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नोट बंदी के तुगलकी फैसले का औचित्य सदन में बताने ,विपक्ष के सबालों का जबाब देने के लिए प्रधान मंत्री को सदन में उपस्थित रहने की मांग को नजर अंदाज किये जाने की वजह से सदन का मौजूदा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया .2 जी स्पेक्ट्रम के कथित घोटाले के समय सदन में तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की उपस्थिति को जरुरी मानने बाली भाजपा का बेशर्म चरित्र देश ने देखा की किस तरह उसके मंत्री तक लोक सभा और राज्य सभा में विपक्षी सांसदों की तरह शोर शराबा करते रहे .नोट बंदी के सर्वथा असंवैधानिक और तुगलकी फरमान जिसने पुरे देश पर अघोषित आर्थिक आपातकाल थोप दी उस पर चर्चा के लिए विपक्ष की न्यायोचित मांग को कुतर्कों के सहारे ठुकराते हुए सत्ता पक्ष ने जान बूझ कर ऐसा माहौल बनाया की सदन न चले .
हमें याद है 2 जी स्पेक्ट्रम के कथित घोटाले के समय सदन में तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह सदन में लगातार दो दिनों तक उपस्थित रहे और विपक्ष के सबालों का जबाब भी दिया .यदि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की नीति और नियत साफ़ है ,कलुषित नहीं है तब ऐसी कौन सी मजबूरी है की जिस संसद में प्रवेश के समय उन्होंने संसद को लोकतंत्र का पवित्र मंदिर बताते हुए एक भावुक नाटक संसद की सीढियों पर मत्था टेक कर किया था उसी संसद में ,संसदीय परम्पराओं का सम्मान करने को वह तैयार नहीं हैं .
सुप्रीम कोर्ट ने नोट बंदी पर जो सबाल किये हैं ,लोक सभा में पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने जो सबाल खड़े किये ,राज्य सभा में आनंद शर्मा ने जो सबाल खड़े किये उनका कोई माकूल जबाब यदि होता तब ख़म ठोक कर नरेंद्र मोदी सदन में दहाड़ रहे होते .सच तो यह है की नोट बंदी का सियासी फैसला नरेंद्र मोदी का वन मैंन शो था जो बैक फायर कर गया है .उनकी दशा दलदल में धंसे उस व्यक्ति की हो गई है जो दल दल से निकलने की जितनी कोशिस करता है उतना ही दल दल में धंसता जाता है
नोट बंदी के औचित्य को सिद्ध करने के लिए मोदी जी द्वारा किये गए सारे दावे हवा हवाई सिद्ध हो चुके हैं .
संसद न चलने के सबाल पर नरेंद्र मोदी ने गुजरात की जन सभा में ये कह कर की उनको संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा इसलिए उन्होंने जन सभा में बोलने का फैसला किया है खुद को हास्यास्पद स्थिति में पहुंचा दिया है . जो लोग सदन की कार्यवाई टीवी पर देखते रहे हैं उनकी नजर में मोदी जी की क्या छवि बनी होगी कहने की जरुरत नहीं है यह कितनी हास्यास्पद बात है की किसी देश का प्रधान मंत्री जन सभा में यह मिथ्या विधवा प्रलाप करे की सदन में उसे बोलने नहीं दिया जा रहा .क्या प्रधान मंत्री को यह संसदीय ज्ञान नहीं है की उनको सदन में बोलने से रोका नहीं जा सकता ? क्या वह देश को बता सकते हैं की लोक सभा या राज्य सभा में वह कब नोट बंदी के मुद्दे पर बोलने के लिए खड़े हुए और विपक्ष ने उनको बोलने नहीं दिया ?
क्या प्रधान मंत्री यह बताने की स्थिति में हैं की उन्हें नोट बंदी का एकल फैसला लेने का अधिकार संबिधान देता है ? नोट बंदी और 2000 की करेंसी छापने के लिए क्या क़ानूनी और संवैधानिक औपचारिकतायें पूरी की गईं ? सच तो यह है की क़ानूनी और संवैधानिक औपचारिकतायें पूरी नहीं की गईं . रिजर्व बैंक ने कहा है की 500 और 1000 के नोटों को गैर क़ानूनी घोषित करने के लिए धारा 26(2) के तहत कानून में परिवर्तन करने की जरुरत होगी जिसे भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया जायेगा .यह मार्च 2017 तक हो सकेगा .
स्वाभाविक है ऐसे ही सबालों का जबाब प्रधान मंत्री को सदन में देना होगा ,सदन में उनको नोट बंदी के तुगलकी फरमान के बाद बैंकों और एटीएम की कतारों में मारे शताधिक निर्दोष नागरिकों की मौत का हिसाब भी देना होगा .कुतर्कों के अलाबा इस मुद्दे पर भाजपा और प्रधान मंत्री के पास कहने को कुछ भी नहीं है यही मूल वजह है सदन से उनके लगातार पलायन की .
लोक सभा जहाँ भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत है वहां देश ने उलटी गंगा बहती देखी है .नोट बंदी के मामले में विपक्ष मतदान की मांग करता नजर आया और सत्ता पक्ष पलायन की राह पर .
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी लगातार सफ़ेद झूठ बोल कर न सिर्फ संसद का अपमान करने का पाप कर रहे हैं बल्कि प्रधान मंत्री के संवैधानिक पद की प्रतिष्ठा से खिलवाड़ कर रहे हैं . उनसे उम्मीद तो नहीं की जा सकती की गुजरात की रैली में बोले गए सफ़ेद झूठ पर वो शर्मिंदा हों पर देर सबेर उनको यह एहसास तो यह देश जरूर कराएगा की झूठ की बिसात पर इस लोकतंत्र से खेलने बालों को सही समय पर अवाम माकूल जबाब देता है .
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