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एक नजर अपने गुनाहों पर भी …

sach ke liye sach ke sath
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दहेज़ उत्पीड़न ,यौन हिंसा ,यौन उत्पीड़न ,घरेलु हिंसा ,लैंगिक विभेद जैसे सबालों पर पुरुष सत्ता को कोसना ,कटघरे में खड़ा करना ,उसे मुजरिम करार देना कहाँ तक सही है यह एक विचारणीय विषय है। पुरुष सत्ता को कोसना ,कटघरे में खड़ा करना ,उसे मुजरिम करार देना महिला हितों ,महिला अधिकारों के हिमायती स्वयं सेवी संगठनों और नारी स्वतंत्रता की पैरोकारी करने बाले बुद्धिजीवियों का शौक है या मजबूरी ?
यौन हिंसा ,यौन उत्पीड़न ,घरेलु हिंसा ,लैंगिक विभेद पर एक स्वयं सेवी संस्था द्वारा आयोजित सेमिनार में मंचीय प्रतिभाग का अवसर मुझे प्राप्त हुआ। इस सेमिनार में महिला और पुरुष प्रतिभागिता का प्रतिशत 95 :5 का था। इस सेमिनार मे भी पुरुष सत्ता को ही सारे फसाद की जड़ सिद्ध करने की होड़ दिखी। इस सेमिनार के मंचीय अतिथियों में अकेला मैं ऐसा वक्ता था जो दहेज़ उत्पीड़न ,यौन हिंसा ,यौन उत्पीड़न,घरेलु हिंसा ,लैंगिक विभेद के सबाल पर सारे फसाद की जड़ पुरुष सत्ता को सिद्ध करने की सोंच और निष्कर्ष से असहमत था।
मेरी नजर में ऐसा निष्कर्ष आधी हकीकत आधा फसाना है। बात दहेज उत्पीड़न की ,दहेज हत्याओं की करें तो इस सिलसिले में मिथ्या आरोपों ने तमाम घर उजाड़े ।दहेज उत्पीड़न ,दहेज हत्या के मिथ्या आरोपों की वजह से जेल की त्रासद यातना भोग रहे वर पक्ष के लोगों की संख्या चिंतित करती है।दहेजउत्पीड़न,दहेज हत्या ,घरेलु हिंसा के मिथ्या आरोपों की वजह से आत्महत्या करने बाले पुरुषों की संख्या महिला आत्महत्या के आंकड़ों से बहुत ज्यादा है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है की दहेज अधिनियम को वर पक्ष के उत्पीड़न ,भयादोहन का ऐसा हथियार बना लिया गया जिसका संत्रास वर पक्ष के नातेदारों ,रिश्तेदारों तक को भोगना पड़ता है। यौन हिंसा ,यौन उत्पीड़न के मामलों की यदि निष्पक्ष पड़ताल की जाये तब जो सच हमारे सामने आएगा वह महिला हितों ,महिला अधिकारों के हिमायती स्वयं सेवी संगठनों और नारी स्वतंत्रता की पैरोकारी करने बाले बुद्धिजीवियों के इस निष्कर्ष को आधी हकीकत आधा फसाना सिद्ध करने बाला होगा। दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति यह है की इस आधी हकीकत को अतिरंजित कर मीडिया मूल सबालों की भ्रूण हत्या करने लगी।
यहाँ दो घटनाओं का जिक्र प्रासंगिक होगा। दिल्ली का निर्भया काण्ड। गैंग रेप और किसी युवती की निर्मम हत्या का जघन्य अपराध कत्तई क्षम्य नहीं परन्तु इस मामले को मीडिया ने जिस अंदाज में परोसा उसने उन सबालों को हाशिये पर धकेल दिया जो इस जघन्य अपराध के अहम कारकों पर प्रकाश डालते ,ऐसे हादसों की पुनराबृत्ति से समाज को ,युवा पीढ़ी को आगाह करते। निर्भया काण्ड को मीडिया और विभिन्न संगठनों ने गैंग रेप की क्रूरता और पुरुष सत्ता को एकपक्षीय मुजरिम सिद्ध के खांचे में कैद कर दिया। यह बात हाशिये पर चली गई की अभिवावकों ने जिसे पढ़ने के लिए भेजा था वह लड़की अपने अभिभावकों के विश्वास से खिलवाड़ करती दूसरे शहर में देर रात अपने ब्वॉय फ्रेंड के साथ मौज मस्ती करने निकली थी।न तो मीडिया ने न किसी संस्था या संगठन ने युवा पीढ़ी को यह समझाने की जरुरत समझी की अभिभावकों के विश्वास से खिलवाड़ के भयावह परिणाम झेलने पड़ेंगे जैसे निर्भया ने झेले।

कथित बुद्धीजीवियों से यह पूछा जाना चाहिए की वह महिलाओं की स्वतंत्रता की पैरोकारी करते हैं या स्वछंदता की ?महिलाओं की स्वतंत्रता के पैरोकारों को इस तल्ख़ हकीकत को समझना होगा की यदि पाश्चात्य संस्कृति को अंगीकृत करना ,भड़काऊ ,उत्तेजक परिधानों को पहन कर सार्वजानिक स्थलों पर देह की नुमाईश ,गर्ल फ्रेंड – ब्वॉय फ्रेंड कल्चर महिलाओं की आजादी का आपका पैमाना है तब निर्भया काण्ड जैसे नतीजों पर छाती पीटने का ,सारे फसाद के लिए पुरुष सत्ता को अपराधी घोषित करने का स्वाँग क्यों ? पाश्चात्य संस्कृति ,पाश्चात्य परिधानों के पैरोकारों को वह राह बतानी चाहिए जो इसके खतरों से बचाती हो।

उत्तर प्रदेश का बहुचर्चित अमरमणि -मधुमिता कांड हो या गुजरात के पाटन टीचर्स ट्रेनिंग स्कूल से जुड़ा दलित छात्रा का अध्यापक द्वारा कथित यौन उत्पीड़न / बलात्कार का। कड़वा सच यही है की शार्ट कट रुट से अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति एवम बुलंदियों का मुकाम हासिल करने के लिए कथित पीड़िता ने दैहिक सीढ़ी का इस्तेमाल किया। अमरमणि -मधुमिता कांड की बात करें तो उसके परिवार के जो लोग मधुमिता के बुरे हश्र पर छाती पीट रहे थे क्या उनको इस हश्र की कल्पना नहीं थी ?यौवन की दहलीज पर खड़ी मधुमिता को एक कद्दावर मंत्री के हवाले करते समय परिवार के लोगों को उसके अंजाम का अंदाजा क्यों नहीं था ?गुजरात के पाटन टीचर्स ट्रेनिंग स्कूल की दलित छात्रा का आरोप था की उसे अच्छे नम्बर देने का प्रलोभन देकर टीचर्स ट्रेनिंग स्कूल के अध्यापक ने लम्बे अर्से तक उसका यौन उत्पीड़न / बलात्कार किया।क्या प्रलोभन के आगे समर्पण ही एकल विकल्प था ? क्या उसे वहां के प्रबंधन , सह प्रशिक्षु छात्र-छात्राओं को ,अपने अभिभावकों को अध्यापक के बेहूदे प्रस्ताव की जानकारी देकर अध्यापक को बेनकाब नहीं करना चाहिए था ?

दहेज उत्पीड़न और घरेलु हिंसा के मामले में भी स्थिति आधी हकीकत आधा फसाना की ही है। ईमानदारी से विवेचन करें तो हम पाते हैं की चाहे वह दहेज़ का मोर्चा हो ,भावी बहु को पसंद करने का या विवाहोपरांत घर का मोर्चा। हर मोर्चे की कमान महिलाओं ने थामी होती है। भावी बहु के नाक -नक्श ,चेहरे -मोहरे ,कद काठी ,रूप -रंग की खुर्दबीनी पड़ताल और उसे पसंद -नापसंद करने के मामले में परिवार के बहुतायत पुरुष मुखिया की भूमिका मूक दर्शक की,महिला मंडल द्वारा पारित पसंद -नापसंद के फरमान को सिर -माथे लगाने की होती है। बहु को दान -दहेज़ के लिए ताना मारने का मोर्चा बहुतायत महिला मंडल ही संभालता है। नवबधु के प्रति उसके पति के प्रेम ,स्नेह के आधिक्य से महिला मंडल के ही पेट में मरोड़ उठती है। नवबधु के लिए डायन ,जादूगरनी जैसी और उसके पति के लिए घर घुसना ,मेहर का गुलाम ,भडुवा जैसे ‘प्रशस्ति पत्र ‘ बहुतायत महिला मंडल ही जारी करता है।
आधी हकीकत -आधा फसाना ही कड़वा सच है दहेज उत्पीड़न ,यौन हिंसा ,यौन उत्पीड़न ,घरेलु हिंसा ,लैंगिक विभेद जैसे सबालों पर पुरुष सत्ता को कोसने ,कटघरे में खड़ा करने ,उसे मुजरिम करार देने का।
उर्दू अदब के मशहूर गजल शिल्पी जनाब मुनीर बख्श आलम साहब की ये चंद पंक्तियां महिला हितों ,महिला अधिकारों के हिमायती स्वयं सेवी संगठनों और नारी स्वतंत्रता की पैरोकारी करने बाले बुद्धिजीवियों को विनम्रता के साथ समर्पित हैं –
पहले हर चीज की तस्वीर बना ली जाये
फिर उसमे रंग भरने की तदबीर निकाली जाए !!
इससे पहले की हम उछालें किसी की पगड़ी ,
इक नजर अपने गुनाहों पे भी डाली जाए !!

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