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दुनिया में उभयचरों की करीब छह हजार प्रजातियां खतरे में हैं. शायद इसमें कांग्रेस का भी नाम हो! अभी उत्तर प्रदेश में थोड़े दिन पहले राहुल मदारी की हैसियत से गया था पर अब जमूरा होकर रह गया. उस्ताद जो पूछेगा जमूरा वोई-वोई बोलेगा. अभी बीबीसी पर पढ़ा कि कभी कांग्रेस की सदस्यता चव्वनी में मिलती थी आज न चवन्नी बची न कांग्रेस. हो सकता है यही कहकर कांग्रेस को 105 सीट दी हो कि जा तेरी हेसियत ही चव्वनी भर की है.
यूँ तो चुनाव पांच राज्यों में है पर मीडिया की नजर इस बार उत्तर प्रदेश पर ज्यादा है. जैसे किसी गाँव में एक साथ कई शादी हो और सब गांववालों नजर कोई एक बदचलन सी लड़की की शादी पर हो!
लोग कहते है राजनितिक लेखन में गंभीरता झलकनी चाहिए पर ऐसे लोगों से मेरा सवाल है क्या राजनीति में गंभीरता है? नेताओं के चेहरों पर गंभीरता है? कल तक एक दुसरे को कोसने वाले नेता आज एक दुसरे के कसीदे पढ़ रहे है. हाँ हार-जीत का भय हो सकता है वरना गंभीरता होती तो यह लोग एक पार्टी छोड़कर मेढक की तरह दूसरी में कूदते?
पिछले कितने दिन से समाजवादी परिवार में साईकिल को लेकर हाहाकार था. ये हाल था कि कि रात के बारह बजे भी टीवी ओन करो तो संवादाता लखनऊ से भीषण ठंड में यही कहता मिलता. आखिर किसकी होगी साईकिल? टीवी चैनल्स देख देख कर आंखें सूज गई हैं. टीवी कैमरे जिन तीन टांगों पर खड़े हैं वो भी मारे थकान के टेढ़ी हुई जा रही थी.
खबर है प्रियंका और डिम्पल यादव मिलकर चुनाव प्रचार करेगी. यदि ऐसा हुआ तो ये जरुर मायावती के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी. क्योंकि मतदाता बड़े तेज हो गये आजकल चेहरा देखकर बात करते है. सारी बात कहने की नहीं होती समझ तो गये होंगे सब? यदि आज मैथलीशरण गुप्त होते तो जरुर लिखते कि
चुनावी बाजार में एक रमिणी अनमनी सी है अहो
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो?
धीरज धरो संसार में, किसकी पार्टी के नही है दुर्दिन फिरे
हे राम! रक्षा कीजिए, यह अबला न भूतल पर गिरे
सुना है यदि सपा-कांग्रेस गठबंधन जीत गया तो एक नया उत्तर प्रदेश देखने को मिलेगा, बिलकुल बनना भी चाहिए पर सवाल भी है कि क्या पुराना उत्तर प्रदेश बेच दिया जायेगा?
अभी सोशल मीडिया पर चला गया फेसबुक लॉग इन किया पहली पोस्ट सामने आई जाट भाइयों हरियाणे का बदला लेना है मिलकर भाजपा को हराओ. पता चला इस बार रालोद पार्टी अकेले चुनाव लड़ रही है. तो कार्यकर्ताओं ने सोचा होगा क्यों न लगे हाथ भिखारी की तरह खुरंड खुरच कर माल बटोरा जाये! हालाँकि दो दिन पहले लग रहा की सपा से रालोद का गठबंधन होगा पर सगाई के बाद दान दहेज पर लड़के वालों से बात बिगड़ गयी अब लड़की कामयाब होकर ही शादी करेगी!!
हालाँकि रालोद भारत की एकमात्र ऐसी पार्टी है जो अपनी राजनीति की रेहड़ी बाजार के बीच में रखती है. पर इस बार बाजार के बाहर है तो क्यों ना आवाज तेज कर सबके दाम बिगाड़ दिए जाये. रेहड़ी से याद आया एक मियां जी सेब बेच रहे थे. दुसरे ने पूछा मियां जी सेब क्या भाव है मियां जी ने कहा 50 रूपये. उसने कहा ठीक है सारे तोल दो. मियां बोले जा अपना काम कर सारे तोल दूंगा तो शाम तक क्या बेचूंगा? मतलब पार्टी के पास एक आध मुद्दा है वो भला इतना जल्दी किसी को कैसे दे? ये मुद्दा कम है बल्कि पार्टी के लिए वियाग्रा ज्यादा है.
बहरहाल में अजीत सिंह की लोकसभा सीट का मतदाता हूँ तो रालोद का कोई घोषणापत्र तो कभी आता नहीं कि में कुकर, मोबाइल लेपटाप का इंतजार करू बस यहाँ तो सीधे किसान मसीहा चैधरी चरणसिंह सपनों में आ जाते है. पर इस बार चुनाव में इतना शोर मचा है नींद ही नहीं आती तो सपना कहाँ से आएगा?
तो इन सारे मामले पर गौर करूं तो इस तरह उत्तर प्रदेश की जो तस्वीर बनती है, वो ब्लैक एंड व्हाइट नहीं बल्कि ग्रे है. और ग्रे तो आपको मालूम ही है कि काले और सफेद को घोलकर बनता है. मटमेला इस रंग को समझते है ना?
अभी पार्टियों के घोषणापत्र आने वाले है. इसके बाद मस्जिदों में नेता होंगे और पोस्टरों पर मुल्ला जी वो सुना तो होगा न कि साम्प्रदायिक ताकतों से जो लड़ना है. हो सकता है इस बार चुनाव आयोग के हाथ में हर समय लकड़ी का गोल गुल्ला रहे. पता नहीं ओवेसी या साक्षी महाराज किसके मुंह में देना पड़ जाये.
खैर उत्तर प्रदेश में कुछेक राजनेतिक दलों के इच्छाधारी कार्यकर्ताओं की माने तो प्रदेश में सिर्फ भाजपा को छोड़कर और कोई समस्या नहीं है आर्थिक, राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक समस्याएं और दंगे जितने कल थे, आज भी उतने ही हैं. शायद आने वाले दिनों में और भी ज्यादा हो जाएं. बुनियादी लोकतांत्रिक ढांचे पर अंदर या बाहर से कोई नई चोट बेशक लगे बस किसी तरह इनके नेता जीत जाये.. मजदुर किसान, शिक्षा, सड़क, भ्रष्टाचार, सर्वसमावेशी विकास, जाये भाड़ में,, यार सच कहूँ दो पेग लगते ही उत्तर-प्रदेश लन्दन हो जाता है….राजीव चौधरी
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