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विश्व व्यापार संगठन और भारत

राजीव उपाध्याय
राजीव उपाध्याय
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दुनिया के तमाम विकसित देश विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सरलीकरण समझौता को लागू कराने की माँग और इसके लिए विभिन्न देशों से द्विपक्षीय और बहुपक्षीय वार्ताएँ बहुत दिनों से कर रहे थे। इसी क्रम में अमेरीका और अन्य विकसित देशों की सरकारें भारतीय सरकार से भी वार्ताएँ कर रही थीं और भारतीय सरकार भी बाली के मंत्रीस्तरीय वार्ता में इस संबन्ध में दिसम्बर 2013 में सहमति जता चुकी थी परन्तु देश की नयी सरकार अपने नागरिकों के हितों का हवाला देते हुए पूर्ववर्ती सरकार फैसले को पलट दिया और व्यापार सरलीकरण समझौता को स्वीकार करने से यह कहते हुए मना कर दिया है कि जब तक उसकी माँगों पर विचार और अनुकूल प्रस्ताव नहीं दिया जाता तब तक उसके लिए इस समझौते को स्वीकार करना संभव नहीं है। सरकार के इस फैसले के परिणाम स्वरूप दुनिया के विभिन्न अर्थशास्त्री, पत्रकार एवं सरकारें अपना क्षोभ जता चुकी हैं। उनका मत है कि भारत का यह कदम व्यापार सरलीकरण समझौता के भविष्य को खतरे में डाल दिया है और यह हर तरह से निराशाजनक है। इस फैसले ने भारत में भी चर्चा-परिचर्चाओं का एक गहन दौर शुरू कर दिया है। इससे पहले कि हम इस फैसले की समीक्षा करें, यह आवश्यक है कि विश्व व्यापार संगठन एवं व्यापार सरलीकरण समझौता से संबन्धित विभिन्न घटनाओं की समीक्षा की जाए।

© राजीव उपाध्याय

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