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हरी भरी प्रकृति, हरा भरा जीवन
प्रकृति ने मानव को अनेक उपहार प्रदान किए हैं – जैसे हवा, पानी, धरती एवं आकाश आदि । प्रकृति अपने प्रारंभ से ही मानव हित में रत रही है । जैसे जैसे मानव की आबादी बढ़ती गई मानव ने प्रकृति का बेहताशा दोहन शुरु कर दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि मौसम चक्र ही अनियमित हो गया । जंगल में अनेकों दुलर्भ एवं बहुमूल्य जड़ी बूटियॉं या तो नष्ट हो गई या फिर विलुप्त हो गई जिससे मानव जीवन में अनेकों परेशानियॉं का प्रादुर्भाव हुआ । आज सीमेंट के कंकरीट जंगल ने मानव को रहने के लिए घर तो दे दिया है लेकिन इसके साथ साथ अनेक प्रकार की समस्याओं को भी पैदा कर दिया है । आइए, विचारते हैं कि प्रकृति में किसने दखलनदाजी की है :-
उद्योग धंधे एवं शहरीकरण
आज मानव अपने रोजगार की तलाश में गांव से शहर की ओर अभिमुख हो रहा है । गांवों में कृषि कार्य के अतिरिक्त समय में कोई अच्छा रोजगार नहीं मिल पाता जिससे वह अपनी जीविका जीवंत रख सके । आज के औद्योगिक विकास ने शहरीकरण को बहुत महत्व दिया है । उसे रोजगार के साथ साथ अन्य वैभवशाली सुविधाओं का खजाना भी भेंट कर दिया है जिसके कारण आज का युवा गांवों से पलायन कर शहर की ओर लालायित हो रहा है । उद्योगपति भी शहर में या उसके आसपास ही उद्योगों को स्थापित एवं विकसित कर रहे हैं क्योंकि उन्हें भी सड़क, यातायात, बाजार, श्रमिक एवं मशीन की आपूर्ति सुलभ हो जाती है । उ द्योगों और शहरीकरण ने प्रकृति को मन माने ढंग से नष्ट किया है और जंगल के पशु, पक्षी आज मानव के घरों तक आने लगे हैं क्योंकि उनके लिए स्वतंत्र रुप से जंगल हैं ही नहीं ।अगर थोड़े बहुत हैं भी तो वहॉं प्राकृतिक सुविधाऍं समाप्त हो रही है । वायु, शोर, यातायात प्रदूषण ने तो मानव की सांसें रोक रखी हैं । निश्चित ही इसका दुष्परिणाम मानव को ही झेलना होगा ।
यह सही है कि हम विकास की गति को रोक नहीं सकते । हम मानव प्रगति के लिए उद्योग एवं शहरीकरण को बढ़ावा देते हैं लेकिन हमें यह सोचना होगा कि हम जितने जंगल काट रहे हैं क्या उतने वृक्षों को रोपित कर रहे हैं । शहरीकरण की एजेंसियों को एक जन जागरण अभियान शुरु करना होगा तथा हरेक घर में काम से कम पॉंच वृक्षों को लगाना होगा तथा उनका पूरा संरक्षण भी करना होगा ताकि वह किसी हद तक प्राकृतिक असंतुलन को पूरा कर सके । आम जन को भी इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए तभी हम हरी भरी प्रकृति हरा भरा जीवन की संकल्पना को मूर्त रुप दे सकते हैं ।
हरी भरी सड़कें व रेल यातायात
हम सभी को सामूहिक रूप से सड़कों के किनारे हरित क्रांति को लाना होगा । सड़कों को दोनों ओर हरे भरे वृक्ष रोपण करें ताकि वायु प्रदूषण् को नियंत्रित किया जा सके। सड़कों पर छाया बनी रहे और सड़कों के दोनों ओर लगे वृक्ष प्राकृतिक सौंदर्य को और चार चांद लगा सकेंगे । इससे भी स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा और एक राष्ट्रीय हरित क्रांति को संबल मिलेगा । इसी प्रकार देश के सभी रेल यातायात पर भी वृक्ष लगाए जाऍं तथा उनकी संरक्षा भी की जाऍ । समय समय पर उन्हें खाद, पानी आदि लगाने की व्यवस्था की जाए । अगर आपको कभी कौंकण रेल ट्रेक पर जाने का सुअवसर मिले तो आप वहॉं रेलवे ट्रेक के आसपास लगातार हरियाली ही पाएंगे। इससे जहॉं जलवायु खुशनुमा होती है वहीं दिल को सुकूल मिलता है । अधिकतर दक्षिण भारत में हरियाली पाई जाती है । गोवा में तो प्राय: हरेक आवास के आसपास में अधिकतर वृक्ष पाए जाते हैं । इसी संकल्पना को पूरे देश में बिना किसी भेदभाव के लागू किया जाए । सरकार और स्थानीय लोगों के सहयोग से हम इस क्षेत्र में प्रभावी भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं ।
शहरीकरण में नगर निगम की भूमिका
आज शहरीकरण और नगर निगम एक दूसरे के पूरक हो गए हैं । बिना शहरीकरण व नगर निगम के विकास की संकल्पना ही नहीं की जा सकती । नगर निगम नगर की प्रशासनिक एवं अन्य जरुरतों को पूरा करते हैं तथा समय समय पर कानून बनाते हैं एवं उनका अनुपालन सुनिश्चित करते हैं । अगर नगर निगम इन नियमों को जमीनी स्तर पर लागू करें कि उन आवासीय सोसाइटियों को ही निर्माण की अनुमति दी जाएगी जोकि वृक्षारोपण को प्राथमिकताऍं देंगी तो वह शहर स्वत: हरा भरा हो जाएगा और वहॉं पर रोग भी दूर होंगे । नियम तो हैं लेकिन उनका उचित अनुपालन नहीं हो पा रहा है । वृक्षारोपण को एक आवश्यकता के रुप में लिया जाए और इसमें जन भागीदारी सुनिश्चित की जाए ।
जलवायु की अनियमितता
प्रकृति ने मनुष्य को अनमोल तोफे के रुप में जंगल दिए हैं । जंगल पशु पक्षियों के लिए जरुरी है तथा उनके अस्तित्व के लिए जंगलों को होना आवश्यक है । हमारे देश में प्राय: यह सुनने में आता है कि शेरों एवं अन्य जंगली पशु पक्षियों की संख्या कम हो रही है । इसका प्रमुख कारण उनके विचरने के स्थल पर मानव आवासीय सोसाइटियॉं विकसित होने लगी हैं और बेचारे जंगली जानवर मानवों के डेरों में आकर अपना शिकार ढूंढने लगे हैं । आज कभी अत्यधिक वर्षा वह ही बेमौसमी तो कभी अल्प वर्षा से मानव जीवन त्रस्त हो रहा है । हमारी कृषि व्यवस्था इसके प्रभाव से अछूती नहीं रही है। अत्यधिक गर्मी एवं अत्यधिक ठंडी ने तो मानव जीवन को बुरी तरह परेशान कर दिया है । जंगल जलवायु को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं । कम से कम एक तिहाई भूभाग पर अनिवार्य रुप से जंगल विकसित किए जाने चाहिए ताकि पारिस्थितकी संतुलन बना रहे ।
अत्यधिक जनसंख्या
हमारा देश बहुजनसंख्या वाला देश है । अशिक्षा एवं अल्प ज्ञान इसका मुख्य कारण है । आजादी के बाद इतनी सरकारें आयीं सिवाय माननीया इंदिरा गांधीजी की सरकार के अलावा किसी भी सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण पर विचार करना आवश्यक नहीं समझा हालांकि उस समय की सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के गलत तरीके व जनता में असंतोष के कारण सत्ता से हाथ धोने पड़े थे । यही कारण है कि आज इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है । लेकिन मेरा विश्वास है कि जनता को इस ओर सोचना होगा। हमें हर काम के लिए सरकार की राह नहीं देखनी चाहिए । प्रत्येक व्यक्ति का यह निजी मामला है कि उसके घर में कितने सदस्य हों और वह कितनों की आवश्यकता पूरी कर सकता है । जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक आम जन जागरूकता अभियान चलाया जा सकता है । लोगों को जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए अनेको प्रलोभन देकर इसके लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है । देश में शिक्षा का विस्तार इस ओर विशेष ध्यान दे रहा है हालांकि आज शिक्षित परिवार जनसंख्या की दृष्टि से सीमित परिवार को महत्व दे रहा है । हमारा देश गांवों में बसता है।अत: हमें ग्रामीण परिवारों को इस ओर शिक्षित करना होगा तभी हम जनसंख्या पर नियंत्रण कर पाएंगे । अधिक जनसंख्या के कारण अधिक खाना, अधिक आवास एवं अन्य आवश्यकताओं का भार पड़ता है और विकास की चाह में मानव जंगलों को नष्ट करता जा रहा है ।
निष्कर्ष रुप में इस मंच के माध्यम से हम सभी को हरित क्रांति को बिना किसी भेदभाव को आत्मसात करना होगा । जहॉं भी संभव है वृक्ष उगाऍं और हरियाली का साम्राज्य फैलाऍं । हरियाली जहॉं जीवन में प्रसन्नता लाएगी वहीं मानव अनुकूल वातावरण निर्माण में भी अपना अमिट योगदान छोड़ेगी ।
हरियाली अपनाऍं हर जगह, खुशियों भरा जीवन पाऍं हर क्षण ।
– राजीव सक्सेना
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