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पाकिस्तान में क्या पढाया जाता है!

लिखा रेत पर
लिखा रेत पर
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अभी हाल ही में पाकिस्तान में शिक्षा के गिरते स्तर पर वहां एक आवाज़ मुखर हुई है| मदरसों के बाद सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रम में शिक्षा के इस्लामीकरण से वहां का एक पढ़ा लिखा तबका नाराज है| पाकिस्तान के कुछ विचारक बुद्धिजीवी इस बात को गंभीरता से लेकर कहते है कि हमारी सरकारी स्कूल की किताबे नफरत फैलाने वाली है हमने एक अनजाने भय में इतिहास बदल दिया हम हर एक पुस्तक में अपने ख्वाब, दावे और इस्लाम लिखते है|पिछले 70 साल में हम ये फैसला नहीं कर पाए कि ये मुल्क क्यों बना था शायद मुसलमानों की बेहतरी के लिए? किन्तु अब हम देखते है कि हम से बेहतर स्थिति में तो भारत का मुसलमान है| बाहर के मसलों और जिहाद पर ध्यान देने के बजाय बेहतर होता हम अपने मुल्क की तरक्की पर ध्यान देते| पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा आज कश्मीर की आजादी के लिए नारा रहा है| अच्छा होता यहाँ का समुदाय अपनी मिलनी वाली अच्छी शिक्षा के लिए लड़ता| पाकिस्तान की कायदे आजम यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर परवेज हुदबोय पिछले दिनों अपने एक आर्टिकल में लिखते है कि पाकिस्तान में विज्ञानं या अन्य विषयों पर अक्ल का प्रयोग करना जुर्म है| यहाँ कालिजो में प्रोफेसर को जब रखा जाता है यदि वो नमाज पढना जानता हो उसके बाद उसका मजहब और जाति देखी जाती है| भौतिक हो या रसायन विज्ञानं हर जगह इस्लामिक शिक्षा इस कदर घुसेड दी गयी है कि कोई बच्चा ना चाहते हुए भी उसका सामना इस्लामिक शिक्षा से हुए बगेर नही रह सकता| वो आगे लिखते है कि पाकिस्तान की दसवीं जमात की फिजिक्स की किताबों में इस कदर बिना मतलब के सवाल भर रखे है कि पता ही नहीं चलता ये भोतिक विज्ञानं है या कोई रूहानी किताब| जैसे दसवी कक्षा की किताबों में लिखा है कि दोखज का क्षेत्रफल कितना है? नमाज के शबाब की गणना यानि के केल्कुलेट कैसे करे? यही नहीं नोवी कक्षा की फिजिक्स की किताब में पूछा है कि जिन और शैतान का वजूद क्या है, क्या इनसे बिजली पैदा की जा सकती है? परवेज आगे लिखते है कि दसवी जमात की बायोलोजी की किताब में लिखा है कि जब वसल्लम साहब पर बही नाजिल हुई तो उसे जन्नत के मुताबिक कहा गया| किताब में आगे एक प्रश्न पूछा गया कि इस्लामी तामील हासिल करना मर्दों का एक फर्ज एक बुनयादी उसूल है| सही या गलत? पिन हाल कैमरा इबनुल हसन ने तैयार किया था ऐसी न जाने कितनी रूहानी बातों से पाकिस्तान के पाठ्यक्रम भरे पड़े है| परवेज आगे पूछते है पाकिस्तान का बच्चा इन पुस्तकों को पढ़कर क्या बनेगा कोई बता सकता है? अपनी मजहबी सनक के कारण पाकिस्तान के हुक्मरान अपने बच्चों अपने देश के भविष्य को अंधकार में भेज रहे है| परवेज आगे कहते है कि विज्ञानं जैसे बुनयादी विषय को हम उर्दू या अरबी भाषा में नहीं पढ़ सकते क्योकि इन भाषाओं में तो विज्ञानं शब्द कही है ही नहीं| ये दीन की भाषा हो सकती है किन्तु विज्ञानं और आधुनिक समाज को समझने के लिए नहीं हो सकती|

बात यही खत्म नहीं होती पाकिस्तान के पंजाब टेक्स्ट बोर्ड में भी इसी तरह की नफरत फैलाने वाली शिक्षा है| मसलन हर एक अध्याय में हिन्दू व् अन्य धर्म पर कटाक्ष लिखा है| इन्ही दिनों पाकिस्तान का कुछ युवा भी अपने ही देश की शिक्षा नीति खिलाफ मुखर है वो प्रश्न रखते है कि हमें बड़ी शान से पढाया जाता है कि किस तरह गजनवी सोमनाथ समेत कितने मंदिर तोड़ता है और वो हमारा नायक होता है किन्तु जब बाबरी मस्जिद टूटती है तो इस्लाम खतरें में आ जाता है ऐसा क्यों? छात्र आगे पूछते है कि जब मुसलमानों के ऊपर हिंदुस्तान में कोई प्रतिबंध नहीं था ना रोजे पर ना नमाज पर तो अलग राष्ट्र का आधार क्या था? इस प्रश्न पर हसन निसार अपनी बेबाक राय रखते हुए कहते है कि हमारा सारा इतिहास एक दुसरे की गर्दन काटने से भरा पड़ा है हमने अलग पाकिस्तान सिर्फ मुसलमानों की बेहतरी के लिए बनाया था पर यहाँ के शासक अपनी बेहतरी के लिए लगे है| हमेशा इस्लाम का रोना रोकर अपनी जेबे भरते है इसी कारण है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में सिर्फ मजहब घुसेड दिया गया है|

हम हमेशा आरोप लगाते है कि मुसलमानों को हमेशा साजिश कर लड़ाया जाता है तो इसका मतलब यह कि अन्य लोग हमसे बेहतर दिमाग रखते है? हसन निसार इस्लामिक शिक्षा के पक्षधर मौलानाओं से पूछते है कि बक्सर की लड़ाई में बाबर ने किसकी गर्दन उतारी थी? इब्राहीम लोधी की| क्या इसमें भी अमेरिका की साजिश थी? क्यों नहीं पढ़ाते कि तैमुर ने किसको मारा था! औरंगजेब ने अपने भाई को क्या रूस के इशारे पर मारा था? मोहम्मद बिन कासिम को खाल में सील कर किसने भेजा था? क्या वो इसराइल की साजिस थी? वो बात पुरानी लगती हो तो अपने बच्चों को ये पढाओ कि पाकिस्तान बनने के बाद कितने प्रधानमंत्रीयों को दुसरे ने फांसी पर टांग दिया| गद्दी से उतरकर क्यों यहाँ कोई प्रधानमंत्री नही रुकता? क्यों पाकिस्तान के इतने लोग बाहर निर्वासित जीवन जी रहे है? क्यों यहाँ का बचपन बारूद से खेल रहा है क्यों इन बच्चों को धर्मनिरपेक्ष शिक्षा और यूरोप-अमेरिका जैसा विज्ञानं पढने को नहीं मिल रहा है? शायद यही कारण है कि विज्ञानं में मुस्लिमों की देन न के बराबर है| शायद इसी कारण मुस्लिम एक गाड़ी का शीशा साफ़ करने का वाईपर भी इजाद नहीं कर पाया?  अंत में हसन निसार कहते है कि आज मुस्लिम देशो का मुसलमान क्वालिटी पैदा नहीं कर रहा है बस  क्वांटिटी पैदा कर रहा है जो आगे चलकर इन्ही के लिए नुकसान बनेगा| राजीव चौधरी

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