लोकतंत्र
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रोकते गति तोड़ते मन फैलता विष हर ओर है ।
लूटते यह देश क्यों सुन रोष अब पुरजोर है ।
आज़ाद है उजाड़ क्यों यह देश आज जवाब दो ।
छीन ली सब रोशनी अब श्वेत पट भी त्याग दो ।
उठ जाए फिर लड़ जाए फिर देख जन घिर जागता ।
उठ गई कैसी आग है यह आज तू है सोचता ?
किसान फाँसी चढ़ता औ मज़दूर रोटी ढूँढ़ता ।
सत्ता में मदहोश है तू जन हित नित ही भूलता ।
धिक्कार है धिक्कार है यह सत्ता तो मक्कार है ।
फैला हुआ चहुँ ओर आज कितना भ्रष्टाचार है ।
जनसत्ता की जनहित की देखो उठती आवाज है ।
न रुकेगी न दबेगी बढ़ती चलेगी नाराज है ।
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