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माँ आप जब तब किसी साधु तो कभी किसी मन्दिर से कोई धागा लाती हो और मेरे हाथ पर बाँध दिया करती हो …मैं इन सब पर विश्वास नही करता लेकिन आपको अपनी ऐसे फ़िक्र करते देख अच्छा लगता और आज तक मैं इन धागो को खुद से अलग नहीं करता …इसलिए नहीं कि मैं डरता हूँ बल्कि इसलिए कि इनमें भी आपका प्यार छलकता है …….रात को मैं चाहे कितनी देर से घर आया मैने आपको हमेशा मेरे इन्तज़ार मे जागते पाया…… आपको पता रहता कि मैं किसी पार्टी से आया हूँ लेकिन फ़िर भी आप पूछती खाना खायेगा ? …… रात को मेरे सोते होने पर आप आतीं और मुझे जगाकर पूछती हो सो रहा है ……मैं कहता हाँ तो कहती सो जा फ़िर …मैं झुंझला जाता हूँ लेकिन मुझे पता है आपको मेरी फ़िक्र है …….मेरे लिए आप अलग से मिठाई बचाकर फ़्रिज मे रखती हो और रात को मुझे सोते से जगाकर आप कहतीं ले खा ले फ़िर नही बचेंगी…… पता नहीं और भी कितनी बाते है……. बचपन से देख रहा हूँ …. महसूस कर रहा हूँ …आपने क्या नहीं किया मेरे लिये ….मुझे पता है कि ये जो कुछ भी मैने यँहा लिखा आप नही पढ़ोगी …. क्योंकि आप फेसबुक चलाना कँहा जानतीं हो …लेकिन माँ मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ और आपको ये कंही पढ़ने कि ज़रुरत नही है …… ये सिर्फ हम दोनो जानते है…
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