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यदि सर्जिकल स्ट्राइक फैल हो जाती तो?

लिखा रेत पर
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माफ करना यह बस एक व्यंग है, ऐसा कहने वालों का मीडिया वाला माइक पकड कर मैं कड़े शब्दों में निंदा करता हूँ. सेना पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. यही कह-कह कर मेरे देश के नेता पिछले कई दिनों से सेना पर राजनीति कर रहे है. एक महाशय जिन्हें विपक्ष का बड़ा नेता समझा जाता है. कुछ रोज पहले सिर पर खाट रख उत्तर प्रदेश जीतने निकले थे. उत्तर प्रदेश का तो पता नहीं पर दिल्ली आते-आते खाट लोगों ने छीन ली और उनका बयान मीडिया ने. वो देश के एकमात्र ऐसे नेता है जो संसद में सोते है और खाट पर चर्चा करते है. खैर भारत देश महान है. राजनीति से समझदार लोग तो निकल चुके अथवा जो बचे है वे गंभीर मुद्दों पर या तो उचित राय देते है या फिर शांत बने रहते है अब बाकि जो बचे है बस चिलम फोड़ बचे  है. उनसे ही मीडिया का मामला गर्म चल रहा है.

हाँ तो में कह रहा था कि उडी हमले में 18 जवान जब शहीद हुए तो मेरे देश की मिटटी तक रोई किन्तु बयानवीर सामने आये और बोले कहाँ है 56 इंच? प्रधानमंत्री के पुराने बयानों, ट्वीटो को बक्से से निकालकर उनको धोया सुखाया उनपर इस्त्री की और मीडिया के सामने रखकर  पूछा- अब कहाँ है,  एक बदले दस सिर ?

प्रधानमंत्री के आदेश पर जब सेना ने 18 जवानों की सहादत के बदले 38 से ज्यादा आतंकी ठोके तो पड़ोसी देश में हाहाकार मची. जैसे ही पानी भरे बिल से हाफिज चूहें की तरह भीगा घबराया बाहर आया तो इधर दिल्ली से दूसरी फिल्म चल निकली. दिल्ली के वजीरेआलम ने बड़ी मासूमियत से यह प्रश्न उठाया कि आतंकी ठोके तो वीडियो कहाँ है? इन साहब को वीडियो का बड़ा शोक है. कुछ दिन पहले इनके एक मंत्री का एक महिला के साथ वीडियो मार्किट में धमाका क्या कर गया. साहब को वीडियो का चस्का लग गया. सुना है वजीरेआला ने वो 9 मिनट का वीडियो 30 मिनट तक देखा तब फैसला लिया. बहराल कोई इनको समझाए कि प्रेमिका को घर बुलाना और दुश्मन के घर में घुसकर मारने के वीडियो में अंतर होता है!

दो दिन पहले मैंने सुना कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाक के कब्जे वाले कश्मीर में कम से कम से छह बार सर्जिकल स्ट्राइक की थी, लेकिन उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक का उपयोग कभी राजनैतिक लाभ के लिये नहीं किया. हालाँकि यह विश्व की सबसे रहस्यमय सर्जिकल स्ट्राइक कही जानी चाहिए कि  जिसकी भनक सेना तक को भी नहीं लग पाई. खैर अब पुराने कलेंडर में क्यों नया त्यौहार ढूँढा जाये. वैसे भी हरिवंश राय बच्चन ने कहा है कि जो बीत गयी सो बात गयी.

पर इस मामले में सबसे बड़ा पहलु यह कि जब उडी में जवान शहीद हुए तो उसके लिए विपक्ष द्वारा सीधे प्रधानमंत्री पर हमला बोला गया, विपक्ष के बयानों से लगा जैसे इस हमले का सारा दोष मोदी पर हो. जिसके बाद सारा देश प्रधानमंत्री से बदले की कारवाही मांगने लगा तो सर्जिकल स्ट्राइक हुई यानि पाकिस्तान को मुहं तोड़ जबाब तो फिर अब इसका श्रेय सरकार को यदि देशवासी दे रहे है तो विपक्ष को परेशानी क्यों है? जो निंदा झेलेगा उसको श्रेय का अधिकार भी मिलना चाहिए कारण यदि किसी वजह से .1 फीसदी अभियान असफल हो जाता तो क्या यह विपक्ष सरकार को बक्श देता? जो लोग इस सेन्य अभियान की सफलता पर रो रहे है क्या वो असफलता पर खामोश बैठकर सरकार को सात्वना दे जाते?

कॉंग्रेस उपाध्यक्ष ने सारी सीमाओं को लांघते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी खून की दलाली कर कर रहे हैं. राहुल गांधी ने ऐसा सेना के जवानों के लिए कहा. उनके कहने का मतलब है पीएम मोदी शहीद जवानों के खून को बेच रहे हैं. यानि के ट्रेडिंग इन ब्लड.  यह बयान इतना खराब था कि जिसकी केजरीवाल तक को भी निंदा करनी पड़ी. किसी अन्य की तो बात ही छोड़ दीजिये. पर मुझे लगता है कि कोई राजनीतिक दल या नेता तब तक नया विकल्प नहीं बन सकता जब तक वह भाषा और मर्यादा के मामले में भी विकल्प न तैयार कर ले.

एक बार एक आदमी कुछ मित्रो के साथ बैठा था. उसका लड़का वहां खेल रहा था कि अचानक छत के ऊपर से हवाई जहाज गुजरा. लड़के ने बाप से कहा, “पापा में बड़ा होकर पायलट बनूंगा?” लड़के के बाप को गर्व हुआ. उसने दोस्तों के सामने बेटे की समझदारी की बड़ी तारीफ की. कुछ देर बाद घर से सामने से गाड़ी गुजरी, लड़के ने कहा पापा में बड़ा होकर गाड़ी चलाऊंगा, बाप ने अनसुना कर कहा ठीक है. इसके कुछ देर बाद गली से रिक्सा वाला गुजरा तो लड़के ने कहा, पापा में बड़ा होकर रिक्शा चलाऊंगा. अबकी बार बाप माथा पकड़कर बैठ गया. बिलकुल इस तरह जैसे राहुल के बयान के बाद कल वरिष्ठ कांग्रेसी बैठे थे. हो सकता चेला गुरु की राह पर हो कांग्रेस के सबसे बड़बोले नेता दिग्विजय सिंह ने मीडिया के सामने ऊलजुलूल बयान दे-देकर मीडिया वाली को ही फांस लिया था.

असल में लोग समझते हैं कि केजरीवाल और राहुल मोदी को खुली चुनौती देते हैं और बहुत वीर हैं. पर असलियत यह है कि वो राजनैतिक बहस को अगम्भीर बनाने का काम करते हैं. एक का मुख्यमंत्री के रूप में अपने क्षेत्र की वास्तविक समस्याओं पर उनका हमेशा पलायनवादी रुख रखता है. आज तक मैंने कभी उनके मुंह से राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कोई जिम्मेदारी लेने वाली बात नहीं सुनी. दूसरा यही हाल राहुल का है पता नहीं कांग्रेस उन्हें ढो रही है या वो कांग्रेस को?…Rajeev Choudhary.  Writer Arya Sandesh

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