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फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर ने देश में बड़ी संस्थाओं, सड़कों, योजनाओं एवं अन्य महत्वपूर्ण जगहों के नाम केवल गाँधी परिवार के नाम पर रखने पर प्रश्न उठाया है. ऋषि कपूर का यह बयान केवल अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का प्रोग करना है, जो कोई भी भारतीय कर सकता है. किन्तु ऋषि कपूर द्वारा अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार के प्रयोग पर निष्ठावान कांग्रेसियों ने “परिवार” के प्रति अपनी निष्ठा का परिचय देते हुए अभिनेता ऋषि कपूर के घर पर प्रदर्शन किया और पत्थर फेंके. पत्थर फेंकने वाली वही कांग्रेस पार्टी है जिसने दिल्ली की जवाहर लाल नेहरु विश्व विद्यालय में देश विरोधी नारे लगने पर उसे अभिव्यक्ति की आज़ादी बताया था और उनके युवराज नारे लगाने वाले देशद्रोहियों के समर्थन में विश्व विद्यालय का भ्रमण भी कर आये थे. यह इत्तेफाक ही है की देशद्रोह के नारे जिस विश्विधालय में लगे उसका नाम भी इसी परिवार के प्रमुख के नाम पर ही है.
ये तो हुई अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कांग्रेस की दोहरी नीति.
अब दूसरी तरफ ऋषि कपूर द्वारा उठाया गया प्रश्न. देश को जब आज़ादी मिली तो कांग्रेस बहुत बड़ी पार्टी थी और उसके सैकड़ों नेताओं ने आज़ादी के संघर्ष में आहुति दी थी. किन्तु आज़ादी के उपरांत हालत तेजी से बदले. उस समय के कांग्रेस के नेताओं की सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा के विपरीत महात्मा गाँधी ने जवाहर लाल नेहरु को देश का प्रधानमंत्री बनाया. बस इसके बाद हालत तेजी से बदलते चले गए. पहले जवाहर लाल ने और फिर उसके बाद इंदिरा गाँधी ने आज़ादी से पूर्व के बड़े कांग्रेसी नेताओं को उपेक्षित करना शुरू कर दिया. आज़ादी के पूर्व के नेताओं में नेहरु के अतिरिक्त किसी अन्य बड़े काग्रेसी नेता के परिवार ने राजनीती में अपने बुजुर्गों की विरासत को नहीं संभाला या उनके बलिदान को भुनाने की कोशिश नहीं की. एकाध कांग्रेसी के परिवार के सदस्य राजनीती में सक्रीय भी हुए तो उन्हें सफल नहीं होने दिया गया. कांग्रेस पार्टी नेहरु गाँधी परिवार के लिए हमेशा यही राग अलापती है की इस परिवार ने देश के लिए बलिदान दिया है. तो देश के लिए बलिदान तो आज़ादी के पूर्व और बाद में इस परिवार के अतिरिक्त हजारों व्यक्तियों ने दिया है. बलिदान के एवज में एक ही परिवार के लोगों के नाम पर संस्थाओं, योजनाओं, सड़कों और स्थानों के नाम रखे जाना कहाँ तक उचित है. इस परिप्रेक्ष्य में अभिनेता ऋषि कपूर की मांग की सड़कों का नाम जे आर डी टाटा और लता मंगेशकर के नाम पर रखे जाएँ बिलकुल उचित और देश के आम नागरिक की भावनाओं के अनुकूल है.
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