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भ्र्ष्टाचार….

मन की बात
मन की बात
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कल मेरे मन में सवाल आया की देश में सबसे भ्रष्ट महकम कौन सा है। वैसे तो इक्का दुक्का महकमों को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा महकमा होगा जंहा अधिकारी मौका मिलते ही चौका जमाने से चूकते होंगे। पुलिस, लोक निर्माण विभाग, खननं, रेलवे, कृषि, समाज कल्याण पता नहीं कितने , ज्यादा बदनाम लोनिव और पुलिस लेकिन मैं आपका ध्यान स्वास्थ्य विभाग की और दिलाना चाहूंगा जंहा के भर्ष्टाचार पर काम लोगो की नज़र जाती है। जाती इसलिए नहीं क्योंकि इसके लिए अस्पताल जाना पड़ता है अव्वल तो अच्छा खासा आदमी अस्पताल जाएगा नहीं और सरकारी अस्पताल की हालत देखते हुए कोई सक्षम आदमी बीमार होने पर भी वंहा जाना पसंद करता नहीं और बाकी गरीबी के मारे जो लोग वंहा पंहुचते भी है वो कोई शिकायत करने की हालत में नहीं होते।

बहरहाल जहाँ तक मुझे जानकारी है किसी सरकारी डॉक्टर की तनख्वाह जोड़ जाड करके कम से कम 50 – 60 हज़ार रुपये होती ही है और इसके बाद यह आंकड़ा लाख को पार करता जाता है। लेकिन इसके बाद भी ज़रुरत होती है झोल झाल की। सबको पता है सरकारी अस्पतालों में कभी भी आपको दवाई नहीं मिलती 2 -4 लाल पीली गोलिया थमाने के बाद आपको पर्ची थामकर बाहर से दवा खरीदने भेज दिया जाता है। आपके और दिन भर देखे गए फ़र्ज़ी मरीजों के हिस्से की दवाये मेडिकल स्टोरों पर बेच दी जाती है। बाहर लिखी गयी दवाई के बदले संबधित दवा कम्पनी से मिलने वाला मोटा कमीशन अलग से अंटी में वो अलग.…मरीज को दवा असली दी या नकली दवा का इंजेक्शन लगाया या ऐसे ही झबका दिया ये पढ़े लिखे को नहीं पता चल पाता बेचारा अनपढ़ गरीब क्या समझेगा …… मरीज को भर्ती करने के बजाय निजी अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है बदले में मिलता है मोटा कमीशन…… भर्ती क्यों नहीं किया और किसी ख़ास अस्पताल में ही क्यों भेजा ये सोचने की फुर्सत उस मरीज और उसके तीमारदारों को कहा …… ऑक्सीजन सिलेंडर तक निजी अस्पतालों को बेच दिए जाते है। लोनिवि के अफसर अगर सड़क बनाने में गड़बड़ी करते है तो तभी के तभी यंहा तक की एक दो चार महीनो के बाद भी पता चल जाता है की गड़बड़ हुई है। लेकिन किसी मरीज को ऑक्सीजन लगा या नहीं लगा इसका पता कैसे चलेगा …….गरीब जनता के लिए चलाई जा रही सरकारी योजनाओ का पैसा कागजो में ही ठिकाने लगाया जाता है। गैर सरकारी संगठनो को करोडो की सहायता दी जाती है लेकिन ये संगठन धरातल पर होते ही नहीं है। गरीब आदमी को दवा मिलती नहीं लेकिन हर महीने लाखो की दवा एक्सपायर दर्शा कर नष्ट करा दी जाती है। ऐसे और भी ना जाने कितने हथकंडे है जिनसे इस महकमे में मोटा माल बनाया जाता है। लेकिन इस तरफ ध्यान कितनो का जाता है लोग तो लोनिवि और पुलिस के सामने नज़र आने वाले भ्र्ष्टाचार में उलझे रह जाते है ……. कोई इस महकमे पर भी तो ध्यान दो जो देश की सेहत सुधारने का ठेका लिए बैठा है ……

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