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वो भूखा नंगा भी भारत माँ का बेटा है!

लिखा रेत पर
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कुछ लोग कहते हैं कि ‘चाहे सर काट दो फिर भी भारत माता की जय नहीं बोलेंगे|” हमारे हाथ कानून से बंधे हैं नहीं तो लाखों सर धड़ से अलग हो जाते| भारत माता की जय’ पर जारी विवाद के बीच स्वामी रामदेव ने यह कहकर इस मामले की भड़कती आग में घी सा डाल दिया है| उन्होंने MIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी पर इशारों-इशारों में निशाना साधा है| सबसे बड़ी बात यह है वह हरियाणा के रोहतक में आयोजित एक सौहार्द रैली में बोल रहे थे| रामदेव अपने भाषण में पहले तो देशभक्ति की बातें कर रहे थे| अचानक बाबा जोश में आये और यह इतना बड़ा बयान दे डाला| अजीब बात है कश्मीर में भारत माँ की जय बोलो लट्ट खाने को मिलते है दिल्ली में ना बोलो जान आफत में आ जाती है!!खैर मीडिया की तो चांदी हो गयी अब बाबा पर सबसे बड़ी बहस होगी खूब  ताल ठोकी जाएगी| मीडिया को प्रायोजक मिल जांयेंगे और  बाबा को कवरेज| किन्तु देश को क्या मिलेगा? शायद वो जो बच्चें शरारत में एक दुसरे को कह देते है, बाबा जी का ठुल्लू?

भारत माता की जय का उद्घोष अब तक अनिवार्य नहीं था। लोग अपनी-अपनी आस्था के मुताबिक इन प्रतीकों के साथ जुड़े हैं या नहीं भी जुड़े हैं। भारतीय संविधान ने किसी धार्मिक प्रतीक किसी समुदाय पर थोपा भी नहीं है। मुसलमानों को भले ही आप भारत माता की संतान न मानते हों, लेकिन दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और गरीब सवर्णों को क्या आप भारत माता की संतान मानते हैं? यदि मानते है आज भारत माता के सैकड़ो बच्चे कुपोषण का शिकार है, पूर्वोत्तर राज्यों में अधिकतर लोग भुखमरी का शिकार है| गरीबी के कारण मासूम बच्चियां देहव्यापार के लिए बेचीं जा रही है क्या वो भी माँ भारती की संतान है? यदि है वो संतान इस हाल में क्यों ? जिनके छूने से आप अपवित्र हो जाते है! जिनकी बस्तियां भी आपके नजदीक हो तो आप मैले हो जाते हो| जिनको आप अपने मंदिरों में नहीं आने देते जिनके साथ आप अपशब्दों से बात करते हो, उंच नीच का भेदभाव अपने मन में रखते हो क्या वो भारत माता की संतान है? यदि है तो एक माँ के बच्चों का आपस में भेदभाव कैसा?

हम आजाद भारत के सत्तर वें साल में है  किन्तु क्या आज हमारी राष्ट्रीयता इतनी कमजोर हो गयी है कि कुछ प्रतीकों और कुछ नारों  में ही राष्ट्र, लोकतंत्र और मनुष्यता, धर्म और संस्कृति, इतिहास और विरासत, मनुष्यता और सभ्यता सिमटकर रह गयी है। एक ओर  हम विश्वगुरु बनने का सपना देख रहे है। दूसरी ओर हम अभी यह तय नहीं कर पाए कि क्या किसी के नारे बोलने या ना बोलने से देश को क्या फर्क पड़ता है? जहाँ इस समय पुरातन कैदखाने तोड़कर बाहर निकलने का समय था वहाँ हम लोग इन कैदखानो की दीवार मजबूत करने का काम कर रहे है| ना कोई मुल्क नारों में होता ना बयानों में वो वहाँ की परम्पराओं में, लोक उत्सवों में, विविध संस्कृतियों, नस्लों और संप्रदायों और भाषाओं के बाद मनुष्यता और सभ्यता के मूल्यों से बंधा होता है| जो लोग भारत माता की जय नहीं बोल रहे है मत बोलने दो| आप बोलो वो आपको मना तो नहीं कर रहे है? किसी व्यक्ति या संगठन को दोष देकर आप क्यों आत्मघाती कदम उठा रहे हो? अपने भीतर झांकने की जरुरत है| कि क्या हमारा अंध राष्ट्रवाद का यह हिंसक धर्मोन्माद और जबरदस्ती हमारी मनुष्यता, हमारी आस्था हमारी लोक विरासत, हमारी भाषा और संस्कृति के अनुसार है? जिस दिन ओवैसी ने कहा हम भारत माता की जय नहीं बालेंगे उसी दिन कह दिया होता मत बोलो यदि आपका  धर्म इस बात की गवाही नही देता मत बोलो किन्तु आपका धर्म भारत माता को डायन कहने का भी पाठ नहीं पढाता|

जो लोग भारत माता की जय ने बोलने पर  बेमतलब उग्र हो रहे है| भारत माता का प्रतीक बहुत पुराना भी नहीं है। साधू संतो के विद्रोह के दौरान भारत माता का यह प्रतीक बना, जिसे इस देश के अल्पसंख्यकों ने कभी स्वीकारा नहीं है। क्योंकि वो इसे हिंदुत्व का प्रतीक भी मानते है, भारत माता की देवी बनाकर उसकी तस्वीर बनाकर पूजा की जाती है जिसमें देश को हिंदू देवी के रूप में देखा जाता है। इसे लेकर बहुत विवाद भी हुआ हो, ऐसा भी नहीं है। जैसे जो लोग वन्देमातरम को अनिवार्य मानते हैं, उन्हें वन्देमातरम की स्वतंत्रता है और जो नहीं मानते उनके लिए वन्देमातरम अनिवार्य नहीं है। हमारे पडोस में एक शराबी है वो कभी कभी पीकर कह जाता है कि जो लोग कहते हैं औरतें कमज़ोर होती हैं वो जरा सर घुमा के देखो हर तरफ दीवारें ‘मर्दाना कमज़ोरी के इश्तेहारों से पुती पड़ी है  भ्रम टूट जायेगा| एक भारत माता की जय बोलने से हमारे देश के अन्दर कोई कमजोरी नहीं आएगी कमजोरी आती है राजनेताओं के बयानों से देश विरोधी नारों से| तभी शायद इन दिनों सोशल मीडिया पर चार लाइन बड़ी जमकर चलकर रही है प्रभु मुझको फिर से इन्सान बना दो, हरी –भरी  जमीं खिलता आसमान बना दो, कायम रहे अमन सकून जब तक दुनिया रहे, कुछ ऐसा चमने-मुल्के-मेरा हिन्दुस्तान बना दो..राजीव चौधरी http://likharaitpar.blogspot.in/2016/03/blog-post_58.html

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