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समस्या : आज के परिपेक्ष्य में

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Ram Rahimसमस्या कहाँ नहीं होता है, किसे नहीं होता है? पर समस्या का समाधान भी उपलब्ध रहता है. बस ठीक से देखने की जरुरत रहती है. भारतीय समाज का स्वरुप अति तीव्रता के साथ बढ़ रहा है , जिसे पाप की संज्ञा दी जाती थी, लोग डरते थे अब वही खुले आम करते हैं निरंकुशता की वृद्धि हो रही है .
पुलवामा पुलिस लाइन पर आतंकी हमला , डर की सायामें भारतीय रेल ,आज फिर आहत हुई मासूम ,दहेज़ के कारण प्रताड़ित हुई महिला , हवस की शिकार हुई बालिका ,लूटपाट ,महिला की पर्स छीनी, सड़क हादसे में मौत ,ट्रैन हादसे में ३० की मृत्यु , डेरा सच्चा सौदा पर कसा शिकंजा , बाबा के भक्तों ने की तोड़ फोड़ , आदि विविध दिल दहलाने वाली खबरों से समाचार -पत्र भरा रहता है .पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है इन समाचारों के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं . समाज में व्याप्त अराजकता के अनेकों कारण से देश सदा विविध समस्याओं से जूझता रहता है . देशवासी सदैव संघर्षरत रहते हैं . कभी प्राकृतिक आपदाओं से तो कभी दैवी आपदाओं से. कभी बद्रीनाथ, कभी केदारनाथ में भीषण प्रकोप तो कभी सूखे की समस्या तो कभी चक्रवात की समस्या तो कभी सामुद्रिक लहरों का प्रकोप, कभी चट्टानों के गिरने से अस्त-व्यस्त जिंदगी, तो कभी तूफ़ान, कभी भयंकर बारिश तो कभी बाढ़ का जलजला.
अभी देश के अधिकांश राज्यों में भीषण बाढ़ से मानव त्रस्त है, गांव का गांव रिक्त हो रहा है. बरसों से संचित धन बाढ़ के भेंट चढ़ गया है. सर्वत्र त्राहि-त्राहि मची हुयी है. अपने रक्त से संचित ईंट से ईंट जोड़ कर बनाये घर को छोड़ मानव नए आश्रय की तलाश में पलायन कर रहा है क्यों कि एक तो बाढ़ का पानी ऊपर से हिंसक जीव-जंतु का भय, सांप-बिच्छू , मगरमच्छ आदि विषैले जंतु बाढ़ से पीड़ित हर घर में डेरा डाले हुए है. बच्चों से बुजुर्ग सभी भयाक्रांत हैं. जाएँ तो जाएँ कहाँ.
आज के परिपेक्ष्य में समस्या का उत्थान मानव के निजी स्वार्थ के कारण भी होता रहता है. कभी कश्मीर की समस्या तो कभी असम की तो कभी कोई अन्य. आरक्षण की समस्या,तो यदा कदा होती ही रहती है. अब इस समस्या की तो आदत सी हो गयी है. कभी जातिगत समस्या तो कभी दहेज़ की समस्या, कभी बेरोजगारी की समस्या, कभी कृषक की समस्या, कभी छात्रों की समस्या तो कभी राजनेताओं के स्वार्थ के कारण उपजी समस्या अर्थात समस्या ही समस्या.
आतंकवाद की समस्या से तो हरपल देशवासी आतंकित ही रहते हैं. सबसे प्रमुख समस्या तो है महिला शोषण की, बलात्कार से पीड़ित अबलाओं की . हर क्षण शोषित होती रहती हैं मासूम महिलाएं. न बालिका न युवती न अस्सी वर्ष की वृद्ध , कोई भी सुरक्षित नहीं हैं. सभी आतंक से आतंकित रहती हैं कि पता नहीं कौन दानव किस वेश में आकर शील भंग न कर दे .
इन संकटों से देशवासी निरंतर जूझते ही रहते हैं. अभी-अभी रामरहीम कपटी बाबा की समस्या आ गया . जिससे हरियाणा, पंजाब, गाज़ियाबाद, नॉएडा,दिल्ली आदि अनेक शहर इसकी चपेट में आ गया है. अनेक लोग काल -कवलित हो गए है , कितने घायल हो गए हैं. लेकिन इस भीषण समस्या से निजात मिलाना अति कठिन प्रतीत हो रहा है. आश्चर्य लग रहा है – आखिर कुछ मानव सोचते क्या हैं. क्यों अन्धविश्वास में जी रहे हैं. इक्कीसवीं शताब्दी में भी ऐसा अन्धविश्वास ! आश्चर्य लग रहा है. हमारे ही देश में रामायण कालीन युग में अपने देश की महिला पर कुदृष्टि डालने वाले दानवों से रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति तक दे डाली. दानवों से रक्षा के लिए श्रीराम ने हर प्राणी की सहायत की, रक्षा की. और आज बलात्कार के आरोप से आरोपित गुरमीत रामरहीम के लिए इतना बवाल. इतना आक्रोश , क्या कुछ मानवों को यह दृष्टिगत नहीं होता की उनके देश की मासूम बहन-बेटियों के साथ कितना बड़ा अन्याय हुआ है. मासूम कितनी छली गयीं हैं. कितनी मर्मान्तक पीड़ा से गुजरी हैं.
इधर कुछ दिनों से अराजकता में वृद्धि हुई है. मानव असहनशील होते जा रहे हैं. आरजककता का मूल कारण यही है . हमारे देश के लोग संयमी हुआ करते थे ,शांतिप्रिय होते थे . हमारे देश में किसी की वस्तु हड़पना पाप समझा जाता था , दूसरे के धन को तृणवत समझा जाता था ,परायी स्त्री को माता के रूप में देखा जाता था ,जिस धरा की बेटी जानकी, शत्रु रावण के घर में भी सुरक्षित थी,उस देश में हर घण्टे महिलाएं बलात्कार की शिकार होती है ,इससे घृणित और क्या होंगी . यही तो अराजकता हुआ . इस अराजकता को समूल नष्ट करना होगा, इसके लिए आत्म-संयम की आवश्यकता है , एक दूसरे पर विश्वास की आवश्यकता है , न्याय प्रणाली पर विश्वास की आवश्यकता है ,परापूर्व काल की तरह पञ्च को परमेश्वर मानने की आवश्यकता है , अर्थात अभी के परिपेक्ष्य में अदालत के फैसले को ईश्वर की फैसला समझ कर भरोसा करना चाहिए .तभी अराजकता नाम के शत्रु से निजात पाया जा सकता है .हम सभी देशवासी को स्वयं से संकल्प लेना चाहिए की यथा संभव देश हितार्थ कार्य करेंगे ,यदि कोई धर्म विरोधी आचरण करेगा तो उसे समझायेंगे ,देश की हर बेटी को सम्मान देंगे , यदि अपराध करता है चाहे वह आतंकवादी हो या लूटेरा हो या डाकू हो या बलात्कारी ,अदालत जो सजा ऐसे मनुष्य को दे ,उसका विरोध न करें वरन सहयोग करें
न्याय प्रणाली पर सभी को भरोसा रखनी चाहिए. बाबा को जेल ही तो ले जाया गया है. उनके ऊपर अत्याचार तो नहीं किया गया है. कहीं न कहीं दोषी तो हैं ही. पंद्रह साल बाद गहन छानबीन के बाद इनको सजा दिया जा रहा है. यह कोई जल्दबाजी का निर्णय नहीं है. उनसे जुड़े सभी मानव को धैर्य धारण करना चाहिए . हमारी न्याय पालिका अति उत्कृष्ट है इसका हर फैसला ईश्वर के फैसले के सामान है. शांति भंग नहीं करनी चाहिए. भारत की गरिमा अक्षुण्ण रहने देनी चाहिए. भारत के बाहर क्या संदेश जा रहा है कि ये कितने असहनशील हो गए हैं. अदालत का निर्णय का भी विरोध करना चाहते हैं.
समस्या तो आएगा, पर सभी समस्याओं का समाधान भी तभी तैयार हो जाता है जब समस्या का जन्म होता है. अतः धैर्य का बहुत महत्व है. धैर्य रख कर समस्या का समाधान करना चाहिए न कि आक्रोशित हो कर समस्या को और बढ़ा दें. गलत को सजा मिलना ही चाहिए यह जितना जल्दी समझ आ जाये समस्या अपने आप कम हो जायेगा. सजा भी तो इसीलिए दी जाती है कि यह एक नज़ीर बनता है जिससे दूसरे उस गलती को न करें. अतः कितने भी शक्तिशाली हों अगर उसने गुनाह किया है तो उसे सजा मिलनी ही चाहिए.

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