .
पुरुष का अहम भाव ,क्रूरता ,सास श्वसुर का अशोभनीय व्यवहार इत्यादि में सुधार होगा तो लिव इन रिलेशन से निजात मिल सकता है इसको समूल नष्ट करने के लिए इन समस्या में सुधार होगा तो स्वयमेव इस समस्या से भारत मुक्त हो जायेगा .
कोर्ट ने कभी कहा था कम आयु के कारण युवा नासमझी में आकर लिव इन रिलेशन में रहना आरंभ कर देते हैं ,लेकिन रिश्तों में नाकाम रहने पर अलगाव होने की स्थिति में मामला बलात्कार का रूप धारण कर लेता है ,और कोर्ट ने भी स्वीकार किया कि बलात्कार के बढ़ते मामले का कारण यह भी है .

ऐसे सम्बन्ध जिसमे कोई अधिकार नहीं , आधारहीन सम्बन्ध का क्या औचित्य है ?जिसकी
नींव ही रेत की बनी हो उसे तो ढहना ही है .जिस सम्बन्ध को खुलकर स्वीकार नहीं कर सकते ,समाज में डर कर रहना पड़े , जिस सम्बन्ध को प्रत्यक्ष रूप में नहीं मान सकते ,
ऐसे आधारहीन रिश्तों को उचित नहीं कहा जा सकता .
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लिव इन रिलेशन से परिवार नहीं बन सकता और पति -पत्नी विवाह सम्बन्ध को इसलिए अंगीकार करते हैं कि वे भविष्य देना चाहते हैं. बहुत ही कम लोग इस सम्बन्ध को पसंद करते है.

संतान पैदा करना और देश तथा समाज को भविष्य देना अलग-अलग है. और जब तक आप शादी नहीं करते तब तक संतान को परिवार नहीं मिलता और वह कहीं न कहीं एक अधूरा जिंदगी जीने को बाध्य रहता है जिससे वह सफल शहरी शायद नहीं बन पाता है.

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