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माफ़ करना पाकिस्तानी भाइयों हमें ऐसी दर्द भरी खुशी नहीं चाहिए

लिखा रेत पर
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संयुक्त राष्ट्र के लिए बनाई गई गयी खुश और मस्त देशों की सूची में अपना भारत देश पाकिस्तान से 58 अंक पीछे है। ये एक इकलोती ऐसी खुशी है जिससे पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा खुश हो सकता है.

पर पाकिस्तान और हमारे देश में थोडा सा अंतर है. पहले हम भी बहुत खुश रहते थे. पर अब हमने अपनी खुशी छिपा ली. आप दिल्ली आना कभी आपको हमारे यहाँ मेट्रो स्टेशन हो या बस स्टाप, हर जगह, हर आदमी चेहरे पर एक अजीब सी शिकन लिए मिलेगा. परेशानी के अपठित भाव उनके चेहरों पर आसानी से दिख जायेंगे. वो खुश है या दुखी ये आकलन करना अभी हमारे बस की बात नहीं.

हाँ यदि कोई कान में (हेंड्सफ्री) जिसे हमारे यहाँ लीड भी कहते है लगाये हँसता-मुस्कुराता मिल जाये तो समझना या तो उसने व्हाट्सअप पर कोई जोक पढ़ा होगा. या सोशल मीडिया पर कोई फनी विडियो देख रहा होगा.

ऐसा नहीं कि अब हम हँसते ही नहीं! हँसते हैं, किसी की बेबसी पर, गरीबी पर, दो का झगड़ा हो या पड़ोसियों में गुट-मार, महिलाओं पर भद्दे चुटकुले बनाकर हम हँसते है, जाति और धर्म पर एक दुसरे को नीचा दिखाकर  हम खूब हँसते है. अब ये अंतरराष्ट्रीय हैपीनेस इंडेक्स वाले उस समय रिपोर्ट बनाने न आये तो बताओं इसमें हमारी क्या गलती?

बस यही हमारी हार है और पाकिस्तान की जीत है. लेकिन ऐसा नहीं है कि हम दुखी नहीं होते हम दुखी भी होते है. जब पेशावर में आतंकवादियों ने 150 मासूम बच्चों को मौत की नींद सुलाया तब हम बहुत दुखी हुए, जब वहां सिंध के सहवान में लाल शाहबाज कलंदर सूफी दरगाह पर आत्मघाती हमले में 80 लोगों की मौत हुई हम तब भी दुखी होते है. भले ही हमारे यहाँ ताज होटल पर हमले के वक्त पाकिस्तान के लोग खुश होते हो लेकिन जब बलूचिस्तान एक सरकारी अस्पताल में आत्मघाती बम विस्फोट में 75 लोगों की मौत होती हैं, हम तब भी दुखी होते हैं.

अब ये खुशी और गम कोई स्थाई चीज तो होती नहीं! हम तो फेसबुक पर ज्यादा लाइक आने पर भी खुश हो जाते और मोबाइल की बेटरी 100 फीसदी फुल होने पर भी, घर में गैस का सिलेंडर 10 दिन ज्यादा चल जाये, तब भी हमारे लिए खुशी की बात होती है. दसवी बारहवी की परीक्षा में सरकार खुलकर नकल करने दे तब भी खुश हो जाते है.

पर जब हम पढ़ते है कि पाकिस्तान में आजादी के समय 22 फीसदी हिन्दू थे अब सिर्फ एक फीसदी के लगभग बचे है. भले ही ये खबर पाकिस्तान वालों को हंसाती हो लेकिन जब हमारे यहाँ किसी जुनैद, पहलु खा या अखलाक की हत्या होती है तो हम दुखी होते है. अपने सम्मान में मिले राष्ट्रीय अवार्ड तक लौटा देते है. अब उस समय ये अंतरराष्ट्रीय हैपीनेस इंडेक्स वाले आ गये हो बताओं इसमें हमारी क्या गलती?

जब हमारे कश्मीर में पत्थरबाज हमारी सेना पर बरसते है, पाकिस्तान वालों को खुशी होती है. लेकिन जब ये लोग किसी अयूब पंडित को भीड़ बनकर हत्या कर देते है, हम तब भी दुखी होते है. पाकिस्तानी बलूचिस्तान में लोगों पर बम बरसाकर खुश हो सकते हैं, लेकिन हम पेलेट गन पर भी दुखी हो जाते है.

अब हमें नहीं पता पाकिस्तान की खुशी का राज क्या है! क्योंकि अभी वहां की इकोनोमी की दीवार पर आई.एम.एफ की दो बूंद पड़ी तो उसका रंग रोगन उतर गया. सुना है पाकिस्तान स्टेट बैंक के पास कुल 12.7 अरब रूपये है और पाकिस्तान पर 13.7 अरब रूपये का कर्ज है. शिक्षा और स्वास्थ, विज्ञान और टेक्नोलॉजी में भी भारत के आस-पास नहीं फटकते है. बालीवुड से लेकर योग तक में हम अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए. इस क्षेत्र में पाकिस्तान की कोई एक कामयाबी हो तो जरुर बताना? ताकि हमें और दुखी होने का मौका मिले.

हम और पाकिस्तान हमसाये मुल्क है एक ही दिन आजाद भी हुए लेकिन हमने 70 सालों में अपना लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता अभी तक बचाकर रखी ये ख़ुशी हमारे लिए बहुत बड़ी खुशी है. जबकि पाकिस्तान में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की क्या हालत है आप बखूबी समझते है.

मुझे मालूम है  पाकिस्तानी लोग इन सवालों पर जरुर गौर करेंगे पर अगला अंतरराष्ट्रीय सर्वे आने तक तो उनका ख़ुश रहना बनता है ना?

तो प्रिय पाकिस्तानियों हमारा तो बस यही जवाब है कि अल्पसंख्यक समुदाय का नामोनिशान मिटाकर, कश्मीर को आग की भट्टी में झोककर, हर रोज के बम धमाकों के बीच यदि आप खुश हैं तो ईश्वर से प्रार्थना  है कि हमें ऐसी दर्द भरी खुशी नहीं चाहिए……राजीव चौधरी

 

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