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क्या ईमान की बात न कहोगे?

लिखा रेत पर
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क्या ईमान की बात न कहोगे?

अभी रात का एक  बजा  है. देश का काफी नौजवान दिन भर का थका हारा सोशल मीडिया की वाल से हटकर इनबॉक्स में चला गया. कारण आज फिर इस युवा ने अजान के खिलाफ लाउडस्पीकर उठाया था. हलाला के विरुद्ध हल्ला बोला था. कश्मीर को लेकर कांग्रेस को कोसा था. कुछ ने मोदी को देश के लिए अच्छा तो कुछ ने खतरनाक बताया था, सोनू निगम को सच्चा देशभक्त बताने के साथ कश्मीरी पत्थरबाजों पर नरम रुख अपनाने पर राजनाथ सिंह को अपने बेटे पंकज सिंह को  बार्डर पर भेजने की मांग की थी. मुताह विवाह के खिलाफ बिगुल बजाया था. बिगड़े काम बनने के लिए शनि महाराज और साथ फन वाले सांप की फोटो डालकर लाइक मांगे थे, लेकिन बिगाड़ के डर से ईमान की बात किसी ने नहीं कही थी.

जुम्मन मियां की खाला ने अलगू चौधरी से कहा था-क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे? तब मुंशी प्रेमचंद ने आगे लिखा था कि हमारे सोये हुए धर्म-ज्ञान की सारी सम्पत्ति लुट जाय, तो उसे खबर नहीं होती, परन्तु ललकार सुनकर वह सचेत हो जाता है. फिर उसे कोई जीत नहीं सकता. अलगू इस सवाल का कोई उत्तर न दे सका, पर उसके हृदय में ये शब्द गूँज रहे थे- क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे? लेकिन आज समय बदल गया शायद प्रेमचंद आज प्रासंगिक नहीं रहा उसकी यह कहानी अब कहीं धर्म की धूल में दब गयी. क्योंकि लोग आज बिगाड़ के डर से ईमान की बात कहने से कतराने लगे.

हो सकता है इस लेख के बाद मेरे ऊपर देशद्रोह का टेग लग जाये या फिर सोशल मीडिया के कुछ महारथी मुझे राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने आ जाये, या फिर कुछ सर के बाल मुंडवाए नेता मुझे पाकिस्तान जाने की सलाह दे डाले. मुझे हिंदुत्व का सबक याद दिलाये, चार मौलानाओं के फतवों के यू ट्यूब लिंक मेरे मुंह पर फेंककर मारे और कश्मीर से लेकर बंगाल तक सारा इतिहास मुझे पढाये, पर तमिलनाडु के किसानों पर मुंह न खोले जिन्होंने खुलेआम पिसाब पीसूब पिया है. क्योंकि अब बिगाड़ के डर से लोग ईमान की बात नहीं कह पाते.

हमेशा से एक धर्म विशेष पर कुछ भी कहने से उसकी की तोहीन मानी जाती है यदि अब कोई सोशल मीडिया पर भाई चारे का सन्देश दे मानवता की बात करे तो उसकी तोहीन की जाती है. मैंने सुना है पहले हमने जातियों के नाम पर भारत बाँट रखा था, जब देश आजाद हुआ हमने धर्म के नाम पर देश बांट लिया, आज फिर हम बाँटने की दिशा में बढ़ रहे है, शायद अब जरुर किसी महारथी को गुस्सा आये और कहे किसमें हिम्मत है जो अब बाँटने की बात करे? बिलकुल उसी अंदाज में कहे जिस अंदाज में गाँधी जी ने कहा था कि देश का बंटवारा मेरी लाश से गुजरकर होगा.

खैर में इतिहास की खुराक अलग रख वर्तमान पर आता हूँ तो अजान से दिक्कत सबको हुई पर जागरण पर पूरी रात कानफोडू संगीत से एक नहीं, सोनू निगम सब मुसलमानों को याद रहा लेकिन अहमद पटेल द्वारा उसे समर्थन करने को सब भूल गये. अजान के शोर से वोट टटोली गयी, वन्देमातरम पर बंटवारा हो गया. पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा लेंगे राष्ट्रगान हो या भारत माता की जय हम नहीं बोलेंगे. गौऊ माता की खाल राजनेताओं ने बेच ली, बीफ दुकानदारों ने. गंगा में डूबकी लगाकर सब पाप धुल जायेंगे भले ही वो मैली क्यों न हो.

राष्ट्रवाद की निर्मल धारा बह रही है भले ही नदियों के गंदे नाले बन गये हो, कुपोषण से बच्चे मर रहे है, साइकलों और सिरों पर गरीब लाश ढो रहे है पर मेरा देश बदल रहा है. शायद यह पढ़कर कोई मेरे मुंह पर गुजरात के विकास का पोस्टर चिपका दे कि देख देशद्रोही तुझे तो कमियां ही नजर आएगी. सत्तर साल बाद देश में कुछ अच्छा हो रहा है लेकिन तुम लोगों को रास नहीं आ रहा है. में भी कहता हूँ बहुत कुछ अच्छा हो रहा लेकिन जो बुरा होता है क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?

यह आशा का दौर नहीं है. चीजें समाप्त हो रही हैं, हर चीज धर्म के चश्मे से देखकर खटकती जा रही है. एक सीमित सोच रखकर ही बात हो रही है. किसान अब देश के नहीं रहे अब वो भाजपा और कांग्रेस के हो गये. लगता है किसान की हालत झूरी के दो बैल हीरा-मोती के जैसी हो गयी कहने की सीमा सिमटती जा रही है. अब कहने को कुछ नहीं बचा है तो सिर्फ यह कि हम देश से जुड़े लोग न होकर पार्टियों से जुड़े लोग हो गये और सच कहने वाले पंच परमेश्वर बिगाड़ के डर से मौन कि कहीं राष्ट्रवाद का तमगा न छिन्न जाये…राजीव चौधरी

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