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प्रत्येक चुनाव में गरीबी हटाने का वादा करने वाले राजनीतिक दल पता नहीं क्यों किसी गरीब को अपना उम्मीदवार बनाने का साहस नही जूटा पाते ……. इस बार का चुनाव भी कोई अपवाद नहीं है। चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा , सपा हो या बसपा सभी दलों ने करोड़पति लोगो को ही चुनाव में टिकट दिए है। बीते पांच चरणो के चुनाव में 28 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति रहे है आने वाले दिनों में नामांकन के साथ यह आंकड़ा और अधिक बढ़ने वाला है। कांग्रेस के 84 फीसदी और भाजपा के 74 फीसदी प्रत्याशी करोड़पति है इनकी औसत संपत्ति 5 करोड़ से अधिक है। कमोबेश सभी राजनीतिक दल इसमें शामिल है। दिलचस्प बात ये है की आम आदमी की पार्टी होने का दावा करने वाली आप ने भी आम आदमियो को चुनाव लड़ाने के बजाय करोड़पतियों को ही तरजीह दी है। आज़ादी के बाद से ही गरीबी हटाने का दावा करके गरीबो के वोट लेने वाले राजनीतिक दलों की कथनी और करनी में अंतर यंही पर सामने आ जाता है। राजनीतिक दलों को गरीब लोगो के वोट तो चाहिए लेकिन गरीबो को प्रतिनिधित्त्व देने पर वह क्यों गंभीर नहीं है ये सर्वविदित है की आजकल चुनाव व्यक्तिगत छवि के नहीं बल्कि धनबल से जीते जाने लगे है।
सवाल ये है की क्या एक गरीब आदमी कभी चुनाव जीतकर संसद में गरीबो का प्रतिनिधित्त्व नहीं कर सकता है ? वह भी तब जबकी देश में आज भी 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे है… या फिर राजनीतिक दल गरीबों को इस लायक समझती ही नहीं है ?
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