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गले मिलना कोई बुरी बात नहीं है। ना जाने जीवन में ऐसे कितने मौके आते हैं जब आप किसी इंसान को गले लगाते हैं। गले मिलना स्वभाव प्रदर्शन की एक उपयुक्त विधि है। यह तरीका दिखाता है कि आप उस व्यक्ति की परवाह करते हैं और हर अच्छे बुरे समय में उसका साथ देंगे। एक ये भाव ही तो होता है जो निकटता दर्शाता है। प्रेम और ममता की निशब्द अभिव्यक्ति आखिर गले लगाने से बेहतर और क्या हो सकती है?
एक मां ममता की आसक्ति में अपने बच्चे को गले लगा लेती है, कई खुशी और गम के मौकों पर एक भाई अपनी बहन को तथा एक पति अपनी पत्नी को गले लगा लेते हैं। क्रिकेटर मैदान पर खुशी और एकता के प्रदर्शन के लिए एक दूसरे को गले लगा लेते हैं तो बॉलीवुड के बहुत सारे कार्यक्रमों के मंच पर कलाकार और निर्माता निर्देशक भी गले मिलते दिखाई देते हैं।
यहां तक कि हमारे देश के प्रधानमंत्री भी किसी विदेशी मेहमान के आने पर कई बार प्रोटोकोल तोड़कर गले लगाकर भारतीय सरज़मीं पर उनका स्वागत करते दिखाई देते हैं। यही नहीं स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी वर्षों पहले क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने स्नेह से गले लगाया था। यह किसी को धन्यवाद देने के लिए किया जाता है जो खुशी प्रकट करता है। यह बहुत सारे संदेश देता है क्योंकि यह दिल की गहराई तक महसूस होता है।
लेकिन मुझे नहीं पता कोलकाता मेट्रो में सफर कर रहे कपल की गले मिलने की वजह से लोग क्यों उग्र हो गये। कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ लोग गले लगने को सिर्फ सेक्स से जोड़कर देखते हों और किसी ऐसे मोके पर ऐसी स्थिति का विरोध करने उतर आते हो?
गले लगने की वजह से ही पिछले साल तिरुअनंतपुरम के एक स्कूल में बारहवीं के दो स्टूडेंट्स निलंबित कर दिए गए थे लड़के ने किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान लड़की की तारीफ करते हुए उसे गले लगा लिया था स्कूल प्रबंधन को उनका गले लगना नागवार गुज़रा था। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जहां गले मिलना पूरी दुनिया में प्रेम का प्रतीक है वहां भारत में इसे सेक्स का प्रतीक समझा जाता है।
मुझे कई वर्ष पहले की एक घटना याद है जब एक युवक अपनी पत्नी को स्टेशन पर छोड़ने आया था। ट्रेन आ गयी थी, उसनें जल्दबाज़ी में कुछ ज़्यादा न कहकर पत्नी के गले लगा लिया था। जो पास खड़े पुलिस वालों को रास नहीं आया और उसके खिलाफ अश्लीलता फैलाने का मामला दर्ज कर लिया था। हालांकि बाद में उसे कोर्ट ने उन्हें बरी ही नहीं किया बल्कि पुलिस वालों को हिदायत देते हुए कहा था आपको अपराध रोकने के लिए नियुक्त किया गया न कि किसी को उनके परस्पर लगाव के प्रदर्शन करने से रोकने के लिए।
हो सकता है यह बात किसी संस्कृति के कथित रखवाले को बुरी लगे। मैं खुले में सेक्स का प्रोत्साहन नहीं कर रहा हूं पर प्रेम से आलिंगन पर कोई एतराज़ नहीं होना चाहिए। क्योंकि इसका सरल अर्थ यह होता है कि आप एक दूसरे के करीब रहना चाहते हैं और इस पल को समेटना चाहते हैं।
बताया जा रहा है इस घटना के विरोध में कोलकाता के युवाओं ने विरोध करने का एक अनूठा तरीका अपनाया। उन्होंने कोलकाता में मेट्रो स्टेशन के बाहर फ्री हग कैंपेन शुरू किया। युवाओं का कहना है कि गले लगना प्यार का संकेत है। युवाओं के हाथों में पोस्टर भी दिखे जिसपर “हैशटैग फ्री हग” जैसे स्लोगन लिखे थे। कैंपेन में शामिल युवाओं ने कहा कि जिन लोगों ने प्रेमी युगल की पिटाई की, उनका व्यवहार दिखाता है कि उनकी आंखों में दोष है।
दरअसल गले लगने को अभी भी हमारे यहां कई जगह बेशर्मी का प्रदर्शन समझा जाता है। कुछ लोग हैं जो अभी भी इसे खुले में उपयुक्त नहीं समझते, शायद हो सकता है वो कभी बिना सेक्स के गले मिले ही ना हो? इस घटना पर भी जैसा मैंने सुना है कि एक बुजुर्ग व्यक्ति ने विरोध शुरू किया था। देखते-देखते विरोधियों की संख्या बढ़ गयी और मामला कुटमकुटाई तक जा पहुंचा। पर क्या इसमें सारा देश और समाज शामिल है?
दरअसल हम मामले को ज़्यादा तूल न देकर इसे दूसरे तरीके से भी समझ सकते है। एक बुज़ुर्ग जो आज 70 से पचहतर वर्ष की उम्र का है, उसे प्रेम से गले मिलना सेक्स ही दिखाई देता है क्योंकि उसने कभी जीवन में प्रेम किया ही ना हो तो उसे प्रेम के आलिंगन और सेक्स के आलिंगन में कोई खास अंतर नहीं दिखाई देगा। शायद ये फासला है सोच का! और मेरे ख्याल से इस फासले को किसी आन्दोलन से नहीं बल्कि प्रेम से खत्म किया जा सकता है।
जिन लोगों को यह घटना अश्लील लगी मुझे नहीं पता उनकी नज़र में अश्लीलता की परिभाषा क्या है। किसी को मटकना अश्लील लगता है, किसी को खुलकर हंसना, किसी को नाचना, किसी को चुम्बन में अश्लीलता दिखाई देती है और किसी को कोलकाता मेट्रो की तरह गले मिलना। जो लोग सोच रहे हैं कि गले मिलना कितना भारतीय है और कितना विदेशी? तो ये हमारी संस्कृति का हिस्सा है, क्योंकि ईद हो या दीपावली, शादी हो या कोई दु:खद हादसा हम सब पहले से ही गले लगते- लगाते आये हैं। यदि किसी को यह बुरा लगता है तो इस मानसिकता की आज के भारत में कोई जगह नहीं हैं।
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