Menu
blogid : 19805 postid : 793688

सपनों में रिश्ते बुनते देखा

राजीव उपाध्याय
राजीव उपाध्याय
  • 12 Posts
  • 6 Comments

सपनों में रिश्ते बुनते देखा

जब आँख खुली तो

कुछ ना था;

आँखों को हाथों से

मलकर देखा

कुछ ना दिखा;

ख़्वाब था शायद ख़्वाब ही होगा।

सपनों में रिश्ते बुनते देखा॥

जब ना यकीं

हुआ आँखों को

धाव कुरेदा

ख़ूँ बहा कर देखा;

बहते ख़ूँ से

दिल पर

मरहम लगा कर देखा;

धाव था शायद धाव ही होगा।

सपनों में रिश्ते बुनते देखा
© राजीव उपाध्याय

स्वयं शून्य

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh