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पहले पीडिता के प्रति सोच बदले समाज!

लिखा रेत पर
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बुलंदशहर रेप केस के सभी आरोपी पकडे गये वाकई मीडिया और पुलिस इस मामले में प्रसंशा की पात्र है| अब आगे का काम न्याय पालिका के जिम्मे है देखते है इस मामले में उसकी भूमिका क्या रहेगी! लेकिन बुलंदशहर से थोड़ी दूर जिला गौतमबुद्धनगर में आठवी क्लास की छात्रा के साथ सरेबाजार अपहरण कर यमुना एक्सप्रेस वे पर सामूहिक दुष्कर्म हो जाना इस बात को भी दर्शाता है कि अपराधी बेखोफ है| उनके अन्दर समाज और कानून का भय समाप्त हो चूका है| शायद ये खबर मीडिया में बुलंदशहर जितना ना उछले और उछले भी क्यों रेप जैसे केस भारत में हर मिनट में हो रहे है| इन पर कहाँ तक लिखे कहाँ तक उस पर प्रोग्राम चलाये? सच्चाई भी यही है कि यदि लिखने से रेप जैसे कृत्य रुकते तो हमारे पास आदिकाल से इतने धार्मिक सामाजिक ग्रन्थ है उनसे ही रुक जाते! में दावे के साथ कह सकता हूँ रेप नहीं रुकेंगे| यदि समाज इस भ्रम में जी रहा है तो अपना भ्रम खत्म करे| क्योंकि बलात्कारी कोई दुसरे गृह से नहीं आते बलात्कारी इसी समाज का हिस्सा है| एक पकड़ा जाता है दूसरा खड़ा हो जाता है| पहले में सोचता था कि यह घिनोना कृत्य वासना के क्षणिक आवेश का हिस्सा भर होता होगा, जिसकी जद में आकर कोई भी अपराध को अंजाम दे देता होगा| किन्तु जब कोई सामूहिक दुष्कर्म होता है जिसमें कई बार पीडित युवती कोई नाबालिग या बच्ची भी होती है तो मै सोचता हूँ, कि आखिर सब के सब एक साथ हैवान कैसे हो जाते है! क्या उन कई लोगों में से एक की भी आत्मा उसे अन्दर से नहीं कचोटती कि यह गलत है, यह पाप है? ऐसा नही करना चाहिए| आखिर क्यों उस समय पीडिता के प्रति एक भी दुष्कर्मी सवेंदनशील नहीं रहता?

प्राणी जगत में मनुष्य समाज अकेला ऐसा जीव  है जो अपनी मादा के प्रति हिंसक व्यवहार अपनाता आया है| जब कोई बलात्कार जैसे घिनोने कृत्य को पशुवत व्यवहार से तोलता है, तो यह प्रश्न प्रासंगिक हो जाता है कि ऐसा कौन सा पशु है, जो इस तरह के घिनोने कार्य करता है? पहले तो हमे यह बात समझ लेनी होगी कि मनुष्य समाज को छोड़ दे तो हर एक जीव सम्भोग केवल प्रजनन के लिए करता है, मौज, मस्ती या किसी को शर्मशार करने के लिए नहीं| और उससे पहले उसका नर समूह चाहें वो एक हो या गिनती में एक से ज्यादा, अपनी मादा को रिझाते हैद्य उसके बाद मादा जिससे चाहे चुनाव कर शारारिक और भावनात्मक रूप से कुछ पल बंध जाये या नहीं यह भी मादा पर निर्भर करता है| किन्तु पशु दुष्कर्म नहीं करते| लेकिन मनुष्य समाज में अधिकतर मादा के शरीर का शोषण ही किया जाता है जिनमें कई बार भावनात्मक तत्व न के बराबर होता है|

हर एक रेप के बाद समाज निंदा कर उठता है| कहता है, कि पतन हो गया, कलियुग आ गया, धर्मभ्रष्ट हो गया। साथ में पीडिता को भी यह अहसास कराया जाता है कि अब वो इस समाज में सम्मान का जीवन जीने के लायक नहीं रही| उसका सब सतीत्व नष्ट हो गया| उसे इस मोड़ पर खड़ा कर देते है कि वो आत्महत्या तक कर लेती है| अगर वो बेचारी जिंदा रह जाती तो इसको जीवन भर लांछन सहना पड़ता। जो उसको लांछन देते, वे सब के सब भी कहीं न कहीं इस पाप में भागीदार होते है। जो दुष्कर्मी ने किया वो इतना बड़ा बलात्कार नहीं था बड़ा बलात्कार तो उसके बाद लांछन लगा कर समाज करता है| क्योंकि अगर पीडिता जिंदा रह जाती तो उसका परिवार भी उसको नीची नजर से देखता, बच्चे भी उसको वो सम्मान नहीं दे पाते, यहाँ तक है कि समाज में जो खुद भी एक नारी है, उनका भी नजरिया बदला मिलता है| लेकिन जब पीडिता आत्महत्या कर लेती है सब के सब उसे एक सुर में उसे स्वाभिमानी और सती बताने लगते है! जैसे उसने बड़ा गजब का या बड़ा महान कार्य किया हो! लेकिन वो असल विरोध कोई नहीं करता जो होना चाहिए|

हर एक परिवार इसी देश और समाज का हिस्सा है| आखिर क्यों वो परिवार अपने बच्चों का तिरस्कार नहीं करते जिनके बच्चें इस तरह के कार्यों में बतौर अपराधी पकडे जाते है? क्यों उनका पारिवारिक और सामाजिक बहिस्कार नहीं होता? इसके बाद प्रशासन और न्याय व्यवस्था भी कई बार पीडिता के प्रति उतना सवेंदना न रखते हुए अपराधी के पाले में ज्यादा झुकती दिखाई देती है| लगता है कहीं न कहीं आज हमारा समाज गुरु चेला सुपारी के पैकट की तरह हो गया जिसे ऊपर से देखो तो गुरु नजर और घुमाकर देखने से चेला नजर आता है| हमेशा पीडिता के प्रति समाज जो सवेंदना व्यक्त करता है, उससे उसका नजरिया साफ नजर झलकता है कि अब बलात्कार पीडिता इस समाज का हिस्सा नहीं रही| जबकि अपराधी जेल से निकलकर बाकायदा इस समाज में घुल-मिल जाता है तो इससे लगता है अभी हम पूर्ण जिम्मेदारी से बलात्कार के विरोध में नहीं खड़े हुए हैद्य हम सिर्फ पीडिता के विरोध में हैद्य हम सिर्फ मौखिक विरोध जता समाज में अपनी चरित्रवान होने की उपस्थिति दर्शा रहे है|

बलात्कार की नहीं निंदा बलात्कारियों की होनी चाहिए| साथ में कड़े कानून की मांग भी जरूर की जानी चाहिए।  बल्कि बलात्कारियों के परिवार का सामाजिक बहिस्कार भी होना चाहिए ताकि दुष्कर्म करने से पहले अपराधी के मन में समाज और कानून का खोफ हो| लेकिन साथ में इसी समाज की भी निंदा की जानी चाहिए जो पीडिता के प्रति अपनी सोच नहीं बदलता उसे भ्रष्ट समझ लेता है| हमारे समाज ने नारी के चरित्र को हमेशा से महानता से पेश किया उसके योंन अंगो को पवित्रता के और धार्मिकता के ऐसे आभूषण पहना दिये हैं, कि मुश्किल खड़ी हो गई है। कहीं इसी की वजह से कुछ लोग पागल तो नहीं है कि जिसे नारी का प्रेम नहीं मिलता वो प्रेम जबरन छीनना चाहता हो? नारी की निकटता पाने का यही सरल सुगम मार्ग समझ लिया हो? या मोबाइल में पोर्न मूवी देखकर, दोअर्थी संगीत सुनकर, सस्ते गंदे नशे कर इस पवित्रता के श्रंगार को लूटना चाहता हो? अपनी काम वासना में जलते हुए नारी को शर्मशार करना चाहता हो? यदि ऐसा है तो अपराधी की सजा भी कुछ ऐसी ही हो कि जो मौत से भी बदतर हो और साथ में उसे परिवार और समाज में शर्मशार भी करे…Rajeev choudhary

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