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उत्तर प्रदेश के सत्ता संग्राम में इन दिनों भाजपा -बसपा की बेतुकी रार सियासी फलक पर है। भगवा पल्टन के दया शंकर सिंह की बदजुबानी की प्रतिक्रिया में माया पल्टन के अनाम से कार्यकर्ताओं की नारेबाजी को मुद्दा बनाकर एक दूसरे पर सियासी बढत लेने की सियासी जंग नित्य नए गुल खिला रही है। दिलचस्प बात यह है की भाषायी मर्यादा की दुहाई देने बाली भाजपा -बसपा है। भाषायी मर्यादा को तार -तार करने का दोनों ही पार्टियों का ट्रैक रिकार्ड देखने के बाद यह बेतुकी रार हास्यास्पद प्रतीत होती है। “तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार ” के नारे लगाने बाली बसपा और रामजादों -हरामजादों की बेहूदी भाषणबाजी करने बाली वाणी वीर भाजपा की इस रार की नीति और नियत को समझने की जरूरत है। भाषायी मर्यादा का उल्लंघन दोनों करती रही हैं। दरअसल दोनों दल इस बेतुकी रार के जरिये उत्तर प्रदेश के चुनाव में जातीय गोलबन्दी करने की सोंची समझी सियासी रणनीति पर अमल कर सियासी रोटियां सेंकना चाहती हैं।
अन्तर्कलह एवं बागियों से हल्कान बसपा सुप्रीमो मायावती इन दिनों कठिन दौर से गुजर रही हैं। बसपा के अतीत पर नजर डालें तब बसपा से बगावत कर अन्य दलों में जाने बालों या अपना अलग दल बनाने बालों का सियासी सफर सफल नहीं हुआ। वो या तो हाशिये पर चले गए या माफ़ी मांगते माया शरणम की गति को प्राप्त होते रहे। मायावती की असली चिंता अपनी मूल थाती दलित वोट बैंक को सँभालने ,सहेजने की है ,दलित वोट बैंक में सेंधमारी रोकने की है। यही वजह है की दयाशंकर के बहाने मायावती ने दलितों को लामबंद करने की सियासी चाल चली।भाजपा उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें ज़माने को बेचैन है । भाजपा उत्तर प्रदेश की सियासत में आज हाशिये पर खड़ी है। रामलला हम आएंगे मंदिर वहीँ बनाएंगे के इनके नारे पर शायद स्वयं रामलला को भी भरोसा नहीं। कैराना -कांधला के बहाने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की इनकी सियासी चाल दगा पटाखा साबित हुई है। मुख्य मंत्री पद को लेकर भाजपा के अंदर घमासान मचा है। योगी आदित्य नाथ ,वरुण गांधी ,कल्याण सिंह सहित तमाम क्षत्रप बागी तेवर दिखा रहे हैं। मोदी मैजिक का मुलम्मा उत्तर चुका है। ऐसी स्थिति में भाजपा को जहाँ भी सियासी लाभ नजर आता है बिना आगा -पीछा विचारे कूदना उसकी सियासी मजबूरी है। दयाशंकर मामले में दयाशंकर के निष्कासन से बैकफुट पर गई भाजपा दयाशंकर की पत्नी स्वाति सिंह की इंट्री के बाद सवर्णों की लामबंदी देख कर भई गति सांप -छछूँदर केरी की स्थिति में है। स्वाति सिंह ने भाजपा की मुश्किलों को यह कह कर बढ़ा दिया है की भाजपा ने उनके पति को पार्टी में वापस न लिया तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। देखना दिलचस्प होगा की भाजपा आला कमान दयाशंकर की वापसी कर थूक कर चाटने के अपने ट्रैक रिकार्ड को कायम रखती है या दयाशंकर के निष्कासन के अपने स्टैंड पर कायम रहती है।
यह इस देश का दुर्भाग्य ही है की आज आम आदमी की मूलभूत समस्याओं ,उसके सरोकारों की नहीं बेतूकी बातों की सियासत हो रही है। भाषायी मर्यादा के मुद्दे पर भाजपा -बसपा की नूरा कुश्ती सिर्फ और सिर्फ एक अदद सियासी प्रहसन है।
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