Menu
blogid : 19805 postid : 796645

स्टैण्डर्ड एन्ड पूअर्स के द्वारा किए गए साख सुधार का निहितार्थ

राजीव उपाध्याय
राजीव उपाध्याय
  • 12 Posts
  • 6 Comments

प्रधानमंत्री मोदी की अमेरीका यात्रा से तुरन्त पहले अमेरीका के स्टैण्डर्ड एन्ड पूअर्स नामक संस्था, जोकि आर्थिक एवं वित्तिय साख का आकलन करती है, ने भारत के साख को सुधारते हुए नकारात्मक से स्थिर की श्रेणी में वर्गीकृत किया है जोकि सामान्य रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा और कुछ हद तक सकारात्मक भी है। परन्तु यह सुधार प्रधानमंत्री के अमेरीका यात्रा से तुरन्त पहले ही हुआ है, तो देश में एक विवाद एवं विमर्श शुरू हो गया है कि क्या अमेरीका भारतीय प्रधानमंत्री को मीठी घूंट के सहारे कोई कड़वी दवा पीलाना चाहता है? हो सकता है कि ऐसा ही हो क्योंकि भारत में अमेरीका का बहुत बड़ा आर्थिक हित (विशेषकर विदेशी निवेश) निहित है जिसको वह प्रधानमंत्री और वर्तमान सरकार को साधकर जरूर सुरक्षित करना चाहेगा और इसमें कोई बहुत बराई भी नहीं है क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में अन्तराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक संबन्धों का उपयोग राजनैतिक एवं कूटनीतिक हथियार के रूप में सर्वमान्य है। अब ये भारतीय प्रधानमंत्री के विवेक और कौशल पर निर्भर है वे अमेरीका के कूटनीतिक प्रयासों से कैसे निपटते हैं एवं वो भारत के हितों का कहाँ तक ख्याल रख पाते हैं।

किसी भी अर्थ व्यवस्था के साख के निर्धारण में कुछ आवश्यक अवयवों का ख्याल रखा जाता है जिसमें से दो सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। सर्व प्रथम अर्थव्यवस्था के भविष्य को आंका जाता है लम्बी एवं नजदीकी अवधि के लिए। तदपश्चात राजनैतिक स्थिरता एवं प्रशासन की गुणवत्ता को आंका जाता है। अगर भारत की अर्थव्यवस्था पर ध्यान दें तो पाएंगे कि कुछ समय से भारतीय अर्थव्यवस्था कई तरह की समस्याओं से गुजर रही है जिसमें प्रशासनिक निर्णयों में बहुत देरी या फिर ना लेनी का स्वभाव तथा जवाबदेही का लगभव न होना, उच्च स्तर मंहगाई एवं गिरता विकास दर मुख्य रही हैं। इससे पहले कि हम साख के सुधार में निहित उद्देश्यों या फिर किसी और विषय की ओर जाएं, आवश्यक है कि साख में सुधार के क्या-क्या फायदा हो सकत्ते हैं और क्या वजहें हैं कि स्टैण्डर्ड एन्ड पूअर्स को भारत के साख में सुधार करना पड़ा।

सर्वप्रथम लाभों की चर्चा कर लिया जाए। किसी भी अर्थव्यवस्था के साख के आकलन का उद्देश्य केवल ये पता लगाना होता है कि क्या सरकार अपने कर्ज को समय पर चुकता कर पाएगी या नहीं और आर्थिक, व्यवसायिक एवं निवेश वातावरण कैसा है। खराब साख होने की स्थिति में सरकार को कर्ज मिलने में कठिनाई होती है और कर्ज महंगा मिलता है। साथ ही विदेशी निवेश में कमी आती है। अच्छी साख होने पर कर्ज सस्ता और आसानी से मिलता है और विदेशी निवेश की आमद बढ़ती है। यह स्थिति भारत जैसे देश लिए लाभकर है। भारत को उच्च आर्थिक विकास दर के लिए बहुत बडी मात्रा में निवेश की आवश्यकता है जिसमें कर्ज और विदेशी निवेश का भी योगदान तय है क्योंकि बहुत सारी  आधारभूत संरचना के विकास की परियोजनाएं विदेशी कर्ज या निवेश पर निर्भर हैं। अतः साख में सुधार की वजह से वर्तमान सरकार को भविष्य कि योजनाओं के लिए सस्ता एवं आसान कर्ज की व्यवस्था करने में कम कठिनाई होगी।

अक्सर ये आरोप लगता रहा है कि केन्द्र में एक निष्क्रिय सरकार है जो दिखती ही नहीं है। ये आरोप सरकार की कमजोरी को ही परिलक्ष्यित करते हैं। परन्तु अगर बर्तमान सरकार का मूल्यांकन किया जाए तो हम पाते हैं कि केन्द्रीय सत्ता में परिवर्तन के पश्चात एक मजबूत सरकार ने स्थान लिया है और ये सरकार निर्णय लेने से हिचकने वाली नहीं है। साथ ही इस सरकार की प्राथमिकता में प्रशासन को पारदर्शी एवं निर्णायक बनाने की है इसलिए ये सरकार सत्ता में आते ही प्रशासनिक ढाँचें की पेंच कसना शूरू कर दिया जो इसके प्राथमिकताओं प्रति समर्पण को दर्शाता है। अतः राजनैतिक स्तर पर वर्तमान सरकार स्थिर एवं मजबूत है जो शासन एवं प्रशासन के मामले में कार्य करने को तैयार है। इसका मतलब ये है कि साख निर्धारण करने वाली संस्थाओं को राजनैतिक स्थिरता एवं शासन-प्रशासन के गुणवत्ता के प्रति चिन्तित होने की कोई मजबूत वजह नहीं दिखती है।

जहाँ तक आर्थिक विकास, निवेश हेतु वातावरण एवं अन्य आर्थिक मानकों की बात है तो इन मानकों पर भारतीय अर्थव्यवस्था ने पहले की तुलना अच्छा प्रदर्शन किया है। साल के पहले तिमाही में विकास दर अनुमान से अधिक रहा जोकि सकारात्मक है। साथ ही विनिर्माण क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव हुआ है। इसके साथ ही मंहगाई को प्राथमिकता देते हुए वर्तमान सरकार द्वारा नियंत्रित करने का प्रयास किया गया है और सरकार इसमें बहुत हद तक सफल भी रही है क्योंकि चुनावों के बाद मंहगाई का बढ़ जाना एक सामान्य एवं सर्व स्वीकार्य अन्तराष्ट्रीय घटना है जबकि वर्तमान सरकार ने इन चार महीनों में महंगाई को बढने नहीं दिया है कुछ सप्ताहों को छोड़कर। अतः आर्थिक मोर्चे पर भी भारतीय अर्थव्यवस्था ने पहली तिमाही में बेहतर किया है। साथ ही ये सर्व विदित है कि भारत एक आर्थिक संभावनाओं का देश है जहाँ की एक बहुत बड़ी आबादी युवा (35 वर्ष से कम) है। जिसका सीधा अर्थ यह है कि निवेशकों को भारत में एक बहुत बड़ा बना बनाया श्रम एवं उपभोक्ता समूह उपलब्ध है और यह लम्बे समय तक उपलब्ध रहेगा। यह स्थिति उनके निवेश के लिए बहुत फायदेमंद है क्योंकि उत्पादन एवं उपभोग के लिए दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। ये सारे कारक भारत को एक बहुत ही आकर्षक निवेश योग्य अर्थव्यवस्था बनाता है।

अतः इन कारकों के उपरोक्त विश्लेषण से ये साफ हो जाता है कि स्टैण्डर्ड एन्ड पूअर्स द्वारा साख में किया गया सुधार पूर्वानुमानित था और ऐसा करके स्टैण्डर्ड एन्ड पूअर्स ने कोई पक्षपात नहीं किया है क्योंकि उसके पास सुधार ना करने की कोई ठोस वजह नहीं है। साथ ही यह भी एक तथ्य है कि निवेशक अब अपने निर्णयों के बारे में पहले की तरह इन संस्थाओं पर विश्वास नहीं करते हैं और कर्ज बहुत हद तक सरकारों के पारस्परिक आर्थिक समबंधों पर निर्भर हैं ना कि किसी संस्था द्वारा गणित साख पर्। कदाचित ये संभव है अमेरीकी सरकार ने इस सुधार की घोषणा के लिए इसी समय का चयन जान बुझकर करने के लिए स्टैण्डर्ड एन्ड पूअर्स को कहा हो ताकि भारत को सकारात्मक संदेश भेजा जा सके। पर इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि अन्तराष्ट्रीय राजनीति एवं कूटनीति में प्रतीकों का बहुत बड़ा महत्त्व है और शायद इस सुधार के साथ अमेरीका भारत के साथ संबन्धों को गर्म करने की कोशिश कर रहा हो जोकि विश्व व्यापार संगठन के सरलीकरण समझौते के असफलता के बाद असहज हो गया था।

© राजीव उपाध्याय

The Inspired Insight

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh