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भिंड में वीवीपैट से युक्त ईवीयम के डेमो के दौरान जो नतीजे सामने आये ,उन नतीजों को उजागर न करने की जिस तरह मीडिया को ढंकी तुपी धमकी दी गई ,धौलपुर के उपचुनाव में वीवीपैट से युक्त ईवीयम के सम्बन्ध में भुक्त भोगी मतदाताओं ने जो शिकायत की है उसने उत्तर प्रदेश के अप्रत्याशित जनादेश को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती ,और आप सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल के आरोप से आम आदमी के मन मष्तिष्क पर काबिज इस संशय को मजबूत किया है की ईवीयम से छेड़छाड़ करके जनादेश से हेराफेरी की गई है।
मतदान का अधिकार ही लोकतंत्र की प्राण वायु है। यदि उसके इस अधिकार से तकनीकी बेईमानी करके चुनाव परिणामों के साथ धोखा धड़ी की जाये फिर लोकतंत्र और मतदान का कोई मायने शेष नहीं बचता। ईवीयम की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर कदाचित भाजपा के भूतपूर्व शीर्ष पुरुष लालकृष्ण आडवाणी पहले राजनेता थे जिन्होंने साबलिया निशान लगाए थे। ईवीयम की निष्पक्षता और विश्वसनीयता के सन्दर्भ में तकनिकी विशेषज्ञ भी कह रहे हैं की उससे छेड़छाड़ की जा सकती है ,किसी दलविशेष को वोट ट्रांसफर किये जा सकते हैं।
इन्ही तर्कों के साथ भाजपा के बड़बोले नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने ईवीयम की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को चुनौती देते हुए न्यायालय में याचिका दायर की थी। स्वामी ने ईवीयम बनाने वाली जापानी कंपनी से बात भी की और न्यायलय में अपना पक्ष रखते हुए ईवीयम की निष्पक्षता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने की मांग की। माननीय न्यायाधीश ने जब स्वामी से सुझाव मांगे तब उन्होंने ही ईवीयम में वीवीपैट के प्रयोग का सुझाव दिया था। ( सोशल मीडिया पर स्वामी का इस सन्दर्भ में एक वीडिओ भी उपलब्ध है )
परिस्थियाँ चीख चीख कर कह रही हैं की ईवीयम की निष्पक्षता और विश्वसनीयता संदिग्ध है।पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव की निष्पक्षता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है की उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में मात्र २० जगह ईवीयम में वीवीपैट का प्रयोग किया गया जिनके नतीजे भाजपा के खिलाफ रहे।
चुनाव आयोग की भूमिका प्रकारांतर से धृतराष्ट्र जैसी बनी हुई है।विधान सभा चुनाव में चुनाव आयोग माननीय सुप्रीम कोर्ट के उन आदेशों की धज्जियाँ उड़ते देखता रहा जिनमे वोट के लिए धार्मिक ,साम्प्रदायिक मुद्दों के प्रयोग को वर्जित किया गया था। उत्तर प्रदेश में भाजपा राम मंदिर ,श्मशान -कब्रिस्तान जैसे मुद्दों पर साम्प्रदायिक ध्रूवीकरण की सियासत करती रही चुनाव आयोग धृतराष्ट्र बना तमाशा देखता रहा।
जिस चुनाव आयोग को लोकतंत्र का प्रहरी माना जाता है उसे ईवीयम की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को लेकर उठने वाले सबालों का तार्किक जबाब देना चाहिए था ,जनादेश को लेकर किसी भी स्तर पर उपजी शंका का समाधान करना चाहिए था जो नजर नहीं आया।
चुनाव आयोग इस अहम् मामले पर नितांत गैरज़िम्मेवाराना रवैय्या अपना रहा है जो भारतीय लोकतंत्र के लिए कत्तई शुभ संकेत नहीं है।
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