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कुछ दिन बुरे वक्त का ग़र साथ मिल जाता /

मेरी आवाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो
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कुछ दिन बुरे वक्त का ग़र साथ मिल जाता /
कौन है अपना कौन पराया पता चल जाता /
मंडराते है भौरें खिले फूल पर झुण्ड -झुण्ड /
मुरझाये पर जो आता वही हमदम बन जाता /
चन्द दिनों की तन्हाई भी जरुरत है राजेश /
अपनों की अहमियत भी तभी समझ आता /
विरह की आग में जलकर जो निकल आये /
मिलन की तपिश को वो ठंढा नहीं कर पाता /
मंजिल की तलाश में मुझे भटकने दो यारों /
यूँ ही नहीं किसी को, नई राह दिख जाता /

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