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बेटी का संताप

samras
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बेटी का संताप

जब एक दम्‍पति ने रहस्‍य जाना

भ्रूण के रुप में बेटी निश्चित हुआ आना

तो पति का सिर चकराया

जन्‍म से लेकर विवाह तक

खर्च ही खर्च है ताउम्र तक

सोच पिता ने डॉक्‍टर से

भ्रूण हत्‍या करने का संपकल्‍प दोहराया

ज्‍यों ही डॉक्‍टर ने गर्भ से भ्रूण को गिराया

एक आवाज टकराई, जन्‍म लेने से पहले

तुमने ये कली क्‍यों मुरझाई ?

क्‍या था मेरा अपराध ?

मात्र बेटी होना था अभिशाप

अगर बेटी अभिशप्‍त है

तो आपने क्‍यों किया ?

मॉं से विवाह,

जन्‍म जन्‍मांतर तक साथ निभाने का वादा

वह भी किसी की बेटी थी

अरमानों से पढ़ी लिखी थी

उसने दुनिया बसाई

पिता का घर छोड़, डोली में बैठ,

आपके संग आई

दो संस्‍कृति का संगम कराया

प्रीति की डोर में बंधकर

पिता का नेह भुलाया

आपके परिजनों को हँसाया

कर्त्‍तव्‍य की बेदी पर खुद को लुटाया

हर तरफ त्‍याग और तपस्‍या

बदले में मिला क्‍या ?

अस्तित्‍व की बुझती बाती

मॉं। तुमने भी क्रूरता दिखाई

नहीं निभाया नन्‍हीं का साथ

आत्‍मा आपकी नहीं सकुचाई

मॉं बहुत रोई, पर कुछ ना कर पाई

बेटी भ्रूण हत्‍या इसी गति से होती रही

बेटों से कम बेटी आकी गई

तो यह देश बेटी विहीन हो जाएगा

वंश परम्‍परा डगमगा जाएगी

प्रेम और विवाह अस्तित्‍वहीन

रिश्‍ते मूक और समाज असंतुलित हो जाएगा

इसलिए समय है बेटी बचाइए,

और खूब पढ़ाइए ।

बेटी ने हर क्षेत्र में परचम लहराया है

विकास को बुलंदियों तक पहुँचाया है

रक्षाबंधन पर भाई की सूनी कलाई होने से बचाई है

अस्‍तु सुरक्षा का भाव मत मिटाइए

बेटी के बिना बेटा अधूरा है

और सारा जग बेटी बिना सूना है ।

– राजीव सक्‍सेना

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