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प्यार की नाकामी और दर्द भरी दास्तान

लिखा रेत पर
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पिछले सप्ताह जालंधर में ब्वॉयफ्रेंड के धोखा देने से दुखी डीएवी कॉलेज की बीकॉम फाइनल ईयर की स्टूडेंट रूपाली शर्मा ने हॉस्टल के कमरे में पंखे से लटक कर जान दे दी। उसके कमरे से पुलिस को चार पेज का सुसाइड नोट मिला है, जिसमें उसने अपने प्यार की नाकामी और दर्द भरी दास्तान लिखी है| ऐसी खबरे आये दिन अखबार के किसी न किसी कोने में देखने को मिल रही है। कभी किसी ने फांसी लगाई तो किसी ने प्यार में नाकाम होने पर खुद को आग के हवाले कर दिया। हर रोज अखबार के अन्दर ऐसी बहुत सारी खबरे आती है| जिन्हें लोग नजरंदाज कर देते है| ध्यान भी दे तो क्यों दे? आज युवा समाज प्रेम की सफलता और असफलता के पीछे इस कदर भाग रहा है मानों प्रेम दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण कार्य रह गया हो| बदलती जीवनशैली के कारण आज युवाओं के भीतर सहनशक्ति में भी अत्याधिक कमी देखी जा रही है| वर्तमान समय में लगभग सभी ओर प्रतिस्पर्धा हावी हो चुकी है| पढ़ाई, कॅरियर और पारिवारिक जिम्मेदारियां कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं जिनमें असफलता व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर देती है| अभी कई रोज पहले एक लड़की ने अपने फेसबुक स्टेट्स पर दुखी होकर लिखा क्या सुन्दर होना जरूरी है? मै सुन्दर नहीं हूँ शायद इसी वजह से लड़के वाले मुझे छोड़ कर चले जाते है| यहाँ मन की कोई कीमत नहीं है अब मेरा मन करता है मै इससे अच्छा तो मै मर जाऊ..जाहिर है कोई व्यक्ति अपने सुनहरे सपनों और बहुमूल्य जीवन का अंत खुशी से नहीं करेगा अगर वे आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठाते हैं या कोशिश भी करते हैं तो इसके पीछे उनकी कोई बहुत बड़ी विवशता में नासमझी छिपी होती है|

पिछले कुछ वर्षों में खासकर युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति काफी बढ़ी है| परिस्थितियों से जूझने का जज्बा समाप्त सा हो गया है| बात चाहे आर्थिक परेशानी की हो, कैरियर की हो या फिर प्रेम संबंधों में खटास की, मानो सबका समाधान आत्महत्या ही रह गया हो! कुछ वर्षो के आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण अकसर प्रेम सम्बन्ध बनता है प्रेम संबंधों में मिले धोखे के बाद लोग खुद को संभाल नहीं पाते और अवसादग्रस्त हो जाते है| बाद में या तो वे आत्महत्या कर लेते हैं या फिर जिंदगी से बेजार हो कर समाज से कट जाते हैं| इसी वर्ष जनवरी में कानपुर में एक युवक ने प्रेम प्रसंग के चलते घर में फांसी लगा कर जीवन लीला समाप्त कर ली। शव को फंदे से उतारने के बाद कमरे से बाहर निकाला। मृतक के कान में फोन की लीड लगी हुई थी जिससे पता चलता है कि वह सुसाइड के दौरान मोबाइल पर किसी से बात कर रहा था। वर्तमान दौर में किसी भी आयुवर्ग के व्यक्ति को असफलता सहज स्वीकार्य नहीं होती। किंतु यह स्थिति, किशोरावस्था व युवावस्था में बेहद संवेदनशील होती है। रोज के अखबारों में ऐसी न जाने कितनी ही खबरें छपती हैं। जिन्हें पढ़कर पूरे अस्तित्व में एक सिहरन-सी दौड़ जाती है।

मनोविज्ञान का मानना है कि ‘ब्रेकअप’ लोगों को इसलिए बहुत दुखी करता है क्योंकि यह उनके काल्पनिक जीवन का अंत करता है| एक ऐसा संबंध जिससे वे मानसिक और शारीरिक रूप से जुड़े होते हैं, उसके खो जाने का डर उन्हें परेशान कर देता है और वे दुख के सागर में डूब जाते हैं| मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जब दो इंसान कल्पना के जीवन में होते हैं, तो वे ऐसा महसूस करते हैं कि वे सुरक्षित हैं और अपने आसपास सुरक्षा की दीवार महसूस करते हैं, ऐसे में जब वह भ्रम टूटता है, तो वे खुद को संभाल नहीं पाते है इसका कारण यह है कि उन्हें लगता है कि वे अब सुरक्षित नहीं, कोई दुनिया में उनका नहीं| यह सोच इंसान को इस कदर बेचैन कर देती है कि वे आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं यदि देखा जाये तो लड़कों की तुलना में लड़कियां डिप्रेशन से अधिक प्रभावित होती हैं। कुछ शोधकर्ता ऐसा मानते हैं कि डिप्रेशन से वो लड़कियां प्रभावित होती हैं जो प्रेम के शुरुवाती दिनों में जरूरत से ज्यादा सपनों में अपना जीवन बांध लेती है| अपने मित्र यारो दोस्तों के बीच अपने रिश्ते की पवित्रता व् सच्चाई का हद से ज्यादा महिमा मंडन करती है| उन दिनों के रिश्तों को जीवन का सच मानकर जीने लगती है| किन्तु जब कई बार परिस्थिति अनुकूल नहीं होती या इस रिश्ते पर पारिवारिक या सामाजिक हस्तक्षेप होता है तो यह लोग आत्महत्या जैसे कदम उठा लेती है इस प्रकरण में एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह सामने आया है कि भारत में लगभग 55 फीसदी आत्महत्याएँ 30 साल से कम आयु वर्ग में हो रही हैं।

पिछले महीने पंजाब अबोहर में प्रेमी जोड़े का शव एक खेत में मिला। प्रेमी युगल सुनील व् पार्वती एक ही गाँव के थे| जब उनको लगा कि उनका इश्क परवान नहीं चढ़ेगा तो उन्होंने रात को जहरीला पर्दाथ खा लिया। कई बार अपरिपक्वता के कारण भी इन्सान आत्महत्या को ही एक बेहतर विकल्प समझने लगता है| एक दुसरे से किये वादे फ़िल्मी जीवन से इतने प्रेरित हो जाते है कि इस जन्म में नहीं अगले जन्म में मिलेंगे अक्सर हिंदी फिल्मों में भी दिखाया जाता है कि प्रेमी युगल मरकर किस तरह अगले जीवन में फिर मिल जाते है तो और यह कदम उठा लेते है|  गलत आदत किसी भी समाज को यदि एक बार पड़ जाए, तो बाद में छूट जाने पर भी उसका खामियाजा कभी-कभी भुगतान पड़ सकता है। आत्महत्याएँ कहीं भी, किसी उम्र में और किसी भी तरफ क्यों न की जाएँ उनके कारणों में असंतोष, निराश एवं कुण्ठा ही रहती है। पर प्रश्न यह है कि जिन्दगी से हम इतना प्यार करते हैं, यह अचानक हमें बोझ क्यों लगने लगती हैं? इस सवाल ने इन दिनों सबको उलझन में डाल रखा है। जिन्दगी का सामान्य परिचय देह से होता है। साधारण तौर पर देह में एक छोटा-सा काँटा लगने पर हम सिसक उठते हैं। देह के रख-रखाव, बनाव-शृंगार के लिए रोज न जाने कितने सरंजाम जुटाए जाते हैं। जिस देह से इतना लगाव, उससे यकायक विरक्ति फिर क्यों कि उसे रस्सी से लटका दिया जाए, विष देकर प्राणहीन कर दिया जाए। आज युवाओं को सोचना होगा प्रेम और नफरत स्थाई नहीं होते यदि रिश्ते में आज थोडा बहुत मनमुटाव है तो कल दूर भी हो सकता किन्तु जीवन दुबारा नहीं मिलता जीवन है तो प्रेम है| राजीव चौधरी

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