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मै आपको प्रणाम नहीं कर सकूँगा.

सोचिये-विचारिये
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महाराष्ट्र की एक बहन तृप्ति देसाई इन दिनों नारी शक्ति को समानता दिलाने के लिए जी जान से मेहनत माफ़ कीजिये संघर्ष कर रही हैं. उनका सबसे पहला मुकाम था शिन्ग्लापुर स्थित भगवान शनिदेव के मंदिर में महिलाओं को प्रवेश कराना. इस संघर्ष में मिली सफलता से उत्साहित बहन तृप्ति जी का अगला पड़ाव त्रयम्बकेश्वर मंदिर के गर्भ गृह में माताओं बहनों द्वारा पूजा अर्चना कराना था. उनके इस प्रयास में भी उन्हें सफलता मिली. इन दोनों संघर्षों में नयायपालिका के आदेश ने उनकी मदद की और सरकारी व्यवस्था वोटों के खयाल से चुप रही, यह दीगर बात है. तीसरा मुकाम बहन तृप्ति ने मुंबई की हाजी अली की दरगाह को बनाया. सारी कोशिशों के बावजूद उन्हें यहाँ सफलता नहीं मिल सकी.
अपनी सम्पूर्ण विनम्रता और बहन तृप्ति के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए मै कहना चाहूँगा की बहन मंदिरों और दरगाहों में महिलाओं को प्रवेश दिलाने से महिलाओं का भला नहीं होने वाला. मंदिरों दरगाहों में पूजा कर लेने के बाद भी कन्या भ्रूण हत्याएं होनी बंद नहीं हो जाएँगी और कन्या भ्रूण हत्या की सबसे बड़ी वजह दहेज़ प्रथा समाप्त नहीं हो जाएगी जिसमे पीड़ित एक महिला ही होती है. मंदिरों और दरगाहों में प्रवेश से महिलाओं के साथ होने वाली छेड़ छाड़ बंद नहीं हो जाएगी. रास्तों और सार्वजानिक स्थानों पर महिलाओं को अश्लील दृष्टि से घूरना बंद नहीं हो जायेगा. देश भर में बालिकाओं और महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कारों में कोई कमी नहीं आएगी. बेटियों को स्कूल ना भेजने वाले हमारे समाज के “पुरुष” मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश के बाद लोग बेटियों को स्कूल नहीं भेजने लगेंगे.
हो सकता है की मेरे इन सवालों पर बहन तृप्ति देसाई मुझे भी उन पुरुषों में गिनने लगें जो नहीं चाहते की मंदिरों में महिलाएं प्रवेश करें. किन्तु सम्पूर्ण मात्र शक्ति के प्रति अपना सम्मान प्रदर्शित करते हुए मै बेहद सम्मान के साथ अपनी इन बहनों से कहना चाहूँगा की अपनी माताओं और बहनों के मंदिरों अथवा दरगाहों में प्रवेश पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है, किन्तु यदि ये संघर्ष आपने किसी महिला के कन्या भ्रूण को बचाने, किसी समाज में बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने, किसी बेटी के विवाह में मांगे जाने वाले दहेज़ के खिलाफ अथवा बेटियों को बुरी नजर से देखने वाले किसी शोहदे के खिलाफ किया होता तो बहन मै सार्वजनिक रूप से आपको प्रणाम करता. विनम्रता से क्षमा चाहते हुए मै कहना चाहूँगा की आपके इस संघर्ष के लिए मै आपको प्रणाम नहीं कर सकूँगा.

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