Menu
blogid : 3583 postid : 1178224

शौच करना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है.

सोचिये-विचारिये
सोचिये-विचारिये
  • 72 Posts
  • 65 Comments

शौच करना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है.

देश के माननीय प्रधानमंत्री जी ने लाल किले की प्राचीर से सफाई का मुद्दा उठाया. सफाई के इस विचार में खुले में शौच करने की आदत को ख़त्म करने की बात भी शामिल थी. निस्संदेह ये एक सामाजिक विकास की बात है. खुले में शौच की प्रथा से महिलाओं के सम्मान की बात जुडी है, नागरिकों के स्वास्थ की बात जुडी है और इस प्रथा से होने वाली गंदगी का मुद्दा तो सर्वोपरि है ही. आज देश भर में इसके लिए केंद्र और राज्य की सरकारें अभियान चला रही है. देश के किसी गाँव को यदि खुले में शौच से मुक्ति मिल जाति है तो वह अख़बारों और टीवी चैनलों पर खबर बन जाता है. देश भर में शौचालयों के निर्माण को आन्दोलन के रूप में चलाया जा रहा है. एकाध स्थानों पर लोगों ने खुद ही अथवा सरकारी महकमे के सहयोग से खुले में शौच पर दंड की व्यवस्था भी की हुई है. खुले में शौच से मुक्ति के लिए लिए बड़ी मात्रा में सरकारी अनुदान विभिन्न एजेंसियों द्वारा दिए जा रहे है, जिनमे डटके “बोफोर्स” हो रहा है यह भी किसी से छिपा नहीं है.
किन्तु यह भी देखने की जरुरत है की खुले में शौच लोगों की आदत है या फिर आवश्यकता. क्योंकि एक ओर गाँव देहात में आज भी अनेकों ऐसे बुजुर्ग मिल जायेंगे जो दशकों से खुले में शौच कर रहे है और अब घर में आधुनिक शौचालय होते हुए भी उन्हें शौचालय में संतुष्टि नहीं होती. (शौच आवश्यकता के साथ संतुष्टि की भी बात है) दूसरी ओर देश के बड़े हिस्से में इस समय सूखा पड़ा हुआ है. कृषि की सिचाई की बात तो दूर पीने के पानी के भी लाले पड़े हुए है. इन क्षेत्रों के नागरिक शौचालय का उपयोग करें तो करें कैसे. अब प्रश्न यह उठता है की ऐसे में सरकार के बनवाये हुए शौचालय का उपयोग सूखाग्रस्त क्षेत्र के नागरिक कैसे करें.पीने को पानी तो है नहीं तो शौचालय के लिए पानी कहाँ से लायें. अनुमान है की शौचालय में एक व्यक्ति द्वारा निष्पादित मल को बहाने के लिए कम से कम 5-7 लिटर पानी तो अवश्य चाहिए ही. पानी नहीं डालने की अवस्था में शौचालय दोबारा प्रयोग के योग्य नहीं रह जाता और फिर खुले में शौच वाली सारी बुराइयाँ इसमें आ जाती हैं.
जल संकट देश में क्यों ना हो, गाँव देहात के सारे तालाबों पर अधिकारीयों और नेताओं की मिलीभगत से भूमाफियाओं ने कब्जे कर लिए, पेड़ भी ऐसे ही गठजोड़ से वन माफियाओं ने काट लिए. तालाबों के ना होने से अमूल्य वर्षा जल भूगर्भीय जल में वृद्धि नहीं कर पाता और बह कर नष्ट हो जाता है. पेड़ों के अंधाधुन्द कटान ने वर्षा में बेहद कमी की है. आजादी मिले 70 वर्ष हो गए अभी तक सूखे की समस्या से देश को निजात नहीं मिल सकी है. अधिकारीयों की रूचि सूखे की समस्या के स्थायी खात्मे में नहीं बल्कि सूखा राहत के लिए बटने वाली रकम में होती है. आज़ादी के कुछ वर्षों बाद ये खेल राजनेताओं की समझ में भी आ गया की सूखे की समस्या को यदि स्थायी रूप से हल कर दिया तो आगे कुछ नहीं मिलेगा. इसलिए सूखा पड़ने दो और राहत बटने दो के सिद्धांत पर हमारे राजनेता लगातार काम कर रहे है.
अब देश के जिन इस्सों में सूखा पढ़ा हुआ है उस जगह के नागरिकों की ओर से मेरा माननीय प्रधानमंत्री जी और सारी राज्य सरकारों से विनम्र अनुरोध है की देश के जिन स्थानों में पानी का संकट है वहां के नागरिकों को और उन बुजुर्गों को, जिन्हें इसकी आदत पढ़ चुकी है, खुले में शौच करने की अनुमति दे दी जाए. आखिर शौच करना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh