Menu
blogid : 6094 postid : 948596

हम लड़ें और वो कमाएं

My View
My View
  • 227 Posts
  • 398 Comments

हमारे देश में जब – जब कोई पर्व आता है तब-तब चीन प्रसन्न हो जाता है. दिवाली हो या गणेश चतुर्थी , दुर्गा पूजा हो , होली हो या राखी हो, गणतंत्र दिवस स्वतंत्रता दिवस या प्रजातान्त्रिक पर्व ( बिधान सभा का चुनाव या संसद का चुनाव ) . हर भारतीय पर्व हमारे पडोसी ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन’ के लिए प्रसन्नता भरी व्यापर का पर्व होता है. हो भी क्यों न ? आखिर लक्ष्मी,काली,दुर्गा,गणेश, आदि भगवान व भगवती की मूर्तियों के साथ – साथ दीपक,पटाखे , लाईट एवं सजावट की सामग्रियों को निर्यात करने का अवसर जो मिलता है. ठीक इसी प्रकार जब जब चुनाव होता है तब तब उन्हें चुनाव हेतु राजनीतिक संगठनों द्वारा प्रयुक्त किया जाने वाला सामग्रियों का निर्यात करने का मौका मिलता है. धन्य है हमारे नेतागण अपने जनता को ठगने या कहें दिग्भ्रमित करने हेतु चायनीज सामग्री का प्रयोग करने में कोई झिझक नहीं होता. पहनेंगे खादी क्यों की खादी पहन कर छद्म भेष धारण करना आसान हो जाता है. खादी थोड़ी मोटी होती है और इसके अंदर ढका हुआ कालापन आसानी से नहीं दिख पाता है. नहीं तो खादी पहनने वाले लोग चीन का उत्पाद शायद सहन व वहन नहीं कर पाते ! स्वदेशी का नारा देनेवाले लोग भी चुनाव सामग्री का आयात चीन से नहीं करते.

यह क्या बात हुई . चीन से चुनाव सामग्री क्यों आएगी. क्यों हम चीन को समृद्ध बनाने पर तुले है? करोड़ों रुपये क्यों हम चीन जाने दें . यह धन हमारे देश में रहेगा तो आर्थिक सम्पन्नता बढ़ेगी . पिछले साल गणेश चतुर्थी में सारी मूर्तियां चीन से आया था. क्यों ? हमारे मूर्तिकार अक्षम हैं क्या ? हमारे देश में इतनी सुन्दर -सुन्दर मूर्तियां बनती है. माँ दुर्गा हों या गणपति हों या कृष्ण या राम या शिव अर्थात कोई भी मूर्ति हमारे शिल्पकार कितना सजीव चित्र अंकित करते है. मूर्तिकार कितना अथक परिश्रम से मूर्ति बनाते थे. स्वयं रहने को छत न भी हो लेकिन मूर्तियों को निर्मित कर घर में रखते थे कि कहीं बारिश की बौछार से ख़राब न हो जाये. धूप में दरक न जाये . किसी पर्व होने के पहले से ही त्यौहार की प्रतीक्षा करते थे. महीनों पहले से मूर्ति बनाने की सामग्री एकत्रित करते थे . जिस तरह माँ अपने नवजात शिशु को या अजन्मे शिशु की प्रतीक्षा ९ महीनों तक करती है ठीक उसी तरह वे मूर्ति को बनाने की प्रतीक्षा करते हैं.
चाक से आरम्भ कर मूर्ति पूर्ण होने तक लगन के साथ -साथ मूर्ति गढ़ते थे . चूँकि पापी पेट का सवाल है इसलिए वे मूर्ति को बेचते हैं. यदि सच्चे पारखी हों तो देख सकते हैं उनके अंतर्मन की व्यथा जब वो घर से मूर्ति को खरीददार को ले जाते देखते थे. लेकिन जीविकोपार्जन का साधन भी तो वही है.
चीन से या किसी विदेश से मूर्ति मंगवाना कितना अन्याय है उन मूर्तिकारों के प्रति. यह क्या आर्थिक उदारीकरण हुआ. यह कैसा दौर है. यदि ध्यान से देखें तो वह आकर्षण नहीं होता बाहर की मूर्तियों में. वह नयन नक्श वह सौंदर्य कहाँ से लाएगा अन्य कोई विदेशी . जो भारत के शिल्पकार में है.
चुनाव हमारे देश में होता है और माला -माल चीन होती है. चीन निर्मित प्रचार सामग्रियों की मांग चुनाव होने से पहले होने लगी है. ऑन लाइन का जमाना है. सारा बाजार ऑनलाइन है. चीन में निर्मित ईभीएम की रेप्लिका से लेकर झंडे, बैनर तक सब मिलता है. एक हज़ार करोड़ से अधिक का कारोबार की संभावना है. क्या ये सामग्रियाँ हमारे देश में निर्मित नहीं हो सकती? क्यों हम अपनी सम्पत्ति अपनों में ही क्यों नहीं खर्च करते, क्यों चीन की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करते है? चीन की तो नीति ही है अपने सामान को अन्य देशों बेचने की. वर्षों से नेपाल को लूट भी रहा है और यह भी प्रदर्शित करता है की वही सबसे बड़ा नेपाल का शुभ-चिंतक भी है. कमोबेश भारत की भी यही स्थिति होने जा रही है?
हर चुनाव में चीन निर्मित सस्ती प्रचार सामग्रियाँ दिल्ली से लेकर सभी राज्यों के बाज़ारों में बेचीं – खरीदी जाती है. अभी सरगर्मी बिहार में है, चुनाव है , बाजार यहाँ होना लाजमी ही है .
क्यों नहीं भारतीय कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया जा रहा है? हमारी सरकार क्यों हजारों करोड़ रुपये चीन जाने दे रही है? रोकथाम क्यों नहीं?
निंदनीय बात तो यह है कि सभी राजनीतिक दल चाहे भाजपा हों या कांग्रेसी या जदयू या लोजपा या कोई अन्य , सभी इसमें सम्मिलित हैं. सभी चोर -चोर मौसेरे भाई बन जाते हैं. अपनी देश की गाढ़ी कमाई से चीन धनवान हो रहा है इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता. बड़े बड़े नेताओं का मुद्दा है ” दामादजी और ५६ इंच का सीना से ५.६ इंच का सीना. वाह रे भारत के उज्जवल नेताओं . जय हो आप सबका ! सब अपनी रोटी सेकें ! देश का पैसा कहीं जाये, विदेश में छवि बनाना है ! ‘हिंदी-चीनी भाई -भाई ‘ का नारा देने के बाद चीन ने १९६२ में क्या किया सभी जानते हैं. अब चीन आर्थिक रूप से भारत को पंगु बनाना चाहता है अतः चीनी प्लास्टिक का चावल, बनावटी अंडे और न जाने क्या-क्या यहाँ भेजकर और किस तरह यहाँ के लोगों को कमज़ोर व बीमार बनाना उनका उद्देश्य है यह समझना कठिन है. हम इनको क्यों बढ़ावा देते है?
पहले जब प्रधान मंत्री पूर्वोत्तर राज्यों में जाते थे तो चीन प्रश्न करता था और भाजपा भाषण देते थे अब क्या परिस्थिति परिवर्तित हुई या यथावत ही है? भारत का नक्शा चीन बनाता है और कुछ राज्यों को भारत के नक़्शे में नहीं दर्शाता है . भारत विरोध करता है और बात समाप्त हो जाती है. दूरदर्शन पर प्रवक्ता लोग वहस करते हैं और हम देख कर आनन्दित हो जाते है. फिर चीन से सस्ते , नकली और मिलावटी सामान हमें कमज़ोर करने हेतु आता रहता है और हम सम्पूर्ण राष्ट्रवादी इन वस्तुओं का उपयोग करते है और अपने देश में बेरोजगारी उत्पन्न करते है और अपने पडोसी को उन्नत होने का अवसर देते हैं और हम पर आर्थिक शासन करने का मौका देते हैं. हम सब मिलकर उन्हें सुदृढ़ बनाते है . धीरे -धीरे हमारे यहाँ कुछ भी उत्पादित नहीं होगा और हम सस्ते के लोभ में सारी सामग्री चीन से खरीदेंगे और जब पूरी तरह हम उनके चंगुल में फंस चुके होंगे तब वे अंग्रेजो की तरह हमें गुलाम बना सकते है.
लेकिन हम सभी देशवासी उनके मनोरथ को पूर्ण नहीं होने दे सकते हैं . अगर सब मिलकर यह प्रण लें कि हम किसी भी परिस्थति में विदेशी सामान को हाथ नहीं लगायेंगे कीमत कितनी भी कम क्यों न हो , फ्री में ही क्यों न मिले . हम सब को जागना ही होगा . अपने लिए भी और भावी पीढ़ी के लिए भी .
स्वच्छ भारत स्वतंत्र भारत – स्वदेशी अपनायें आर्थिक गुलामी से बचें.

डा. रजनीदुर्गेश

Read Comments

    Post a comment