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वाह रे सह्रदय पड़ोसी

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जब मुम्बई में आतंकवादी हमला होता है , तो वे काला दिवस नहीं मनाते क्योंकि वह उन्हीं के द्वारा प्रायोजित होता है। जब आपदाओं में हमारी जनता हताहत होते हैं तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जब कश्मीर में आतंकी मारे जाते हैं तो उन्हें दर्द होता है मानवाधिकार याद आता है , जब हमारे मासूम जवान शहीद होते हैं तो उन्हें इससे कोई मतलब नहीं होता, लेकिन वे काला दिवस मना रहे हैं। कहा जाता है पडोसी परिवार सदृश होते हैं लेकिन हमारे पडोसी शत्रु सदृश भी नहीं, क्योंकि शत्रु तो खुलकर विरोध करते हैं लेकिन हमारे पड़ोसी तो पीठ पीछे वार करते हैं। एक हम हैं उनके कठिन घड़ी में व्याकुल हो उठते हैंं उनके भले की कामना करते हैं।हमारे मुखिया मित्रता का हाथ बढ़ाते हैं , पडोसी धर्म निभाते हैं और वे हमारे विपरीत परिस्थिति में भी और भी घाव को हरा करने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन उन्हें यह ज्ञात नहीं कि हम भारतीय कृष्ण के वंशज हैं १०० अपराध तक क्षमा कर देते हैं, लेकिन १०१ गलती को दुहराने नहीं दे सकते। अब आ गया है पड़ोसी को जवाब देने का , वे हमारी शक्ति को भूल गए हैं कि कैसे हम देशवासियों ने संगठित होकर ,फिरंगियों को खदेड़ कर भगा दिया था। हमसब भारतवासी एक हैं , राजनैतिक विरोध अलग बात है। सदा से एक थे,एक हैं, एक रहेंगे। संभल जाओ, मुँह पर ताला लगा लो , वरना मुँह की खाओगे, ईंट का जवाब पत्थर से देने आता है हमें। ईश्वर करे प्रतिदिन कालादिवस मनाओ, काले ह्रदय वाले से उम्मीद भी क्या की जा सकती है? लेकिन हमारे देश पर कुदृष्टि रखनेवाले का मुख तोड़ देंगे ।कश्मीर सहित हम सभी देशवासी एक हैं, हाँ कुछ भटक गए थे, गुमराह हो गए थे लेकिन देश के लिये मर मिटेंगे , पड़ोसी की मंशा को उनके चाह को कभी भी पूर्ण नहीं होने देंगे ।हमारे देश का हर नागरिक आन बान और शान से जीते हैं।
स्मरण करो स्व. इन्दिराजी ने किस तरह तुम्हारे अति से आजीज होकर तुम्हें धूल चटाकर बांगलादेश को बनाया। मोदीजी को कम मत आंको, वे विश्व शान्ति चाहते हैं, पर सीमा पार किया तो बहुत बुरा परिणाम भुगतना पड़ेगा।

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