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वैसे तो भारतीय संस्कृति में भगवान श्रीराम किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। त्रेतायुग से लेकर कलयुग तक उनकी प्रासंगिकता और उनके प्रति आस्था में कहीं भी कोई कमी होती नज़र नहीं आई। अयोध्या का नाम मन में आते ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ज़हन में आस्था के प्रतिबिम्ब बनाकर उभर आते हैं।
लेकिन इस बार पता नहीं रामनवमी जुलूस में आस्था, श्रद्धा और भक्ति का प्रदर्शन था या फिर अपनी धार्मिक और राजनैतिक ताकत का प्रदर्शन ? खबर है देश में कई जगह हुई हिंसा में तीन लोगों की मौत और कम से कम दर्जनों लोग ज़ख्मी हुए। हिंसा के दौरान बंगाल के 24-परगना ज़िले के कांकिनाड़ा में देश के पहले शिक्षा मंत्री रहे मौलाना आज़ाद की एक मूर्ति भी तोड़ दी गई। समझ नहीं आया कि उत्सव रामनवमी का था या राजनीति का?
कुछ ऐसा ही हाल जोधपुर में भी रहा। बताया जा रहा है कि रामनवमी के दिन जोधपुर में भी 350 झांकियां निकाली गईं। पर जोधपुर की झांकी में भगवान राम के अलावा इन्हीं झांकियों में शंभूलाल रैगर की एक झांकी निकाली गई। कहा जा रहा है यह शोभा यात्रा जोधपुर के प्रमुख मार्गों से होकर गुज़री और हर सर श्रद्धा से झुकता चला गया। इनमें कोई राजनेता था, कोई साधु-संत तो कोई सांसारिक प्राणी।
शायद ये चेतावनी थी लोगों को, कि शंभूलाल रैगर भी हमारे लिए किसी अराध्य देव से कम नहीं है। अब अगर सब कुछ इसी तरह बेरोकटोक चलता रहा तो भगवान श्रीराम के धनुष, भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र, परशुराम के फरसे के बाद आने वाली पीढ़ी शंभूलाल रैगर की गैती के प्रति भी इसी आस्था से अपने भाव प्रकट किया करेगी।
हो सकता है आगे माएं बच्चों को कहानी सुनाए कि कलयुग में जब लव जिहाद का पाप बढ़ रहा था तब भगवान शम्भूलाल ने प्रकट होकर इसी गैती से एक मज़दूर की हत्या कर धर्म की स्थापना की थी। जिसे-जिसे इस बात से गुस्सा आये वह शम्भूलाल की झांकी की भी आलोचना ज़रूर करे क्योंकि भगवान राम की झांकी में एक हत्यारे को महिमामंडित किया जाना भारतीय संविधान के मज़ाक से अधिक तो भगवान श्रीराम जी का अपमान था।
मेरे रोम-रोम में बसने वाले राम, जगत के स्वामी, तू पालनहारी मैं तुझसे क्या मांगू, या ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान ऐसे गीतों को सुनकर में बड़ा हुआ। फिर रामायण का सीरियल देखा तो मेरी भक्ति राम के प्रति और अधिक जागी कि किस तरह अपने पिता के वचनों के कारण एक मर्यादित महापुरुष पुत्र ने अपना राजपाट त्यागकर वनों में विचरण किया। हालात कैसे भी रहे लेकिन मर्यादा का पाठ नहीं भूले।
भगवान श्रीराम की झांकी निकालना कोई बुरी बात नहीं है। बुरी बात है शम्भूलाल जैसे अपराधी की झांकी को राम के बराबर दर्जा दिया जाना। कितने लोग पसंद करेंगे कि विश्व शांति के संदेश का मंच हो और उसमें 26/11 का अपराधी हाफिज सईद शामिल हो?
पर जब धर्म की झांकी का राजनीति से जुड़े लोग अपहरण कर ले तो भगवान की झांकी के साथ किसी शम्भूलाल की झांकी और शांति और मर्यादा के सन्देश की जगह दंगा, हिंसा हो जाता है। धार्मिक और सांस्कृतिक नारों का रूप राजनीतिक नारों में बदल दिया जाता है। तब अपने-अपने धार्मिक और राजनैतिक नेता ही अवतार नजर आने लगते हैं।
जब मज़हब के नाम पर मालदा में और पैगम्बर के नाम पर बशीरहाट में लाखों की भीड़ सड़कों पर उतरती है। बशीरहाट को आग लगाई जाती है तब भी देश का सांस्कृतिक ढांचा जलता है। जब रामनवमी के शुभ अवसर पर सड़कों पर बंदूकें, लाठी और त्रिशूल लहराए जाते है तब भी देश की समरसता को ही फूंका जाता है।
धर्म-मज़हब से जुड़े संगठनों के राजनीतिक जिन्न जिस-जिस देश में बोतल से बाहर आये वहां-वहां का इतिहास उठाकर देख लीजिये, ना सभ्यता बची न देश और लाखों मासूम लोगों को डकार लेने के बाद आज भी वो जिन्न बाहर घूम रहे हैं। सीरिया, अफगानिस्तान, यमन, नाइजीरिया, के बाद पाकिस्तान भी उसी तरफ आगे बढ़ रहा है।
यदि हमारी चाल धर्म-मज़हब के नाम पर इसी तरह तेज़ रही तो हम पाकिस्तान को यहां भी जल्दी ही पछाड़ देंगे। बोलो लक्कड़ महाराज की जय।
रामनवमी के मौके पर कहां आग नहीं लगी। बिहार के नालंदा के सिलाव में, समस्तीपुर में और औरंगाबाद में भी रामनवमी की शोभायात्रा निकाले जाने के दौरान हिंसा हुई थी। जुलूस में शामिल लोग डीजे पर नाच रहे थे, हाथों में लाठी और डंडे लहरा रहे थे। फिर कथित तौर पर इस जुलूस पर पथराव हुआ और फिर हिंसा भड़क गई। तीन दर्जन से ज़्यादा दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। सड़क पर गाड़ियों को आग लगा दी गई।
दुनिया की कोई भी संस्कृति अपना घर फूंककर क्या आगे बढ़ पाई है? यदि नहीं तो समझ जाइये आप जुलूस में शामिल धार्मिक व्यक्ति के बजाय राजनितिक मोहरे हो।
जब मैं सुनता हूं कि जल्दी ही हम विश्व गुरु बन जायेंगे तो सोचता हूं यदि विश्व गुरु ऐसे ही बना जाता है तो मध्य एशिया के देश सुडान, लीबिया जॉर्डन अभी तक विश्व गुरु क्यों नहीं बने? इसका जवाब किसी के पास हो तो दे देना भाई ताकि मेरे इन सवालों को मोक्ष मिल जाये।
राजीव चौधरी
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