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कोई भी समाज शायद एक साथ कई परिवर्तन सहन नहीं कर पाता. यदि करता है, तो उसे उसका मूल्य चुकाना पड़ता है. सामाजिक संगठनों ने, लेखिकाओं ने, मीडिया से लेकर राजनीति तक के लोगों ने नारी की आजादी के भरसक आन्दोलन किये खैर सफलता भी प्राप्त हुई और आज की आधुनिक नारी अपने फैसलों लेने पर काफी हद तक स्वतंत्र भी हो गयी. किन्तु उसकी स्वतंत्रता के बाद का रास्ता किसी बुद्धिजीवी ने उसे नहीं सुझाया. अभी हाल ही की कुछ घटनाओं ने पुन: इन सब चीजों पर मेरा ध्यान आकर्षित किया.
झाँसी में एक दुल्हन हाथ में वरमाला लेकर स्टेज पर पहुंची,तो उसका पारा चढ़ गय.अपने से कम कद का दूल्हा देख कर उसने शादी करने से इनकार कर दिया. दुल्हन के इनकार के बाद वहां अफरा-तफरी मच गई. हालाँकि आनन-फानन में ग्रामीणों ने गांव के एक गरीब परिवार की बेटी की शादी दूल्हे से कराई और चंदा करके विवाह का खर्चा उठाया. अब देखिये यहाँ सिर्फ लड़के के कम कद का मामला था, तो पिछले दिनों आगरा में दो सगी बहनों ने सावले रंग की वजह से दुल्हे पसंद न आने के कारण बारात वापिस लौटा दी गयी थी. कहीं ना कहीं बदलती जीवनशैली में जिस प्रकार नारी का जो उदय हो रहा है, वह बंधनों को जोडने वाला कम बल्कि तोडने वाला सा प्रतीत हो रहा है. महाभारत में कीचक वध पर सुदेष्णा ने राजा विराट से कहा था- मै जानती हूँ कि एक नारी का मन कैसे सोचता है, जो आज मैं सोच रही हूँ वही द्रोपदी का मन भी सोच रहा होगा एक नारी की सोच एक नारी ही जानती है. यह प्रसंग पढ़कर मुझे लगा कि क्या आज आधुनिक नारी जाति की सोच एक सामान हो गयी? या कहीं वो मुक्ति के नाम पर वह अपने शोषण के हजारों साल की प्रतिशोध की ज्वाला में जलती दिखाई दे रही है? तो क्या मैं इसे में पहला परिवर्तन कह सकता हूँ?
अब यदि मैं दुसरे परिवर्तन की बात करूं तो आज नारी जाति एक बात क्यों भूल जाती है, कि उसके शोषण में पुरुष वर्ग से ज्यादा नारी जाति का ही हाथ रहा है. चाहें वह सास के रूप में, ननद, सौतेली माँ या देवरानी, जेठानी रूप में रहा हो. नब्बे प्रतिशत मामलों में खुद पुरुष उसका पति, भाई, या पिता के रूप में रक्षक रहा है. और देखा जाये तो अधिकांश इसने अभी तक अपने कद से कम कद की नारी के साथ बिना रंग भेद के साथ समझोता भी किया है. किन्तु आज अचानक नारी पुरुष की राह पर चलती दिखाई दे रही है. संक्षेप में कहें तो आज की नारी किसी भी चीज से समझौता नहीं करना चाहती, बल्कि खुद को मिले हर अधिकार को भरपूर जीना चाहती है. आज बहुतेरे पुरुष की तरह कई शादी महिलाओं को भी अपनी जिंदगी में एक और पुरुष की चाहत होती है, जो उसकी जिंदगी में रोमांस और सेक्स की स्थिति उसका साथ तो दे और उसके साथ भावनात्मक रूप से भी बंधा रहे. कल तक जहां सिर्फ अधिकांश पुरुष अपनी पत्नी के अलावा दूसरी स्त्री से विवाहेतर संबंध बनाने से नहीं हिचकते थे, वहीं आज अगर औरत की भावनाओं की कद्र नहीं की जाए तो वह भी पर पुरुष के कंधे को तलाशने में संकोच नहीं करती. जहाँ भी पति पत्नी के बीच मानसिक या शारारिक स्पेस रिक्त होता है, तो दोनों की प्राथमिकता उस रिक्तता को भरने की होती है. आज की व्यस्त जिंदगी में समाज और स्थितियां तेजी से बदल रही हैं. ऐसे में स्त्री का बदलना स्वाभाविक है. यह बदलाव का ही तो नतीजा है कि पति के साथ जरा सी अनबन पर ही शादी जैसे बंधन को कोर्ट के दरवाजे पर लेकर खड़े होने में भी संकोच नहीं करती. चाहें इसमें एक दुसरे के देर रात घर आने का प्रश्न ही क्यों ना हो! आपसी रिश्तों में इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने के बजाय अपनी स्वतंत्रता की दुहाई देकर रिश्ता खत्म करना ज्यादा मुनासिफ समझा जाने लगा है.
नारी सशक्तिकरण का दौर चल रहा है, भले ही आज कहा जाये कि नारी अबला नहीं है, कुछ भी कहो लेकिन वह आज अपने अस्तित्व को भूल गयी है. वह अब महत्वकांक्षी जीवन जीना चाहती है| कल न्यूज़ चैनल पर देख रहा था कि दिल्ली से सटे बहादुरगढ में एक रंगीन मिजाज पूजा नाम की औरत ने नाजायज रिश्तों की खातिर अपने पति बलजीत के टुकड़े-टुकड़े कर दिए उसका पति उसे नाजायज रिश्तों से रोकता था, जो पूजा को रास नहीं आया उसने प्रेमियों के साथ मिलकर इस घटना को अंजाम दिया. क्या इसे भी नारी मुक्ति या स्वतंत्रता के तौर पर देखा जाना चाहिए? यदि हाँ तो फिर अपराध की परिभाशा ही बदल जाएगी! पिछले दिनों मैंने कही पढ़ा था कि अपोलो हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ एक डॉक्टर ने बताया कि मेरे पास कई ऐसी औरतें आती हैं, जो अपने यौन जीवन को बेहतर बनाने के लिए चिकित्सकीय सहायता चाहती हैं, क्योंकि वो अपनी सेक्सुअल लाइफ से खुश नहीं होती हैं। कई तो खुलकर बताती हैं कि अगर वो अपने पति से संतुष्ट नहीं हो पाती तो उनको लगता है कि वो अपनी संतुष्टि कहीं और पूरी कर लें। ऐसी बातें सुनकर लगता है कि वाकई आज महिलाओं की तस्वीर बदल रही है। आज वो अपने चरम सुख की मांग उठाने लगी है, इस बदलाव को क्या मैं तीसरा परिवर्तन कह सकता हूँ?क्योंकि लगता है आज यौन संबंधों का इस्तेमाल चाय की चुस्की की तरह सहज हो गया है.
ऐसा भी कतई नहीं समझा जाना चाहिए कि नारी समाज रिश्तों को लेकर बिलकुल असंवेदनशील हो गया, नही! दो दिन पहले ही इलाहाबाद की लड़की ने शादी टूटने के गम में की आत्महत्या कर ली, पर में इसे परिवर्तन नहीं मान सकता क्योकि इस तरह के आत्महत्या के मामले अक्सर स्त्री, पुरुश दोनों वर्गों से आते रहते है और हाँ शादी के बाद अक्सर इस तरह के बहुत सारे मामले जरुर देखने को मिल जाते है. पर उसका कारण काफी हद तक उस काल्पनिक जीवन को जाता है जो एक लड़का की या लड़की का करके बैठे होते है| पिछले साल मेरे एक रिलेटिव की लड़की ने शादी के बाद इस वजह से आत्महत्या कर ली थी कि उसका पति खेती करता था. यदि शादी से पहले लड़की के जीवन पर गौर किया जाये, तो उसे स्टार प्लस पर आने वाले सीरियल बेहद पसंद थे. देखा जाये जो मकान परिवार, या पात्र फिल्मों में दिखाए जाते है उनका लिविंग स्टेंडर्ड दिखाया जाता है कुछ लोग उसे ही जीवन में उतार कर जीने लगते है, मसलन पति हो तो फलाने सीरियल जैसा पत्नी हो तो उस फिल्म जैसी! जबकि यथार्थ में हर किसी को जीवन एक अलग धरातल पर जीना पड़ता है. जो उसकी कल्पना से बाहर का होता है. कुछ तो ऐसी स्थिति में मरना पसंद करते है और कुछ सम्बन्ध तोडना. क्या आज आनंद की प्राप्ति और स्वछंद रूप से जिंदगी जीने की चाह ने लोगों को इतना स्वतंत्र कर दिया है कि जन्म-जन्म का साथ निभाने का वचन चंद सेकेंड में चकनाचूर हो जाता है. पहले भी से संबंध बनते थे, पर खुले रूप से नहीं. आज समाज का पहरा भी कम हुआ है आज भले ही एक नारी अपनी स्वतंत्रता के लिए कितना भी लड़ ले किन्तु किसी ना किसी रूप में उसे पुरुष का और पुरुष को नारी का सम्मान और साथ देना लेना पड़ेगा तो फिर क्यों ना यह सब एक सामाजिक सम्मानपूर्वक रिश्ते में लिया जाये. राजीव चौधरी
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